शुक्रवार, 27 नवंबर 2015

20 वें केरल अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव के उद्घाटन समारोह में उस्ताद जाकिर हुसैन होंगे आकर्षण के केंद्र

तिरुवनंतपुरम, 27 नवंबर : केरल अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफके) के 20 वें संस्करण का उद्घाटन समारोह उस्ताद जाकिर हुसैन के तबला वादन की प्रभावकारी शैली के स्पंदन से गुंजायमान होगा।

विश्व प्रसिद्ध तबला वादक शुक्रवार, 4 दिसंबर को शुभारंभ होने वाले इस महोत्सव के सम्मानित अतिथि होंगे। वे अपने ‘उठान’, ‘कायदा’ और ‘रेला’ जैसे रूपों और रचनाओं के अपने व्यापक प्रदर्शनों से निशागांधी सभागार में गणमान्य व्यक्तियों और प्रतिनिधियों को संगीत के आनंद से सराबोर करेंगे।

उनका प्रदर्शन आयोजन को पांडित्य और गंभीरता प्रदान करेगा। केरल के मुख्य मंत्री ओमन चांडी दीप प्रज्वलित कर दोनों समारोहों फिल्म और कलात्मक अभिव्यक्ति के सप्ताह भर तक चलने वाले महोत्सव का शुभारंभ करेंगे।

इस अवसर के मुख्य आकर्षणों में एक आकर्षण 1970 के दषक में ईरानी नई लहर आंदोलन के अगुआ प्रख्यात फिल्म निर्माता डारियुस को सम्मानित किया जाना होगा। ईरान के सिनेमाई पुनर्जागरण के लिए किये गये उनके काम और योगदान के लिए उन्हें आईएफएफके का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार प्रदान किया जायेगा।

इस समारोह की उद्घाटन फिल्म फ्रांसीसी निर्देशक जीन जेक्स अन्नाउड की 3-डी स्पेक्टाकुलर वुल्फ टोटेम होगी। चीनी लेखक लू जियामिन (छद्म नाम जियांग रोंग का इस्तेमाल) के द्वारा 2004 में लिखा गया अर्द्ध आत्मकथात्मक उपन्यास पर आधारित, इस फिल्म में बीजिंग से आंतरिक मंगोलिया के खानाबदोशों को सभ्य बनाने तक की एक युवा छात्र की यात्रा को दिखाया गया है।

माओ जेडांग की ‘सांस्कृतिक क्रांति’ की समालोचना से परे यह फिल्म बुद्धिजीवियों को मुफस्सिल जीवन जीने और जंगलों में कूच करने के लिये विवश किये जाने को दिखाती है। यह फिल्म जंगल के मैदान और अपने निवास के लिए बढ़ते छात्रों के अपनापन को दिखाती है। कठोर जंगल के लुभावने दृश्य अन्नौद के प्राकृतिक दुनिया को फिल्माने की ललक को बयां करते हैं।

इस फिल्म को प्रदर्षित किये जाने से पूर्व महोत्सव के सिग्नेचर फिल्म का अनावरण किया जायेगा। यह फिल्म प्रकाश और छाया के सूक्ष्म परस्पर क्रिया पर आधारित 25 सेकंड का हाइकू है। बहुप्रतीक्षित आईएफएफके की सिग्नेचर फिल्म में महोत्सव के दर्शन और व्यवहार को पारंपरिक रूप से समझाया गया है।

आईएफएफके के इस संस्करण का महत्व इससे भी जाहिर होता है कि इस संस्करण के साथ केरल राज्य चलचित्र अकादमी (केएससीए) ने आईएफफके के मुख्य आकर्शण को साझा करने और केरल के शास्त्रीय और पारंपरिक प्रदर्शन कलाओं के साथ अपने प्रोफाइल को और श्रेष्ठ बनाने के लिए शहर के सांस्कृतिक संगठन के साथ साझेदारी की है।

केरल कलामंडलम, केरल साहित्य अकादमी, केरल संगीत नाटक अकादमी, केरल लोकगीत अकादमी और भारत भवन, 05-10 दिसम्बर तक पूरे सप्ताह के दौरान, सूचना और मनोरंजन की प्रस्तुतियों का संचालन करेंगे।

इस महोत्सव के दौरान रोजाना शाम 6 से 7 बजे तक कनककुन्नू पैलेस सहित विभिन्न आयोजन स्थलों पर कथकली, थेय्यम, पदयानी, मोहिनीअट्टम और केरल नदनम जैसे नृत्य रूपों का प्रदर्शन होगा। इसके अलावा भारत भवन के सभागार में जुगलबंदी सत्र भी आयोजित होगा।

केरल का प्रमुख फिल्म समारोह, आईएफएफके 2015, 4 से 11 दिसंबर तक आयोजित होगा। 

मंगलवार, 20 अक्तूबर 2015

20 वें अंतर्राष्ट्रीय केरल फिल्म महोत्सव (आई एफ एफ के) के लिए चलचित्र अकादमी ने अंतरराष्ट्रीय फिल्मों की सूची तय की

नई दिल्ली, 20 अक्टूबर: इस साल दिसंबर में आयोजित होने वाले 20 वें अंतर्राष्ट्रीय केरल फिल्म महोत्सव (आईएफएफके) के प्रतियोगिता वर्ग में शीर्ष सम्मान के लिए विभिन्न भाषाओं की दस अंतरराष्ट्रीय फिल्मों के बीच प्रतिस्पर्धा होगी।

इस सूची में हादी मोहाघेघ द्वारा निर्देशित मैमिरू (इम्मोर्टल, ईरान), अनिनो सा लिकोड एनजी बुवान (शैडो बिहाइंड द मून, फिलीपींस, जून रोबल्स लाना), डिग्रेड (फिलिस्तीन, अरब नासीर), कालो पोथी (द ब्लैक हेन, नेपाल, मिन बहादुर भाम), योना (इजराइल, निर बर्गमैन), क्लारिस्से ओउ अल्गुमा कोइसा सोब्रे नोस डोइस (क्लारिस्से या समथिंग एबाउट अस, ब्राजील, पेट्रस कैरिरी), मियूरट्रे अ पैकोट (मर्डर इन पैकोट, हैती, राउल पेक), डोलान्मा (इंटैंगलमेंट, तुर्की, ट्युन्क डैवुट), बोपेम (कजाकिस्तान, झान्ना इस्साबायेवा) और जालालेर गोल्पो (जलाल्स स्टोरी, बांग्लादेश, अबू शाहिद इमाॅन) शामिल हैं।

