शनिवार, 10 जनवरी 2015

कृष्णकृर्ति महोत्सव में कत्थक गुरू बिरजू महाराज ने अपनी नृत्य प्रस्तुतियों से दर्शकों का दिल जीता

प्रसिद्ध कत्थक हस्ती ने गायन किया, हारमोनियम बजाये और अपनी पुरानी यादों को साझा किया

हैदराबाद, 10 जनवरी: खचाखच भरे आडिटोरियम में तालियों के गड़गड़ाहट और वाह-वाही के बीच नृत्य प्रस्तुत करने के बाद, प्रसिद्ध कत्थक नृतक बिरजू महाराज ने जब माइक के पास आकर हिन्दी में अपना संबोधन दिया तब एक बार फिर पूरा हाल तालियों की जोरदार गड़गड़हाट से गूंज उठा। 
 Pandit Birju Maharaj 
हैदराबाद में चल रहे वार्षिक कृष्णकृति कला एवं संस्कृति महोत्सव के दौरान आयोजित समारोह में 76 वर्षीय प्रसिद्ध कत्थक नृतक बिरजू महाराज ने कहा, ‘‘मेरे चाचा हैदराबाद से हैं लेकिन मैं बहुत कम बार इस शहर में आया हूं। आप मुझे जितना प्यार करेंगे, उतना ही अधिक मैं यहां आउंगा। 
तालियों की गड़गड़हाट के बीच दिल्ली में रहने वाले नृतक ने कहा, ‘‘आपसे मिलकर बहुत खुशी हुयी। मैं आपको नये साल की बधाई देता हूं।’’
100 मिनट तक चले अपने कार्यक्रम के दौरान पंडितजी और उनकी मंडली ने उत्तर भारत के शास्त्रीय नृत्य की समृ़द्ध विरासत की झलक पेश की। इस मंडली में अपनी प्रमुख शिष्या सरस्वती सेन को खास तौर पर पेश किया। बिरजू महाराज को मौजूदा समय में उत्तर भारत की नृत्य शैली में महारत हासिल है जिसमें उनके जन्म स्थान लखनउ का घराना भी शामिल है। 
पद्म विभूषण से सम्मानित पंडित बिरजू महाराज को ठुमरी, टप्पा और भजन की हिन्दुस्तानी संगीत शैलियों में भी विशेषज्ञता हासिल है। उन्होंने शिल्प कला वेदिका में आयोजित समारोह में दर्शकों से कहा कि सुर-ताल मानवता की विशेषता है यहां तक कि सभी प्रमुख हिन्दू देवी-देवता भी किसी न किसी रूप में कला से जुड़े हैं। शुक्रवार की शाम को आयोजित अपनी नृत्य प्रस्तुति के दौरान उन्होंने भगवान कृष्ण और उनकी बाल लीलाओं के अलावा उनके साहसिक करतबों को प्रस्तुत किया। 
Kathak Maestro Pandit Birju Maharaj & troupe perform at
five-day 11th Krishnakriti Festival of Art & Culture in Hyderabad on
 Friday, January 9
अपने बातूनी स्वभाव के अनुसार 16 बीट की तीन ताल पेश करने वाले वादकों की अपनी टीम की ओर मुखातिब होते हुये उन्होंने मजाक में फाग मशीन की ओर इशारा करते हुये कहा, ‘‘ये धूम्र खतरनाक है।’’ इस पर सरस्वती ने जवाब दिया, ‘‘नहीं, ये अच्छा है।’’
इसके तुरंत बाद नारंगी रंग का कुर्ता पहने तथा लहराते लंबे बालों वाले नृतक गुरू ने गैट की विभिन्न श्रृंखलाओं को पेश किया जिसमें तबला के जरिये पदचापों को पेश किया गया। पंडित बिरजू महाराज ने कहा, ‘‘कत्थक में घुंघरू नायिका है जबकि तबला नायक है जो एक दूसरे के पीछे आता है।’’
