नई दिल्ली, 16 अप्रैल: राष्ट्रीय संग्रहालय (एनएम) में आज से शुरू हुई संथाल समुदाय पर अद्वितीय प्रदर्शनी के उद्घाटन के अवसर पर, पश्चिम बंगाल के भांटु चित्रकार ने उंची सुर में गाये जाने वाले लोक गीत गाये। इस मौके पर उपस्थित लोगों ने देश की इस सबसे बड़ी जनजाति की विरासत का प्रत्यक्ष अनुभव लिया तथा लोक गीतों का भरपूर आनंद लिया।
पश्चिम मेदिनीपुर जिले के मध्यम वय के आदिवासी कलाकार ने अपनी आंखें बंद करके पूरी तल्लीनता के साथ अपना गायन प्रस्तुत किया। तस्वीरों से युक्त मिट्टी से सने भूरे रंग के पेपर राॅल को घुमाते हुये उन्होंने गीत गाये। ‘लय एवं सुर संगति: संथाल संगीत परंपराओं का प्रलेखन’ नामक इस प्रदर्शनी के उद्घाटन के अवसर पर यहां उपस्थित लोगों ने उनकी भव्य प्रस्तुति के लिए उनकी करतल ध्वनि से सराहना की।
राष्ट्रीय संग्रहालय में दिल्ली के शिल्प संग्रहालय, ज्यूरिख आधारित रीटबर्ग संग्रहालय और भोपाल के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय के सहयोग से आयोजित 32 दिवसीय प्रदर्शनी के शुभारंभ के अवसर पर केंद्रीय संस्कृति सचिव रवींद्र सिंह ने बुधवार की शाम समारोह में इसी शीर्षक पर प्रकाशित एक पुस्तक का विमोचन किया।
श्री सिंह ने कहा कि यहां संथाल के फिडल सरीखे वाद्य यंत्र ‘बानाम’ की पूरी श्रृंखला को प्रदर्शित किया गया है। उन्होंने कहा, ‘‘इस प्रदर्शनी का केंद्र अमूर्त विरासत है। उनकी संस्कृति के प्रलेखन को राष्ट्रीय राजधानी में एक नया मंच मिल गया है।’’
1949 में स्थापित राष्ट्रीय संग्रहालय के लिए भी यह बिल्कुल अलग तरह की प्रदर्शनी है। संग्रहालय में पहली बार नेत्रहीन दर्शकों को भी इस प्रदर्शनी की व्याख्या करने की सुविधा उपलब्ध होगी। एक ब्रेल बुकलेट, स्पर्श ग्राफिक्स और एक ऑडियो गाइड के माध्यम से नेत्रहीन दर्शक भी इसकी व्याख्या कर सकेंगे। ऐसा यूनेस्को और विकलांग लोगों के लिए काम कर रहा दिल्ली स्थित एक संगठन ‘सक्षम’ के सहयोग से संभव हुआ है।
उद्घाटन समारोह में प्रदर्शनी की क्यूरेटर डाॅ रुचिरा घोष, मुष्ताक खान, कृतिका नरूला, डाॅ. मेरी- ईव सेलियो- षीयुरर और डाॅ. जोहान्स बेल्ट्ज तथा भारत के लिए स्विस राजदूत डाॅ. लिनस वाम्न कास्टेलमुर जैसे गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे। डाॅ. लिनस वाम्न कास्टेलमुर ने कहा कि दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक गतिविधियों का आदान-प्रदान आधुनिक समय में काफी महत्व रखता है।
उन्होंने दोनों देशों के बीच तालमेल की संभावनाओं की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘स्विट्जरलैंड संस्कृति के संरक्षण को सर्वोच्च प्राथमिकता देता है, जबकि भारत की समृद्ध प्राचीन सभ्यता रही है और इसने कला, विज्ञान और गणित के क्षेत्र में दुनिया में योगदान दिया है।’’