फिल्म मैमिरू में, निर्देषक मोहाघेघ ने तन्हा और खुद से घृणा करने वाले बूढ़े आदमी की कहानी की पड़ताल की हैं जो अपराध बोध के कारण बार- बार आत्महत्या करने का प्रयास करता है। फिल्म लाना के तागालोग फीचर अनिनो सा लिकोड एनजी बुवान अपने अस्तित्व के लिये घोर संघर्श करने वाले एक शरणार्थी दंपति के दृढ़ निष्चय को दिखाता है जिसका एक सैनिक के साथ क्षीण रिष्ता कायम हो जाता है।

कैरिरी के काले जादुई नाटक, क्लारिस्से ओउ अल्गुमा कोइसा सोब्रे नोस डोइस शारीरिक, दैहिक और कामुकता पर आधारित एक दूसरे से जुड़े अनेक आख्यानों के जरिये अन्वेशण करती है।

कालो पोथी और डिग्रेड दोनों ही संघर्ष के समय में काले हास्य और नाजुक बेगुनाही रौषनी की तलाश की कहानी है। भाम की फिल्म में मुर्गी की खोज में उग्रवाद ग्रस्त नेपाल में बिगड़ते पर्यावरण के माहौल मे पहुंचे दो ग्रामीण किशोरों की कहानी है। नासिर की रूपक काॅमेडी 13 असंतुष्ट फिलिस्तीनी महिलाओं के बारे में है जो गाजा पट्टी में एक ब्यूटी सैलून में फंस जाती है। इस फिल्म का शीर्षक ही पूरी स्थितियों का बयां करती है।

फिल्म मियूरट्रे अ पैकोट में, निर्देषक पेक ने पोर्ट-ओ-प्रिंस में एक उच्च मध्यम वर्ग के समृद्ध दम्पति के 2010 में आये विनाषकारी भूकंप में उनके नुकसान और उनके द्वारा नयी चुनौतियों का सामना करने के लिए भूकंप की पृष्ठभूमि का उपयोग किया है। डैवुट डोलान्मा में दावयुत ने इसी विषय पर अनिश्चित भविष्य का सामना करने के लिए संघर्ष करने वाले दो लकड़हारे भाइयों के रूप में मुख्य पात्र को दर्षाया है।

योना वालाच हिबू्र कविता के प्रमुख हस्तियों में सबसे बड़ी सख्शियत हैं। बर्गमैन ने योना वालाच का जीवन वृत बनाया है वह उनके जीवन एवं संघर्श को बखूबी दर्षाता है। योना पुरुष प्रधान दुनिया में अपनी पहचान और स्वीकार्यता हासिल करने के लिए पहली बार कदम उठाती है।

फिल्म बोपेम और जलालेर गोल्पो जीवन की अनिष्चितताओं से उत्पन्न मासूमियत की कहानियां हैं। इस्साबायेवा की फिल्म बोपेम में गंभीर रूप से बीमार एक किषोर की कहानी है जो अपनी मां की हत्या के लिये जिम्मेदार लोगों को सजा देना चाहता है और इसमें उसका बचपन खो जाता है। इमाॅन की फिल्म जालालेर गोल्पो में जलाल की कहानी है जिसमें दिखाया गया है कि नील नदी से बचाये गये मोसेस जीवन भर संघर्श करता है लेकिन वह अपने बचपन वाले दुर्भाग्य से नहीं निकल पाता है।

इन फिल्मों का चुनाव फिल्मकार श्री कमल की अध्यक्षता वाली जूरी ने किया है। जूरी के अन्य सदस्यों में फिल्माकर श्री सुदेवान, फिल्म आलोचक श्रीमती सुधा वारियरद्वारा और श्री पी टी रामकृश्णन तथा पत्रकार श्री आर अय्यप्पन शामिल हैं।

इस अत्यंत प्रतिस्पर्धात्मक आयोजन में दो मलयालय मिल्मों - जयराज आर की फिल्म अत्ताल (ट्रैप) और सतीश बाबुसेनान की छायम पोसिया वीडु (द पेंटेड हाउस) तथा भारतीय भाषाओं की दो फिल्में - सृजित मुखर्जी की राज कहिनी (ना मैंन्स लैंड) और बुद्धयम मुखर्जी की द वायलिन प्लेयर के मुकाबले में अंतरराष्ट्रीय फिल्में भी होंगी।

केरल का मुख्य फिल्मोत्सव आईएफएफके, 2015 का आयोजन 4 से 11 दिसंबर तक होगा।

बुधवार, 23 सितंबर 2015

लुलु समूह ने कोच्चि-मुजिरिस बिनाले को 1 करोड़ रुपये दान दिया

कोच्चि, 23 सितंबर: अगले साल के अंत में शुरू होने वाले वृहद कला आयोजन ‘‘कोच्चि-मुजिरिस बिनाले’’ (केएमबी) के तीसरे संस्करण को अपना समर्थन देते हुये एनआरआई व्यापारी युसु्फ अली एमए ने 1 करोड़ रुपये का दान दिया है।

12 दिसंबर, 2016 से शुरू हो रहे केएमबी 2016 के लिए वित्तीय सहायता, बकरीद से एक दिन पहले से ही आनी शुरू हो गयी है। युसुफ अली ने समकालीन कला आयोजन बिनाले के दूसरे संस्करण को भी समर्थन देने के लिए 50 लाख रुपये का दान दिया था।

लुलु समूह के निदेशक एम. ए. निषाद ने, कंपनी के वाणिज्यिक प्रबंधक साधिक कासिम, मीडिया समन्वयक एन. बी. स्वराज और प्रबंधक वी. पीताम्बरण के साथ आज एर्नाकुलम प्रेस क्लब में आयोजित एक समारोह में कोच्चि बिनाले फाउंडेशन के अध्यक्ष बोस कृष्णमाचारी को चेक सौंपा। लुलु ग्रूप आॅफ कंपनीज के प्रबंध निदेशक युसुफ अली ने कहा कि केएमबी अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में भारत को प्रतिश्ठा दिला रहा है। उन्होंने कहा, ‘‘बिनाले एक विशाल कैनवास है जहां कला अंतरराष्ट्रीय कलाकारों की भागीदारी के साथ सीमाओं को तोड़ रही है। अब यह एक विश्व प्रसिद्ध समकालीन कला महोत्सव है। इसके आयोजक धन्यवाद के पात्र हैं। इस तरह के आयोजन को बढ़ावा देने से केरल के सांस्कृतिक पर्यटन को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी। इस आयोजन को समर्थन देना सार्वजनिक और औद्योगिक दुनिया की सामूहिक जिम्मेदारी है।’’