तबला के संगत के अलावा हारमोनियम, सितार एवं सारंगी के साथ उन्होंने अपने कार्यक्रम के दौरान यह कहते हुये एक बार फिर मजाक किया कि वह गणित में कमजोर हैं लेकिन कत्थक गाटों के सम्मिश्रण एवं उच्चारण के किसी भी क्रम को बता सकते हैं। उन्होंने अपनी आखों को उपर की ओर उठाते हुये कहा, ‘‘ऐसा शायद ईश्वर की कृपा के कारण है।’’ 
यह कार्यक्रम पांच दिन तक चलने वाले 11 वें कृष्णकृति महोत्सव के तहत आयोजित हुआ जिसके तहत शीर्ष स्तर के नृत्य, संगीत, सिनेमा एवं पेंटिग को प्रस्तुत किया जा रहा है। इसके अलावा व्याख्यानों, संगोष्ठियों और कार्यशालाओं का भी आयोजन किया जा रहा है। इस महोत्सव का आयोजन 2004 में स्थापित कृष्णकृति फाउंडेशन की ओर से किया जा रहा है। फांडेशन की लेखा लाहोटी ने अपने स्वागत संबोधन में कहा, ‘‘कृष्णकृति कला को जनता तक तथा जनता को कला तक ले जाने के लिये प्रयासरत है।’’
कत्थक गुरू ने अपने प्रदर्शन के दौरान बताया कि वह अपने परिवार की सातवीं पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनका परिवार उनके पिता अच्छन महाराज के समय से ही कत्थक की सेवा में है। उनके पिता मध्य भारत के रायगढ़ (अब छत्तीसगढ़ में) रियासत में राज नृतक थे। वह कहते हैं, ‘‘आज मेरे पुत्र और मेरी पोती नृत्य के क्षेत्र में हैं। इस तरह से यह कत्थक परिवार की नौवी पीढ़ी है जो इस क्षेत्र में है।’’
Kathak Maestro Pandit Birju Maharaj & troupe perform at five-day 11th Krishnakriti Festival of Art & Culture in Hyderabad on Friday, January 9
कार्यक्रम के आखिरी हिस्से में सरस्वती ने तालियों की गड़गड़ाहट के बीच नृत्य पेश किया जिसके दौरान पंडित जी ने हारमोनियम बजाते हुये राग पटदीप में ‘‘मेरा मन’’ गाया। बाद में उन्होंने खुद अपनी कविता पर नृत्य किया - मैं जंगल की लड़की नहीं हूं।’’ इस नृत्य के दौरान सरस्वती के अलावा छह नृत्यांगनाओं  ने भी साथ दिया। 
कत्थक गुरू ने इस कार्यक्रम में हाथी और घोड़े की चाल को प्रस्तुत किया जिस पर खूब वाहवाही मिली। उपस्थित श्रोतागण खास तौर पर उस लय से अत्यधिक प्रभावित हुये जिस दौरान उन्होंने बचपन से लेकर जवानी और बुढ़ापे तक के जीवन के विभिन्न प्रसंगों को कलात्मक तरीके से पेश किया। 
यह कार्यक्रम सरस्वती की एक प्रस्तुति से शुरू हुआ जिसने 1977 में निर्मित सत्यजीत राय की फिल्म ‘‘सतरंज के खिलाड़ी’’ के उस नृत्य को पेश किया जिसके लिये पंडित जी ने संगीत दिया था और दो नृत्य रचनाओं के लिये गीत गाये थे। नीले परिधान पहनी हुयी सरस्वती बाद में म्युजिशियनों के साथ पंक्ति में बैठी और पंडित जी के नृत्य के लिये बोल दिये। 
07-11 जनवरी तक चलने वाला कृष्णकृति महोत्सव हैदराबाद, सिकंदराबाद और साइबराबाद में छह स्थानों में आयोजित किया जा रहा है और यह आम लोगों के लिये निःशुल्क है। इसके साथ-साथ एक विशाल कला शिविर का आयोजन हो रहा है जिसकी आय चैरिटी को दी जायेगी। 