वर्तमान प्रदर्शनी में 44 संथाली वाद्य यंत्रों (‘बानाम’, ‘तमक’ केतली ड्रम और क्षैतिज ‘मडाल’ सहित) को प्रदर्शित किया गया है। इसके अलावा यहां 1950 से साढ़े छह दशक तक की उनकी फोटो के अलावा अनोखी कठपुतली को भी प्रदर्शित किया गया है। यहां जनजाति की संस्कृति पर 1973 में बनी एक 27 मिनट की फिल्म को भी दिखाया जा रहा है और दर्शकों को 1914 में रिकार्ड किये गये संथाली संगीत के करीब तीन मिनट के नमूने (हेडफोन पर) को भी सुनाया जा रहा है।
‘लय एवं सुर संगति: संथाल संगीत परंपराओं का प्रलेखन’ नामक 120 पेज की पुस्तक में योगदान देने वाली संगीतज्ञ डाॅ. जयश्री बनर्जी ने बेहतरीन तस्वीरों के जरिये इस पुस्तक की शोभा बढ़ाई है। उन्होंने कहा कि संथाली मौखिक- श्रव्य विरासत को सहेजने की इस प्रक्रिया से झारखंड, पश्चिम बंगाल, बिहार और उड़ीसा जैसे पूर्वी राज्यों में उनके निवास स्थान के पुनरुद्धार की उम्मीद बनी है।
उन्होंने कहा कि संगीत की व्याख्या ऐसी स्वर शैली के रूप में की गयी है जिसे हारमोनियम, तबला या सिंथेसाइजर जैसे वाद्ययंत्रों से पैदा नहीं किया जा सकता है जिसका विकल्प काफी समय से तलाशा जा रहा है। उन्होंने कहा, ‘‘कुछ संथाली संगीत वाद्ययंत्रों को इसे बजाने वालों की कमी का सामना करना पड़ रहा है।’’
रिटबर्ग संग्रहालय के क्यूरेटर डाॅ. बेल्ट्ज ने कहा कि उनका संस्थान कला शिक्षा को बढ़ावा देने को इच्छुक है। उन्होंने कहा, ‘‘मुझे पूरा विश्वास है कि भारत की आदिवासी कला के गुण का दुनिया भर में प्रसार होगा।’’
राश्ट्रीय संग्रहालय की आर. पी. सविता ने सभा का स्वागत किया जबकि डाॅ. सेलियो- शियूरर ने धन्यवाद ज्ञापन दिया।
दीर्घा में, भांटु चित्रकार ने कहा कि उनकी पीठ पर मौजूद मोटे कपड़े से हाथ से बने कागज पर बनी उनकी दो मीटर लंबी स्क्राॅल पेंटिंग करीब तीन सदी पुरानी है। आर्थिक रूप से पिछड़े बसुदेबपुर गांव के दाढ़ी वाले कलाकार ने कहा, ‘‘मैंने अपने पिता मेहर चित्रकार से गायन और चित्रकला की कला सीखी है। राश्ट्रीय संग्रहालय में उनकी मदद करने के लिए उनके पुत्र सतीश भी उनके साथ हैं।
राश्ट्रीय संग्रहालय के महानिदेषक डाॅ. वेणु वी. ने कहा कि इस प्रदर्शनी ने संग्रहालय को खुद को दोहराने का मौका दिया है। यहां तकनीकों की मदद से संस्कृति को इस प्रकार प्रस्तुत किया गया है जैसा पहले शायद ही प्रदर्षित किया गया हो।
17 मई को समाप्त होने वाली हाॅल नंबर 2 में आयोजित यह प्रदर्शनी अपनी नृत्य और संगीत के लिए जानी जाने वासी संथाली संस्कृति के बारे में जानकारी प्रदान करती है। इसने भारत और दुनिया भर के विभिन्न हिस्सों से अनुसंधानकर्ताओं, और पर्यटकों को आकर्षित किया है।