Kochi Biennale Foundation President Bose Krishnamachari receiving cheque of Rs 1 crore from Lulu Group Director M A Nishad on Wednesday at Press Club, Ernakulam

युसु्फ अली ने 2014 कोच्चि-मुजिरिस बिनाले की यात्रा के दौरान ही तीसरे संस्करण के लिए 1 करोड़ रुपये दान देने की अपनी योजना की घोषणा की थी।

बिनाले को लुलु समूह के द्वारा निरंतर समर्थन दिये जाने के बारे में बात करते हुए, बोस कृष्णमाचारी ने कहा, ‘‘अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विख्यात व्यापारी डॉ. युसुफ अली ‘साॅफ्ट पावर’ के मूल्य को बरकरार रखे हुए हैं और भारत के सांस्कृतिक गौरव के एक आयोजन के रूप में बिनाले के आयोजन को कायम रखने के लिए उनका भावुक समर्थन उल्लेखनीय है। कोच्चि बिनाले फाउंडेषन संगठन के रूप में हम कला और शिक्षा के माध्यम से ‘लोगों की सेवा’ पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं और कला के संरक्षक के रूप में उनके जैसे व्यक्ति के लिए बहुत आभारी महसूस करते हैं।’’

कोच्चि-मुजिरिस बिनाले 2016 को मुंबई स्थित कलाकार सुदर्शन शेट्टी द्वारा क्यूरेट किया जाएगा। उद्घाटन सत्र में भाग लेने वाले कलाकार, जन्म से मंगलोरियन, 54 वर्शीय कला निदेशक ने तीसरे संस्करण के लिए अपना शोध कार्य शुरू कर दिया है।

"SIGNATURE OF DIVERSITY 3" का शुभारम्भ 29 से

श्याम शर्मा की कृति
नई दिल्ली , 23 सितम्बर , "SIGNATURE OF DIVERSITY 3" यह शीर्षक है एक ऐसी कला प्रदर्शनी का जिसका शुभारम्भ होने जा रहा है दिल्ली के इंडिया हैबिटैट सेंटर स्थित मशहूर कला दीर्घा  "विज़ुअल आर्ट गैलरी " में। आगामी 29 सितम्बर से आरम्भ होने वाली इस सामूहिक कला प्रदर्शनी का आयोजन दिल्ली की संस्था मार्सी आर्ट एण्ड कल्चर कर रही है। 

प्रदर्शनी का उद्घाटन 29 सितम्बर को राज्यसभा सदस्य आर. के. सिन्हा करेंगे तथा ललित कला अकादमी के एडमिनिस्ट्रेटर कमल कान्त मित्तल मुख्य अतिथि होंगे।

3 अक्टूबर तक चलने वाली इस वृहद कला प्रदर्शनी में देश के कुल 26 कलाकारों की कलाकृतियां देखने को मिलेगी जिसमे कला एवं शिल्प महाविद्द्यालय , पटना के पूर्व शिक्षक एवं वयोवृद्ध कलाकार बीरेश्वर भट्टाचार्य एवं श्याम शर्मा की कलाकृतियां निश्चित रूप से दर्शकों को आकर्षित करेगी। अन्य कलाकारों में अभिजीत पाठक, चुनाराम हेम्ब्रम , दिनेश सिंह, दिनेश कुमार राम, जे. पी. त्रिपाठी , मनोज कुमार बच्चन, राजेंद्र प्रसाद, राखी कुमारी, संजू दास , सुमन कुमार सिंह, त्रिभुवन कुमार देव आदि शामिल है। 

इस प्रदर्शनी को कला लेखक रविन्द्र त्रिपाठी क्यूरेट कर रहे हैं। मार्सी आर्ट एंड कल्चर की ओर से आयोजित होने वाली यह तीसरी बड़ी कला प्रदर्शनी है इसलिए उम्मीद की जा सकती है कि यह प्रदर्शनी अपनी अलग छाप जरूर छोड़ेगी।


त्रिवेणी तिवारी की सेरामिक में बनी कृति

मंगलवार, 22 सितंबर 2015

2016 Biennale veering to be a blend of tradition & contemporaneity



·        Curator Shetty busy meeting artists across globe in run-up to concept

New Delhi, Sep 21: India’s only biennale looks set to turn a new leaf with the 2016 curator of the global contemporary art festival currently exploring the prospect of blending literary and performing arts sensibilities into its upcoming edition in a big way.

Even as the aesthetics of Kochi-Muziris Biennale (KMB) are in a nascent stage now when its third chapter is 15 months away, Sudarshan Shetty, the curator, is busy meeting musicians and dancers besides artists around the globe in his bid to shape up the concept of the grand Kerala event that has already gained international repute.

“I won’t make a mission statement at this stage, but I can tell you that it will be even more a ‘people’s biennale’ this time,” the middle-aged Mumbaikar said about his perception about KMB-3, slated to begin on December 12 next year. “The two editions of the biennale we had so far were outstanding in their conceptualization and execution. It would be tough to raise the bar further. But it’s interesting—and that’s what is expected of me.”
 
KMB-3 curator Sudarshan Shetty, flanked  by KBF Trustees (from left to right ) Sunil V, Riyas Komu and Bose Krishnamachari at a Kochi Biennale Foundation function in Delhi on Saturday (Sept 19) evening.
The Mangalore-born contemporary artist, famously known for his enigmatic sculptural installations, recalled a well-known Ratan Thiyam statement, noting that the sexagenarian experimental Manipuri theatre-person always used ancient stage dynamics in contemporary context, thus proving that tradition never implied staleness.

“Tradition is not like water in a stagnant pool, but it is like a waterfall. This is a famous statement of Ratan Thiyam. I am greatly inspired by it and it will be reflected in my curation,” he added.  

It is with this rearview that Shetty has been touring the world as the artistic director of the third KMB. “I just am back from travels across Europe,” he revealed. “Shortly, I will be leaving for the East…to China and Japan.”