शुक्रवार, 9 जनवरी 2015

अनेक धर्मों में आस्था रखने वाले वयोवृद्ध पेंटर सैयद हैदर रजा की कृतियां जीवन का उत्सव का प्रतीक हैं: अशोक वाजपेयी

हैदराबाद, 9 जनवरी: वयोवृद्ध सैयद हैदर रजा की कृतियां जीवन का उत्सव का प्रतीक हैं। विभिन्न धर्मों में आस्था रखने वाले इस कलाकार के द्वारा सृजित की गयी पेंटिंग मूक प्रार्थना के माध्यम से शांति प्रदान करती है। प्रसिद्ध साहित्यकार और दृश्य कला प्रेमी अशोक वाजपेयी ने राजा की कृतियों के प्रति इस प्रकार अपना विचार व्यक्त किया।
Ashok Vajpey
पिछले काफी समय से शय्याग्रस्त और अगले महीने अपने जीवन के 93 वर्ष को पूरा करने वाले पद्म विभूषण से सम्मानित कलाकार ने अपनी नजर खराब होने तक पेंटिंग बनाना जारी रखा। कवि वाजपेयी ने कहा, ‘‘हमें विस्मित करने के लिए, वह हमेशा सही रंग लेते थे और कैनवास पर उपयुक्त स्थानों में उन्हें भरते थे। उनकी पेंटिंग को देखकर ऐसा लगता है मानो उनकी उंगलियों  में भी दृष्टि है।’’
हैदराबाद शहर में आयोजित कृष्णकृति कला और संस्कृति वार्षिक महोत्सव के तहत शहर में आयोजित एक व्याख्यान में जाने माने सांस्कृतिक प्रबंधक ने कहा, ‘‘रजा मुझे आध्यात्म के दहलीज पर लेकर आये। भगवान में विश्वास नहीं रखने वाले मेरे जैसे व्यक्ति के साथ ऐसा होना अजीब बात है।’’
गुरुवार शाम को एलवी प्रसाद नत्रे संस्थान में पेंटर पर एक कवि का दृिष्टकोण’ विषय पर आयोजित एक व्याख्यान में, 73 वर्षीय वाजपेयी ने कहा कि पेरिस में 60 साल तक रहने वाले ‘मेरे बुंदेलखंडी साथी’ की कृतियां ‘मानव आत्मा के भूगोल को मापने’ का प्रयास हैं। वे पेरिस में सबसे लंबे समय तक रहने वाले भारतीय कलाकार हैं।
1979 से ही रजा के दोस्त रहे श्री वाजपेयी ने उन छणों को याद किया जब अंतर्राष्ट्रीय  सेलिब्रिटी को ‘अत्यंत उदार व्यक्ति’ करार दिया गया। वक्ता ने श्री रजा के खराब स्वास्थ्य के बारे में टेलीफोन पर हुई बातचीत सुनने पर एक आदिवासी चित्रकार को एक लाख रुपये सहायता देने के एक वाकये का हवाला देते हुए कहा कि इससे साथी कलाकारों आरै यहाँ  तक कि अजनबियों को भी उनके जीवन के किसी भी समय में मदद मिलेगी।
आलोचक, अनुवादक, संपादक और भारतीय और विदेशी संस्कृतियों के बीच बातचीत को बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत कार्यकर्ता वाजपेयी ने वर्तमान मध्य प्रदेश के जंगल के पास स्थित मण्डला जिले में ‘सौंदर्य और आतकं से भरे’ एक आदिवासी बेल्ट में रजा की परवरिश की एक तस्वीर पेश की। उसके बाद दुनिया भर में ख्याति और पुरस्कार प्राप्त करने के बाद 2010 में भारत लाटैने  से पहले उन्होंने उनके बम्बई आने और बाद में 1950 में पेरिस जाने  पर भी तस्वीर पेश की।
वाजपेयी ने उनके लंबे समय तक विदेशी फोन कॉल को याद करते हुए कहा, ‘‘फ्रांस में छह दशक तक निवास के दौरान भी, रजा की हिंदी साहित्य में रुचि बनी रही और वे इस क्षेत्र में हुए विकास के बारे में जानने को इच्छुक रहे। हालांकि, वह एक अनिच्छुक वक्ता बने रहे। वह हमेशा कहते थे कि उन्हें अपनी कृतियों को अभिव्यक्ति देनी होगी।’’ 
वाजपेयी के घंटे भर के भाषण के बाद सवाल-जवाब सत्र का आयोजन किया गया और उसके बाद तेलंगाना संस्कृति शोधकर्ता निर्मला बुलिका के द्वारा ‘कथा पत्रिका चित्रकारी परंपरा और समकालीन कला प्रथाओं पर उनके प्रभाव’ पर एक वार्ता का आयोजन किया गया। 
शाम में, अन्नपूर्णा इंटरनेशनल स्कूल आॅफ फिल्म एंड मीडिया की ओर से असम के उभरते मोबाइल रंगमंच पर एक वृत्तचित्र का प्रदर्शन किया गया। दिल्ली स्थित मेराजुर रहमान बरुआ के ‘नाइन मंथ्स’ शीर्षक वाली 70 मिनट की इस फिल्म में, पूर्वोत्तर राज्य में नए जमाने की उभरती रेपेरेटरी संस्कृति को दर्शाया गया, जहां सिनेमा देर से आया। 
असम के लखीमपुर जिले के निवासी, बरुआ ने अपनी फिल्म में दिखाया कि किस प्रकार 30 से अधिक मोबाइल थियेटरों ने उच्च प्रौद्योगिकी और दोहरे स्टेज का इस्तेमाल किया और राज्य भर में एक साल में 210 दिनों तक स्टेज शो का मंचन किया गया। इसके अलावा अच्युत लखार (जिन्होंने 1962 में मोबाइल थियेटर्स की कल्पना की), कला तकनीशियन अद्या सरमा और अभिनेत्री अनुपमा भट्टाचार्य जैसे प्रारंभिक साल के आइकनों के अलावा कई निर्देशकों के साक्षात्कारों को भी दिखाया गया। 
Mallika Sarabhai and her troupe present Sampradayam 
फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीच्यूट आॅफ इंडिया से फिल्म एप्रेसियेशन कोर्स करनेे के अलावा समाज शास्त्र में मास्टर और मास कम्युनिकेशन में डिप्लोमा करने वाले मध्यम आयु वाले बरुआ के अनुसार, ‘‘यह फिल्म इस बात पर प्रकाश डालती है कि मोबाइल थिएटरों ने किस प्रकार असम में कलाकार परिवारों की आजीविका को बेहतर बनाया, जहां थियेटर समूहों को अर्थव्यवस्था और सांस्कृतिक परिदृश्य पर मजबूत किया गया।’’ 2010 की कृतियां ढाई वर्षों में पूरी की गयी। 
गुरुवार को कृष्णाकृति महोत्सव कार्यक्रमों में जानी-मानी शास्त्रीय नर्तक-कार्यकर्ता मल्लिका साराभाई ने भी ‘सम्प्रदायम’ शीर्षक से एक भरतनाट्यम समूह प्रस्तुति पेश की।