Pertinently, Shetty had himself been a participant in the debut KMB of 2012—thus having known the pulse and seen the growth of the pioneering festival since its start. While the over three-month-long first edition had 80 artists from 23 countries, the second, which concluded in March this year, featured 100 main installations by 94 artists from 34 countries on display for 108 days.

So, will there be a striking rise in the number of artists for the 2016 KMB? “See, there won’t be a huge rise in the venues at the biennale. Nor can a notable jump in the number of artists be counted as a defining scale of eminence. I can still say that street art and students’ participation would be one of the focal features of the upcoming edition,” pointed out the 54-year-old alumnus of Mumbai’s prestigious Sir JJ School of Art.
 
KMB-3 curator Sudarshan Shetty
Last weekend, Shetty was in the national capital at a get-together of the artistic fraternity across the country. A ‘Meet The Curator’ function convened by the Kochi Biennale Foundation (KBF) on Saturday evening saw him being formally introduced to a crowd of select invitees that included the Who’s Who of Indian art, culture, literature, cinema and academics, besides a fair sprinkling of representatives from various embassies and consulates. 

 KBF founders Bose Krishnamachari and Riyas Komu, speaking at the function, ran through the history of their struggles ahead of the first KMB where the two Mumbaikar-Malayalis were co-curators.
 
Komu, in his 30-minute power-point presentation, also shed light at the evolution of the aesthetics of the biennale, the subsequent enrichment of its editions and the history of growth of its patronage and worldwide recognition.

The KBF also acknowledged huge support from the patrons and supporters, including the state government, for making the biennale happen. “We thank everyone for making it happen and do seek support from all to continue it as a project ‘serving people’ through art,” he added.
The other speakers were artists Jitish Kallat (also the artistic director of KMB-2), art patron Kiran Nadar, top bureaucrats Amitabh Kant and Venu Vasudevan, veteran visual artists Gulammohammed Sheikh, Vivan Sundaram and Subodh Gupta and KBF trustee Sunil V.

Shetty’s name as the KMB-3 curator and artistic director was announced to the world on July 15, nearly a month after a high-powered panel of artists and prominent personalities made their unanimous decision. He was selected after a month-long deliberation by a panel under KBF comprising artists Amar Kanwar, Atul Dodiya, Bharti Kher and Jyothi Basu, art critic and curator Ranjit Hoskote, gallerist Shireen Gandhy and patron Ms Nadar, along with KBF trustees Krishnamachari, Komu and Sunil.

बुधवार, 12 अगस्त 2015

राष्ट्रीय संग्रहालय में प्राचीन नक्शों की अनूठी प्रदर्शनी का शुभारंभ

नई दिल्ली, 12 अगस्त: राजधानी में शुरू हुयी प्राचीन नक्शों की एक अनोखी प्रदर्शनी पृथ्वी के सही भौतिक चित्रण के लिए सदियों से अनवरत जारी मानव की अथक कोशिश को उजागर करेगी। यह प्रदर्शनी भारतीय उपमहाद्वीप के प्रयोगात्मक ब्रह्माण्डीय निरूपण से लेकर भौगोलिक चित्रण की विकास यात्रा को भी रेखांकित करेगी।
Exhibition view of Cosmology to Cartography
केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन राज्य मंत्री डॉ. महेश शर्मा ने राष्ट्रीय संग्रहालय (एनएम) के सहयोग से हैदराबाद स्थित कलाकृति आर्काइव द्वारा आयोजित दो महीने तक चलने वाली भारतीय मानचित्रों की सांस्कृतिक यात्रा’ प्रदर्शनी का उद्घाटन किया। राष्ट्रिय संग्रहालय ने काली दीवारों और कहीं- कहीं लाल प्राॅप के साथ अभिनव डिजाइनों से सुसज्जित गैलरी में प्रदर्शित 72 नक्षों में से दो नक़्शे उपलब्ध कराये हैं।
भारत के लिए अमरीकी राजदूत रिचर्ड वर्मा और केंद्रीय संस्कृति सचिव नरेंद्र कुमार सिन्हा की उपस्थिति में मंगलवार शाम को इस प्रदर्शनी का शुभारंभ किया गया। इस दौरान मंत्री ने कहा कि यह प्रदर्शनी ब्रह्मांड और परिदृश्य का चित्रण करते हुए पुरानी पीढि़यों की क्षमता का प्रदर्शन करती है।
जर्मन मानचित्रकार डॉ. अलेक्जेंडर जॉनसन के साथ लंदन वासी भारतीय वास्तुकार डॉ. विवेक नंदा द्वारा क्यूरेट की गयी और विषयगत क्रम में सुरुचिपूर्ण ढंग से प्रदर्शित की गयी इस प्रदर्शनी के बारे में उन्होंने कहा, ‘‘आज के युवाओं को इस मिशन को आगे ले जाना चाहिए।’’ कलाकृति द्वारा आयोजित इसी तरह की एक प्रदर्शनी इस गर्मी के प्रारंभ में समाप्त हो चुके दूसरे कोच्चि- मुजिरिस बिनाले पर प्रकाश डालती है।
कला और विरासत के प्रमोटर प्रषांत लाहोटी के नेतृत्व में प्रारंभ किया गया कलाकृति आर्काइव ऐतिहासिक नक्शों का देश का सबसे व्यापक निजी संग्रह है। डिजाइनिंग फर्म चलाने वाले सिद्धार्थ चटर्जी ने गैलरी का नक्शा तैयार किया था।
Map 1d. Rajasthan, 18th Century, 115 x 120cm, Opaque watercolor on cotton
15 वीं शताब्दी के प्रारंभ की अपनी सबसे पुरानी कृति के अलावा 10 फीट गुना 15 फीट के सबसे बड़े आकार में कलाकृति को प्रदर्शित करने वाली प्रदर्शनी के बारे में राजनयिक श्री रिचर्ड वर्मा ने कहा कि प्रदर्शनी में 15वीं शताब्दी के नक़्शे प्रतिनिधित्व किये गये स्थानों के आधुनिक दिनों के उपग्रह चित्रों के समतुल्य आने में सफल रहे हैं ।
1980 बैच के आईएएस अधिकारी श्री सिन्हा ने देश भर में संग्रहालय के संग्रह के त्वरित डिजिटलीकरण का आह्वान करते हुये कहा, ‘‘भविष्य की पीढि़यों के कल्याण के लिए यह प्रक्रिया पहले से ही जारी है।’’
सभा का स्वागत करते हुए राष्ट्रीय संग्रहालय के महानिदेशक संजीव मित्तल ने कलाकृति आर्काइव के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि इसके संग्रह जनता के लिए खुले हैं। उन्होंने कहा, ‘‘कई निजी संग्राहक ऐसा नहीं करते हैं।’’
श्री लाहोटी ने अपने संबोधन में, जोर देते हुए कहा कि ऐतिहासिक नक्शे के संग्रह को न सिर्फ जुनून की जरूरत है बल्कि दर्द और परेशानी का तत्परता से सामना करने की भी जरूरत है। 
Release of Catalogue on Cosmology to Cartography
इस समय जारी प्रदर्शनी प्रतिस्पर्धात्मक वैष्विक हितों तथा उन धार्मिक, आर्थिक एवं राजनीतिक प्रभावों को भी दर्शाएगी जिन्होंने मौजूदा दृश्टिकोण के अनुसार ’’भारत’’ की अवधारणा के विकास में योगदान दिया। इस प्रदर्शनी में भारतीय छपाई उद्याग के विकास को भी दर्शाया गया है, जिसे हालाकि यूरोप के लोगों के द्वारा स्थापित किया गया था, लेकिन इस पर भारतीय कलात्मक शैली और प्रौद्योगिकी का काफी प्रभाव पड़ा।
12 साल से ऐतिहासिक नक्शे का संग्रह करने वाले और 2002 में कलाकृति आर्ट गैलरी का शुभारंभ करने वाले लाहोटी ने कहा, ‘‘यहां भारत के अभूतपूर्व ऐतिहासिक नक़्शे के साथ 15 वीं से 19 वीं सदी के गहरे धार्मिक प्रतीकों के स्मारकीय मूल चित्र भी प्रदर्शित किये गये हैं।’’
11 अक्टूबर तक चलने वाली यह प्रदर्शनी मूल पांडुलिपि की प्रतिलिपियों सहित उपमहाद्वीप और कई देशों में पेंट किए गए और मुद्रित भारतीय नक़्शे जैसे विभिन्न प्रकार के समृद्ध स्रोतों को प्रदर्शित करती है। इस प्रदर्शनी में 19 वीं शताब्दी के शुरुआत तक 400 साल तक की अवधि के दौरान जैन और हिंदू के ब्रह्माण्ड संबंधी निरूपण तथा उनकी सीमाओं, पवित्र नदियों और तीर्थ स्थलों के चित्रण से लेकर उपमहाद्वीप की प्राचीन यूरोपीय अवधारणाओ के कार्टोग्राफिक चित्रण को प्रदर्शित किया गया है।
गैलरी में यात्रा कार्यक्रम उपमहाद्वीप के प्राचीन यूरोपीय विचारों के कार्टोग्राफिक चित्रण के साथ जारी है, और भारत का पहला थोड़ा सटीक नक्शा 1498 में वास्को दा गामा के आगमन से 16 साल पहले बनाया गया था। यह प्रदर्शनी विभिन्न यूरोपीय शक्तियों के द्वारा अपने वर्चस्व के लिए सैन्य प्रतिस्पर्धाओं के तहत नक्षा बनाने की कला के विकास और राज-युग के दौरान नक्शा बनाने वालों के माध्यम से भारत के कार्टोग्राफिक समेकन को प्रस्तुत करती है।
दर्शक भारतीय उपमहाद्वीप पर नियंत्रण के लिए कई यूरोपीय शक्तियों और विभिन्न महान भारतीय राज्यों के बीच नाटकीय और जटिल संघर्ष को दर्शाने वाले शक्तिशाली ग्राफिक अभ्यावेदन को देखने के लिए उत्साहित हैं।
Union Minister of State for Culture and Tourism Dr Mahesh Sharma (right)
inaugurating the exhibition along with Dr Vivek Nanda (centre)
 and Dr Alexandar Johnson (left)
उदाहरण के लिए, 16 वीं शताब्दी में पुर्तगाल को भारत के साथ यूरोपीय बातचीत पर एक आभासी एकाधिकार का आनंद लेते देखा जा सकता है। हालांकि, 1600 के दशक के शुरूआत से, भारत में नई शक्तियां पहुंची और ब्रिटिश, डच, फ्रेंच, डेनमार्क और फ्लेमिश के नक्शे उनके प्रयासों और विभिन्न भारतीय शक्तियों के साथ उनकी जटिल बातचीत को दर्शाते हैं। भारत का आधुनिक, पहचानने योग्य रूप जर्मनी, इटली, इंग्लैंड और तुर्क तुर्की में मुद्रित कार्यों के माध्यम से इस अवधि में पहली बार देखने में आया।
‘ब्रह्माण्ड विज्ञान से लेकर मानचित्रण’ में वैसे नक़्शे भी शामिल हैं जो भारत पर प्रभुत्व के लिये फ्रांस और ब्रिटेन के बीच के उन युद्धों को दर्शाते हैं, जिनका समर्थन उनके भारतीय सहयोगियों ने किया। उप महाद्वीप पर ब्रिटिश प्रभुत्व के साथ भारत के सटीक सामान्य नक्शे बनाने के लिए वैज्ञानिक तरीकों का उपयोग भी शुरू हुआ, जिसका उपयोग ‘राज’ के निर्माण का समर्थन करने वाली सैन्य और न्यायिक शक्ति के माध्यमों के रूप में किया गया।
देश की सैन्य पांडुलिपि नक़्शे के बेहतरीन जीवंत संग्रह में से एक, कलाकृति आर्काइव्स ने, भारत में अपना नियंत्रण मजबूत करने के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी के संघर्ष का पता लगाने वाले नक्षे को भी प्रदर्शित किया है। ये नक़्शे पहले रेलवे के पूरा होने  के रूप में भारतीय समाज और अर्थव्यवस्था में क्रांति आने जैसे नवाचारों की कहानी बयां करते हैं।
प्रभावशाली मानचित्रकारी भारत की समृद्ध बौद्धिक प्रतिभा को प्रदर्शित करती है। हालांकि, भारत के लोगों को अपनी इस विरासत पर अपने स्वामित्व के लिये 1947 में भारत की आजादी तक इंतजार करना पड़ा।
Union Minister of State for Culture and Tourism Dr Mahesh Sharma
viewing the exhibition
प्रदर्शनी के अंत में वैसे नक़्शे हैं जो भारतीय शहर के निर्माण का संकेत देते हैं। इनमें मध्ययुगीन हैदराबाद और बंगलौर, और फ्रेंच पांडिचेरी के मॉडल शामिल हैं। दर्शक इस प्रदर्शनी में मुंबई, कोलकाता और दिल्ली सहित भविष्य के भारतीय महानगरों की असाधारण योजनाओं की खोज भी कर सकते हैं। राष्ट्रीय संग्रहालय के संग्रह से लिये गये दो नक्शों में से एक नक्शा भगवान कृष्ण की 18 वीं शताब्दी की राजस्थानी तस्वीर है जिसमें उनके विशाल विष्वरूप को दिखाया गया है। दूसरा नक्शा पांच शताब्दी पुरानी वाटरकलर कृति है जिसमें हैदरबाद के निजाम अली खान फ्रेच दूत एम बस्सी की बात सुन रहे हैं। इस तस्बीर की फैली हुयी पृश्ठभूमि में प्राचीन शहर दिख रहा है।