गुरुवार, 8 जनवरी 2015

Tagore foresaw globalisation & its issues: speaker at Krishnakriti Fest

Rabindranath wanted art to free one from parochialism: Siva Kumar 

Hyderabad, Jan 8: Almost a century before globalisation became a vital feature of India economy, iconic cultural leader Rabindranath Tagore had sensed the prospect of the world coming together and paid attention to the issues involved in it, according to a leading art historian.

Prof R Siva Kumar of
 Visva-Bharati University, Santiniketan
The possibility of global cultural contacts was one focal of the Nobel laureate, who “saw it coming” when Raj-era India was fighting colonialism, pointed out Santiniketan professor R Siva Kumar of Visva-Bharati University which Tagore founded in his native West Bengal in 1921. 

Even so, humanity has not reached a stage today where the world is economically, politically or culturally homogenous irreversibly, even as India introduced liberalisation in 1991, he noted at the inaugural lecture of the ongoing Krishnakriti Annual Festival of Art and Culture in the city. “Cultural globalisation is still a value in the making or an ideology striving to gain intellectual hegemony. It is still only among many possibilities in our culture-scape,” he said in his talk titled ‘Negotiating the World with Rabindranath’ at Kalakriti Art Gallery in upscale Banjara Hills on late Wednesday evening. 

The 11th edition of the five-day Krishnakriti festival features top-notch dance, music, cinema and painting alongside talks, seminars and workshops. Being held in six venues of Hyderabad, Secunderabad and Cyberabad, the programmes are free for the public. The January 7-11 event is conducting a major art camp simultaneously, the proceeds of which will go for charity. 

At his opening talk which was succeeded by another lecture by renowned ontologist Navjyoti Singh, Prof Siva Kumar said that Tagore (1861-1941) was not, all the same, a dreamy poet. “He had a practical sense and a socially-rooted engagement with the local. At the same time, he argued that literature and art should be a means for liberating us from parochialism,” he added. 
.IIT-H professor Navjyoti Singh

To the speaker, Tagore saw the “other” not as a cultural threat but an angel of liberation. “He was not afraid of embracing the ‘other’ if it allowed one to be creative; he preferred to become creative through cultural assimilation to remaining culturally fossilised in the name of cultural purity,” Prof Siva Kumar said, adding: “This was his main quarrel with the artists of the Bengal School.” 

All the same, Tagore saw that a “dehumanising and standardising force of technology and commerce, and nationalism were closely interrelated. There is little space in both for what is not seen as profitable.” 