मंगलवार, 11 अगस्त 2015

पटना में अंतर्राष्ट्रीय छापाकला प्रदर्शनी का उद्घाटन

पटना , 11 अगस्त, कला संस्कृति एवं युवा विभाग, बिहार तथा बिहार ललित कला अकादमी, पटना  द्वारा आयोजित छापकला प्रदर्शनी की दूसरी कड़ी के तहत अंतर्राष्ट्रीय प्रिंट एक्सचेंज प्रोग्राम (IPEP) के संयुक्त सौजन्य से 21 देशों के 55 छपकलाकारों के कलाकृतियों की एक प्रदर्शनी का उद्घाटन आज पटना के बहुद्देशीय सांस्कृतिक परिसर में स्थित कला दीर्घा में हुआ। इस प्रदर्शनी का विधिवत उद्घाटन श्री अंजनी कुमार सिंह , मुख्य सचिव, बिहार सरकार ने किया। इस अवसर पर अकादमी के अध्यक्ष श्री आनंदी प्रसाद बादल ने कहा कि बिहार ललित कला अकादमी राज्य के कलाकारों को प्रोत्साहित करने के लिए  कई कार्यक्रमों की योजना बनाई है जो आने वाले दिनों में कलाकारों एवं कला प्रेमियों को दिखेगा। 
FEAR: HORROR/ TERROR विषय पर आधारित इस प्रदर्शनी को राजेश पुल्लरवार ने क्यूरेट किया है तथा इसके संयोजक संजय कुमार हैं।  

सोमवार, 10 अगस्त 2015

अंतर्राष्ट्रीय स्तर की एक वृहद छपा कला प्रदर्शनी का आयोजन पटना में

पटना , 10 अगस्त , बिहार पिछले कुछ वर्षों से अपनी कला सम्बंधित कार्यक्रमों के लिए चर्चित रहा है। बिहार ललित कला अकादमी के गठन के बाद से कई कार्यक्रम हुए परन्तु पिछले एक वर्ष में कोई बड़ा कार्यक्रम सुनने में नहीं आया था। इस चुप्पी को तोड़ते हुए बिहार सरकार मुंबई की संस्था IPEP (अंतर्राष्ट्रीय प्रिंट एक्सचेंज प्रोग्राम ) के साथ मिल कर अंतर्राष्ट्रीय स्तर की एक वृहद छपा कला प्रदर्शनी का आयोजन करने जा रही है। इस प्रदर्शनी में 21 देशों के 55 छपा कलाकारों की कृतियाँ प्रदर्शित की जाएगी।  प्रदर्शनी को मुंबई के राजेश पुल्लरवार क्यूरेट कर रहे हैं ।

बहुद्देशीय सांस्कृतिक परिसर, पटना में आयोजित इस प्रदर्शनी का उद्घाटन  11 अगस्त को अंजनी कुमार सिंह (मुख्य सचिव बिहार सरकार) करेंगे।  प्रदर्शनी 16 अगस्त तक दर्शकों के लिए खुली रहेगी।    

रविवार, 9 अगस्त 2015

अपने बुनियाद को कायम रखते हुये बिनाले का परिदृष्य उभर रहा है: क्यूरेटर

मुंबई / कोच्चि, 8 अगस्त: कोच्चि- मुजिरिस बिनाले (केएमबी) का सौंदर्य धीरे-धीरे विकसित हो रहा है क्योंकि भारत का एकमात्र समकालीन कला महोत्सव कोच्चि की अव्यक्त महानगरीय भावना और तटीय क्षेत्र के औपनिवेशिक काल से पहले की शताब्दियों के सह-अस्तित्व के बहुसांस्कृतिक इतिहास को व्यक्त करने के अपने मूल विचार के साथ शुरू होने वाला है। देश के प्रमुख क्यूरेटरों ने इस बात का खुलासा किया।
कोच्चि बिनाले फाउंडेशन (केबीएफ) द्वारा केएमबी के आगामी (2016) संस्करण के लिए क्यूरेटर की घोषणा किये जाने के तीन सप्ताह बाद मुंबई में आयोजित एक पैनल चर्चा में वक्ताओं ने बिनाले के अपने अनुभवों को साझा किया और इसके संगठन के द्वारा सामना की जा रही चुनौतियों और अधिक से अधिक लोगों तक बड़े पैमाने पर विचारों को ले जाने की चुनौतियों पर चर्चा की।

From left to right: Prajna Desai, Art Historian, in conversation with Riyas Komu, Co-curator, Kochi-Muziris Biennale 2012 & Co-founder, Kochi Biennale Foundation, Sudarshan Shetty,Artistic Director & Curator, Kochi-Muziris Biennale 2016, Bose Krishnamachari, Co-curator, Kochi-Muziris Biennale 2012 & Co-founder, Kochi Biennale Foundation and Jitish Kallat,Artistic Director & Curator, Kochi-Muziris Biennale 2014.
कला इतिहासकार प्रज्ञा देसाई ने शुक्रवार की शाम को आयोजित इस चर्चा का संचालन किया जिसमें केएमबी (2012) के पहले संस्करण के सह-क्यूरेटर बोस कृष्णमाचारी और रियास कोमू ने अपने 2014 और 2016 के समकक्षों - जितिष कलात और सुदर्शन शेट्टी के साथ इस बात पर प्रकाश डाला कि किस प्रकार बिनाले ने कई समुचित विवेक एवं तर्क के साथ अपनी गुणवत्ता को बरकरार रखा है यहां तक कि मौसम के खराब होने पर भी इस आयोजन के पिछले दो संस्करणों में 9 लाख से कम दर्शक आने के बावजूद भी इसने अपनी गुणवत्ता को बरकार रखा।
80 मिनट की यह चर्चा केएमबी के पिछले दो संस्करणों के सार को पेश करने वाली एक लघु फिल्म के साथ शुरू हुई जिसकी शुरुआत कृष्णमाचारी के द्वारा भारत के पहले बिनाले की मेजबानी की योजना के प्रारंभ और 2010 में स्थापित केबीएफ के संघर्श और अंततः विजय को याद करते हुए हुई।
राष्ट्रीय आधुनिक कला दीर्घा में खचाखच भरे दर्शकों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘तब से, समकालीन कला के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने और भारत में कला तक अधिक से अधिक लोगों की पहुंच का विस्तार करने के प्रयास किये गये हैं। हम अपने द्वारा पेशकश किये गये कई सहयोगों पर अमल कर कार्यक्रमों और रेजीडेंजिस के आदान- प्रदान में भी संलग्न रहे हैं।’’
कृष्णमाचारी की तरह ही ख्याति प्राप्त और मुंबई में रहने वाले कलाकार कोमू ने कहा कि केएमबी एक मजबूत मंच रहा है और इसने भारत में समकालीन अंतरराष्ट्रीय दृश्य कला सिद्धांत और प्रथा को शुरू किया है और इसने कला के अनुभवों के अलावा नए भारतीय और अंतरराष्ट्रीय एस्थेटिक का प्रदर्शन और इस पर बहस किया है ताकि कलाकारों, क्यूरेटर और जनता के बीच एक संवाद कायम हो सके।
एक पुराने व्यापारिक बंदरगाह के रूप में कोच्चि के पूर्व और मौजूदा अनुभव में निहित विष्वबंधुत्व और आधुनिकता की एक नई भाषा का सृजन करने के लिए ‘पीपुल्स बिनाले’ के रूप में केएमबी के मूल मिशन की पुष्टि करते हुए, उन्होंने कहा कि तटीय केंद्रीय केरल शहर में छह शताब्दियों से अधिक समय तक कई सांप्रदायिक वर्ग के लिए संकट की घड़ी रही है। उन्होंने कहा, ‘‘कोच्चि भारत के वैसे कुछ शहरों में हैं जहां सांस्कृतिक बहुलवाद की पूर्व औपनिवेशिक परंपराओं का पनपना जारी है। ये परंपराएं सांस्कृतिक बहुलवाद, वैश्वीकरण और बहुसंस्कृतिवाद के पद-आत्मज्ञान के विचारों की परभक्षी हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘वास्तव में, वे 14 वीं सदी में बड़े पैमाने पर आयी बाढ़ के बाद कीचड़ और पौराणिक कथाओं की  रतों के नीचे दब गये प्राचीन शहर का पता लगा सकते हैं।’’
कलात को केएमबी के साथ अपने जुड़ाव के बारे में बोलने के लिये आमंत्रित करके मॉडरेटर देसाई ने चर्चा को  गले चरण में बढ़ाया। उन्होंने कहा कि भारत में बिनाले की सफलता की कहानी है और यह इसलिये भी महत्वपूर्ण है क्योंकि अभी तक इसके दो संस्करण ही हुये हैं।
मुंबई निवासी कलात ने कहा कि उनके द्वारा क्यूरेटर किया गया केएमबी’14 सिर्फ कोच्चि के बारे में ही नहीं था बल्कि कोच्चि से था। उन्होंने यह भी बताया कि कैसे अपने क्यूरेटोरियल वक्तव्य में ब्रह्माण्ड विज्ञान में अपनी गहरी रुचि के बारे में चर्चा की थी। दरअसल बिनाले की शक्ति उसकी नाजुकता में निहित है।
2016 बिनाले में संभावित कलाकारों के साथ संवाद आरंभ करने वाले शेट्टी ने कहा कि विस्तृत शोध एवं विभिन्न क्षेत्रों के अनेक लोगों के साथ संवाद जारी है। यह प्रयास भी बड़े पैमाने पर जारी है कि परम्परा और समकालीनता की धाराओं को पाटा जाये।
चर्चा के आखिरी चरण में दर्शकों के साथ संवाद आयोजित हुआ जिसमें वक्ताओं ने दर्शकों के सवालों के जवाब दिये। दर्शकों ने पूछा कि किस तरह से केबीएम कला शिक्षा को बढ़ावा देता है और कोच्चिं आखिर कैसे भारत के सदियों पुराने विश्वबंधुत्व में विषेश जगह रखता है और किस तरह से ऐसी वैकल्पिक ताकत वाला बिनाले हरेक के सहयोग के साथ निरंतर रूप से जारी है। 

बुधवार, 22 जुलाई 2015

Giant sculpture of Manipur’s mythical reptile on display at National Museum


42-day show lends Delhiites a rare peek at dragon-like Poubi Lai artwork
 
New Delhi, July 22: A refreshing inter-museum collaboration with focus on the fascinating heritage of a largely-ignored region has brought to the national capital a 21-foot-long wooden sculpture of a snake which is a celebrated icon in a remote belt of the country’s Northeast.
The one-object exhibition at National Museum (NM), which has just got on in a temporary gallery, throws light on a myth from Manipur’s Meitei tribe for whom the dragon-like hybrid animal has, for centuries been integral to their ethos but has only recently found shape in a tactile form.
‘Poubi Lai’, as the giant reptile is called by the ethnic group who speak a Sino-Tibetan language, is on a 42-day display at NM, courtesy the cooperation of Bhopal’s Indira Gandhi Rashtriya Manav Sangrahalaya (IGRMS) which owns the work that had its origin around the sprawling Loktak Lake off Moirang city, 45 km south of Manipur’s capital.
The man behind the 2003-created sculpture carved from a single log of wood is no more. Wood-carver Karam Dineshwar died a decade ago in his middle age, but the pioneering work first made it to Imphal before it became a permanent exhibit at IGRMS up on the Shyamala Hills in central India.
 