Overall, Tagore’s identity was not unitary but a constellation of memories, allegiances, debts and belongings even as his own life and creative work demonstrates that a thinking artist has a consciousness of man in his global condition, the speaker said. “Geography and history play on a part in his identity; it does not determine it wholly,” he added. 

Indian Institute of Technology-Hyderabad professor Navjyoti Singh, who is an expert in formal ontology, spoke on ‘Understanding the Origin of Art’ through a narrative of the story of Nagnajit, the Hindu mythological king of Kholsa. 

As an expert on scientific study of consciousness, foundations of logic, mathematics and linguistics, crossroads of science and Indian analytic traditions, history and philosophy of science, Prof Singh took an “owlish view” which sought for a “quick vision from very far”.
The evening also saw the screening a film on the hand-painted shawls of a community in the country’s tribal Northeast — at Annapurna International School of Film & Media in the city. This was followed by an interaction between the audience and Ruchika Negi, Delhi-based director of the 52-minute movie ‘Every Time You Tell A Story’, which narrates an over-the-centuries change in profile of Tsungkotepsu, the traditional head-hunter’s shawl, which used to be an honour for the Ao Nagas Naga tribesmen and is now a standardised product available in the market.

सदस्यों ने किया बादल का विरोध



चित्रकला के रेणु हैं आनंदी बादल


Biennale to launch ‘first of its kind’ mobile app for public

The app will give complete details of artworks, artists and activities of KBF



Kochi, Jan 8: The Kochi-Muziris Biennale 2014 is set to launch a first-of-its-kind mobile app, which will make the entire range of information on the cutting edge art extravaganza available to visitors literally at their fingertips.
The entire KMB ’14 exhibits have been charted out on the app. So when a visitor walks up to an installation, complete details on the artist and the artwork will pop up, in English or Malayalam, on the mobile, together with video links that feature interviews with the artist.

Designed by Sinergia Media Labs, the free app can be downloaded from the biennale website (kochimuzirisbiennale.org), iTunes or Google Play Store, and is available on iOS and Android.

The details scroll on the screen corresponding to the visitor’s route, with the artwork nearest the visitor appearing on top. Visitors can share details via Facebook from the venues, with personalised messages. Photos and selfies can be uploaded on a ‘Gallery’, a selection of which can be viewed by everyone who has downloaded the app.
The app, slated to be launched in a week’s time, also features location maps, which give visitors directions to each venue, and an overview of entire venues and installations. For instance, in a large area such as Aspinwall, which features 69 works, they know where they are standing and can locate any particular installation.
How does the technology work? Low energy bluetooth ‘beacons’, with a range of up to 50m, are discreetly placed at each art work, which send signals that push the relevant notification to the mobile device.
Apart from details on the artworks, the app will also provide information on the programmes of the day. The app, which is co-sponsored by Delhi-based Niv Art Centre, works most efficiently on 3G, and the Kochi Biennale Foundation (KBF) is in talks with service providers.
“This is the first time in India that an app of this nature has been built,” says Derrick Sebastian, CEO of the InfoPark-based startup. “We feel that apart from being a useful tool to visitors, the ‘share’ features will create a good momentum on the biennale.”
Director of communications Abhayan Varghese says that the app is yet another way to reach out to people and engage them in the activities of the KBF. “Not only will the app give insights and information on the biennale, but will be fully functional after the biennale and give people constant updates on the KBF,” he said. “We are committed to making our activities as participatory as possible and of the people.”  


The second edition of KMB seeks to transform Kochi into a “navigation deck” to look at the world from a distinct geographical, philosophical and artistic perspective. The app can now “navigate” the visitors to the biennale itself, thanks to technology.