 
Today, it gives Delhiites their debut opportunity to take a peek at the ethnic object that has found its way to the first floor of NM. The July 21-August 31 exhibition was formally inaugurated on Tuesday evening by K.K Mittal, Additional Secretary to the Ministry of Culture, in the presence of NM Director-General Sanjiv Mittal and and Prof Sarit Kumar Chaudhuri who heads IGRMS.
 The show, where the brown Poubi Lai with scales all along and a pair of horns above its head, is placed on a green turf spread across a longish off-white pedestal. The gallery also features two dozen recent paintings essaying various tales about the myth besides a related short film that runs on a loop in an adjacent chamber.
 
Inaugurating ‘Poubi Lai: The Story of a Giant Python’, Mr K.K. Mittal said the collaboration would be a turning point in the inter-museum dynamics in India. “It will bring about great synchronisation and interesting opportunities to unveil several archives of the country,” he noted.
The NM Director-General, welcoming the gathering, said the Poubi Lai show in Delhi has been a result of the 2009-initiated museum reforms and the Leadership Training programme with British Museum. “Inter-institutional collaborations aim at taking community heritage to people across the country. This one-object exhibition is a wonderful example of such an initiative,” he added.
 Prof Chaudhuri, who is the director of the 1977-founded IGRMS, pointed out that Poubi Lai is a “perfect example how intangible heritage can be transformed into an evident piece”.
 R.P. Savita, who is NM’s Director (Conservation), proposed thanks at the session that was followed by a 30-minute dance-drama by 22 Manipur artistes who essayed the story of Poubi Lai.
 As for the ‘Poubi Lai’ sculptor, Karam Dineshwar was one of the successors of the royal family-associated Karigar craftspeople of present-day Bishnupur district. The artist had a dream of the mythical reptile one night in 2003, following which he worked on the image and completed it in six months.
 
The sculpture had its inaugural exhibition the same year at Manipur State Museum at Imphal. At IGRMS, it was subsequently slotted as an ‘Object of National Importance’, having been registered under the ‘AA’ category of Museum Collections.
 The last time the 1949-founded NM hosted a major single-object exhibition was almost two years ago when the museum displayed for 18 days an exquisite 10th-century stone sculpture of a ‘Yogini’ in September-October 2013. 

शनिवार, 4 जुलाई 2015

Museum institutes from India and Britain launch unique project to enhance visitors’ experience with art objects

·         Monks in Ladakh get crash course in museology

New Delhi, July 3: The exquisite sculpture of ‘Maitreyi’ Buddha, swathed in serene calmness, stands majestically in a monastic complex in the snow-capped Ladakh. The 40 ft high statue has for its company an assortment of objects — Thangkas, masks, big utensils — that are a visual delight for the visitors.
 
A Museum personnel explaining to visitors on handling of
replica objects at City Palace Museum, Jaipur
Miles apart and almost as an antithesis, the City Palace museum in Jaipur in the desert state of Rajasthan showcases an array of glistening weapons for defence and destruction that also brings hordes of visitors.

For a better understanding of the power of museum objects beyond face value and their connect with the visitors, two prominent museum institutes from India and the UK have been holding a series of field studies and workshops, the latest being in Ladakh last month. 

The ground-breaking research project, entitled “Things Encountered, Things Unbound: Objects engagements in museums in India and the UK”, is being jointly organised by the National Museum Institute (NMI), Delhi and University of Leicester, UK.

As part of the Ladakh project, a workshop was held at the Central Institute of Buddhist Studies (CIBS), Leh to deliberate upon the results of the visitor studies conducted at the Thiksey Monastery Complex, Ladakh. The workshop was jointly organised by the NMI and School of Museum Studies, University of Leicester.

“The project aims to investigate museum visitors’ engagements with objects in India, connect this with related research in the UK, and develop long-term collaboration between the two main partners (NMI and School of Museum Studies),” said Dr. Manvi Seth, HOD, Department of Museology, NMI who coordinated the project with Dr. Sandra Dudley, University of Leicester, UK.

“It is a pioneering project not only in India or the UK but perhaps anywhere in the world. A study of this kind of visitors’ engagement with objects has never been conducted before,” she added.

During the course of the project, field research in three different kinds of museums in India and the UK each is being done. It also involves training of museum students and professionals, besides extensive intellectual exchange in workshops in India and the UK. In addition, it explores the role of objects in museums, how visitors engage and have a dialogue with objects and how this may differ across cultural settings.

The first phase of the project was held at Jaipur in February and the second at the Thiksey Monastery Complex, Ladakh. Five research scholars from the NMI and three from Ladakh worked together for this project.

Mr. Rigzin Spalbar, Chief Executive Councillor, Ladakh Autonomous Hill Development Council, who was the chief guest at the workshop, said the project would help the monasteries and museums of Ladakh.

Monks attending the workshop at CIBS, Leh conducted by
 NMI and University of Leicester
“The work in museology training, documentation and handholding for projects in museum and heritage field being done by the NMI’s Department of Museology is immense. It has helped in creating unparalleled awareness amongst monasteries, museums and scholars in Ladakh,” he added.

The Department is also working on the ‘Documentation of Intangible Cultural Heritage of Ladakh Region’. Through this pilot project, the NMI is documenting age-old treasures in the field of performing arts (mask dancing, music); oral traditions (folk stories, songs, recitation of Buddhist verses);social traditions (birth ceremony, horse racing,festivals, cuisine, costumes); and knowledge about nature (agricultural practices, seasons, weather, medicinal plants).

Ven. Khenchen Tsewang Rigzin from Central Institute of Buddhist Studies, Ven. Lobzang Thapkas from Thiksey Monastery and Ven. Gyan Konchok Tashi, Secretary, Ladakh Gompa Association, graced the workshop.

“The monks present at the workshop would greatly benefit from this research. In fact, this kind of research can also work as a model for other monasteries,” said Ven. Rigzin.

Research work in progress at City Palace Museum, Jaipur
Highlighting the objectives of the research project, Dr. Manvi said museums are not just places for people to learn about history, but are also places of inspiration, transformation and engagement at many other levels.

“The power of objects needs to be understood beyond educational utility in museums,” she said, adding: “Not everyone comes to a museum to learn.”


 Dr. Sandra said that “through such studies we might be able to help museums and museology discipline to understand the visitors, objects, and their relationships better”.