बुधवार, 7 जनवरी 2015

श्रीकांत पाण्डेय के नए माध्यम में बने मूर्तियों की प्रदर्शनी की धमाकेदार शुरुआत

श्रीकांत पाण्डेय की फाईबर ग्लास एवं M-SEAL में बनी कृति 
नई दिल्ली, ७ जनवरी : भारतीय कला पटल पर एक बहुचर्चित नाम रहा है श्रीकांत पाण्डेय का। लगभग 30 वर्षों से संगमरमर माध्यम में काम करते हुए इन्होने भारतीय मूर्तिशिल्प में अपना अलग स्थान बना चुके हैं। पिछले कुछ वर्षों से इन्होनें संगमरमर के साथ-साथ कई दूसरे माध्यमों में अच्छे प्रयोग किये हैं। 
श्रीकांत पाण्डेय की इसी तरह के एक अलग माध्यम में बने प्रयोगात्मक मूर्तियों  की प्रदर्शनी का शुभारम्भ आज दिल्ली के ललित कला अकादमी में हुआ , जिसमें M-SEAL द्वारा बनी मूर्तियां कला प्रेमियों को बखूबी आकर्षित कर रही है। प्रदर्शनी में संगमरमर , फाइबर ग्लास एवं M-SEAL में बनी कुल 19  मूर्तियां  प्रदर्शित हैं। 5 दिनों तक चलने वाली "Struggle of Life" शीर्षक की इस प्रदर्शनी का समापन इस महीने की 12 तारीख को होगा।  

DCYT gets award as Krishnakriti fest starts with art talk, film show

Hyderabad, Jan 7: The 11th Krishnakriti Festival got off to a start here Wednesday evening with insightful lectures on art and a movie that threw light on a social practice of a tribal community from the country’s Northeast.
The inaugural session at Kalakriti Art Gallery in Banjara Hills also saw conferment of the 2014 Kalakriti Award for Achievement and Excellence to the Decentralised Cotton Yarn Trust (DCYT) for its efforts to resolve crucial issues facing the handloom industry by including spinners, dyers, weavers, farmers and ginners in a collective working environment.
Artist Laxman Aelay paints his signature on canvas
at the inauguration of Krishnakriti Annual Festival of Art
& Culture at Kalakriti Art Gallery, Hyderabad, o
In the presence of Krishnakriti Foundation Managing Trustee Prshant Lahoti, veteran actor Shankar Melkote handed over the award to Uzramma who heads the decade-old DCYT which seeks to revive a once-robust industry that embraced local culture and customs while celebrating nature. Author and political scientist Jyotirmay Sharma presented a memento to Uzramma.
The five-day festival ending on January 11 features top-notch dance, music, cinema and painting alongside talks, seminars and workshops. Being held in six venues of Hyderabad, Secunderabad and Cyberabad, the programmes are free for the public. The January 7-11 event is conducting a major art camp simultaneously, the proceeds of which will go for charity.
Fifteen artists at the camp and some speakers at the Krishnakriti festival painted their signatures — some with fancy images — on a white canvas on the stage at the opening session. Also, a short film on four winners of Kalakriti Award for Achievement and Excellence was screened.
Mr Lahoti said the proceeds from an auction at the art camp would go in the form of scholarships to the education of deserving and needy young art students and budding artists from across India. “Our philanthropy reaches to students through institutions in Hyderabad, Baroda, Santiniketan, Delhi and Bangalore,” he noted.
Ms Uzramma, in her speech, said 2005-founded DCYT’s mission has been to replace the capital-intensive mass-production mode of cotton yard production with small-scale localised yarn-making, compatible with the small scale of cotton farming and hand-weaving.
“We see the indigenous cotton textile as a low-carbon and clean industry for which India can earn international credit for emission reduction,” she added.
The function was followed by two talks: ‘Negotiating the World with Rabindranath Tagore’ (by art historian R Siva Kumar) and ‘Understanding Origin of Art’ (by ontologist Navjyoti Singh).
Later in the evening, a film on the hand-painted shawls of Ao Naga tribal men was screened at Annapurna International School of Film & Media. This was followed by an interaction between the audience and Ruchika Negi, Delhi-based director of the 52-minute movie ‘Every Time You Tell A Story’, which narrates an over-the-centuries change in profile of Tsungkotepsu, the traditional head-hunter’s shawl, which used to be an honour for the Ao Nagas tribesmen and is now a standardized product available in the market.
Uzramma of Decentralised Cotton Yarn Trust receives
 from actor Shankar Malkote the 2014 Kalakriti Award for
Achievement and Excellence, instituted by Krishnak
On Thursday, classical danseuse Mallika Sarabhai and her troupe will present ‘Sampradayam’ at Shilpa Kala Vedika in the evening.
In the afternoon (3.30 pm) at L V Prasad Eye Institute, poet Ashok Vajpeyi will speak on artist S H Raza, while scholar Nirmala Biluka will speak on narrative scroll painting traditions and their influence in contemporary art practices.
At evening (6.30 pm), documentary film ‘Nine Months’ will be staged at Annapurna International School of Film & Media, followed by audience interaction with the documentary-maker Merajur Rehman Baruah.
The earlier recipients of the Kalakriti Award for Achievement and Excellence are, besides Dr Melkote, cricketer V V S Laxman and medical expert Dr Mahesh Joshi.

Founded in 2004 in memory of art patron Krishnachandra B Lahoti, the foundation focuses on ‘art for education’ encourages innovative work in visual arts. Since 2008, it has been collaborating with French Embassy to send Indian students to that country for annual residency programs.

Greek culture flourished under the influence of Oriental civilizations: Experts

Three-day international seminar on ‘Cross Cultural Exchange in Antiquity’ begins at NMI

New Delhi, Jan 7: India experienced historical encounters with the Iranian, Greek and Chinese civilizations in pre-historic times with tremendous cross-cultural impact, a panel of historians and academicians from India and abroad told an international meet here today, making a strong case to further validate this phenomenon with rigorous historical research.
 
Dr. Venu Vasuden, VC, National Museum Institute,
delivering the welcome address on the inaugural day of the
3 days seminar at NMI today
The conclave of formidable array of historians also sought to debunk the colonial historical narrative that the oriental culture, which flourished in India, China and Iran, was greatly influenced by the Hellinistic culture of classical Greece. On the contrary, the Greek civilization reached its apogee when it came in contact with the Asian countries during the antiquity (5 BCE to 5 CE).

The interesting observation was made at the three days-seminar on “Cross Cultural Knowledge Exchange in Antiquity: Interactions between Greece, Iran, India and China”, which got underway at the National Museum Institute (NMI) here.

NMI is organising the multi-venue seminar as part of its Silver Jubilee celebrations and in collaboration with the Centre for Community Knowledge, Ambedkar University, Delhi and Indian National Science Academy (INSA), Delhi.    

Delivering the keynote address, Dr. U P Arora, Professor, Greek Studies, Jawaharlal Nehru University, New Delhi, said several historians from Europe had extolled the Greek civilization by saying that it greatly influenced the oriental cultures.

“Their conscious attempt to demean and degrade the oriental cultures continues in European discourse and books. It smacks of a blinkered view and grossly overlooks the seminal contributions of Iran to the Greek culture,” he said, adding: “It was through the Iranian empire that India and Greece came into contact with each other.”

Explaining, he said India, Bactria, Iran and Mesopotamia formed an ‘Oriental Continuum’ and Greece was part of it. “Greeks pride on Alexander the Great and their small police states, hailing them as examples of democracy in the pre-historic times. But the fact is Alexander destroyed democracy,” he contended.

“It is imperative for historians to look beyond the timeframe and geographical boundaries and reassess the interconnectedness of civilizations through multicultural perspectives,” he told the gathering that saw the attendance of Dr Satish Mehta, DG, Indian Council of Cultural Research (ICCR) , and Dr Lotika Varadarajan, noted historian and a Tagore Fellow.

In another keynote lecture, Dr. Daryoosh AkbarzadehProfessor, Iranian Studies, Teheran, said the texts and archaeological evidences from the Sasanian Empire (224-651 AD), the most significant milestone in ancient Iran, showed strong relations that Sasanian had with India, China and the Hellenic World.

“There are references of exchange of embassies between Iran and China during the Sasanian period. Further, When the Sasanian Empire collapsed, Zorastrians living in Iran were forced to migrate to India,” he said.

There was a continuous interplay of cultural elements between Greece, Iran, India and China, he noted. Substantiating, he said the images of Hindu god Shiva and his Nandi, the sacred bull, had distinct echoes in the Sasanian texts.

Earlier, in his welcome address, NMI Vice Chancellor Dr Venu Vasudevan said the seminar was a stellar example of partnerships between academicians and institutions across India and outside to look afresh into multiculturalism.        

He said the academic initiative would promote a more unified perspective, and help further collaboration of the discourse among ancient Indian, Iranian, Chinese and Greek studies as also in the study of a shared ancient cultural-cum-technological heritage of the modern world.

The seminar aims to view the past through presentations on Medicine, Mathematics and Astronomy, Trade Routes, Technology and Material Cultures, Epigraphy, Linguistics and Numismatics, Knowledge Systems, Institutions, Ideologies of faith, Culture, Tradition and Transmission.

Five presentations were made by historians and academicians on the inaugural day of the seminar. They included Prof. Ranbir Chakravarti (Situating a Buddhist Avadana Tale: South Asia’s links to West and Central Asia and the Eastern Mediterranean during 1-3 C.E); Dr He Zhang (The Significance of Hindu Iconography and Khotan-Saka Scripts in the Carpets of Tarim) and Prof. Naman Ahuja (The British Museum Hāritī: Towards Understanding Trans-culturalism in Gandhara).

The second day of the seminar will be held at the Ambedkar University tomorrowwhile INSA will host the valedictory proceedings on the concluding day (Jan. 9). 

मंगलवार, 6 जनवरी 2015

आनंदी प्रसाद बादल की कलाकृतियों की प्रदर्शनी का शुभारम्भ

पटना 6 जनवरी : पटना के बहुद्देशीय सांस्कृतिक परिसर स्थित बिहार ललित कला अकादमी की कला दीर्घा में वरिष्ठ कलाकार एवं बिहार ललित कला अकादमी के अध्यक्ष श्री आनंदी प्रसाद बादल की कलाकृतियों की प्रदर्शनी का उद्घाटन आज शाम हुआ। प्रदर्शनी का उद्घाटन  डॉ रामवचन राय ( सदस्य विधान परिषद ) ने किया। इस अवसर पर संस्कृति विभाग के सचिव श्री के. डी. प्रौज्ज्वल के अलावा अकादमी के अधिकारी तथा कई स्थानीय कलाकार भी उपस्थित थे। 
इस महीने की 11 तारीख तक चलने वाली इस प्रदर्शनी में श्री बादल की कुल 82 कलाकृतियों को प्रदर्शित किया गया है।  

डिसेंट्रलाइज्ड कॉटन यार्न ट्रस्ट (डीसीवाईटी) को कलाकृति एक्सेलेंस अवार्ड

हैदराबाद, 6 जनवरी: डिसेंट्रलाइज्ड कॉटन यार्न ट्रस्ट (डीसीवाईटी) को हैदराबाद स्थित सांस्कृतिक संगठन कलाकृति फाउंडेशन की ओर से वर्श 2014 के लिये उपलब्धि एवं उत्कृश्टता के लिये कलाकृति अवार्ड से सम्मानित किया जायेगा। डिसेंट्रलाइज्ड कॉटन यार्न ट्रस्ट (डीसीवाईटी) एक स्वैच्छि़क संस्था है जो हथकरघा उद्योग द्वारा सामना किये जा रहे़ महत्वपूर्ण मुद्दों को हल करने के लिए काम करती है। कृष्णाकृति फाउंडेशन के प्रमुख प्रशांत लाहोटी ने यह जानकारी देते हुये बताया कि कल (बुधवार, 7 जनवरी) से शुरू हो रहे पांच दिवसीय कृष्णाकृति कला और संस्कृति वार्षिक महोत्सव के उद्घाटन सत्र में डीसीवाईटी के प्रमुख उजराम्मा को यह पुरस्कार प्रदान किया जाएगा। एक दशक से सक्रिय डीसीवाईटी प्रकृति के साथ - साथ स्थानीय संस्कृति और रीति-रिवाजों को पुनजीर्वित करने के लिए काम करती है। 2003 में स्थापित कृष्णाकृति फाउंडेशन के प्रमुख न्यासी और अधिकारी शाम 5 बजे बंजारा हिल्स में कलाकृति आर्ट गैलरी में समारोह में उपस्थित रहेंगे। इससे पूर्व यह पुरस्कार प्राप्त करने वालों में अभिनेता डॉ. शंकर मेलोकटे, क्रिकेटर वी. वी. एस. लक्ष्मण और चिकित्सा विशेषज्ञ डॉ. महेश जोशी शामिल हैं। खेतों में कपास से यार्न बनाने की प्रक्रिया के लिए स्थापित छोटे पैमाने की इकाइयों के नेटवर्क वाला 2005 में स्थापित डीसीवाईटी अपनी ‘‘मल्खा’’ पहल के लिए जाना जाता है जिसका उद्देश्य सामूहिक काम के माहौल में स्पिनरों, डायर्स, बुनकरों, किसानों और रूई ओटने वालों को शामिल करना है। इसका मिशन सामूहिक स्वामित्व में और उनके द्वारा प्रबंधित एक विकेन्द्रीकृत, टिकाऊ, फील्ड- टू - फैब्रिक सूती वस्त्र श्रृंखला उपलब्ध कराना है। उजराम्मा 1989 से ही भारत के सूती कपड़ा उद्योग से जुड़ी रही हैं। वह योजना आयोग और प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा गठित हथकरघा उद्योग के लिए नीति समूहों की सदस्य रही हैं और उन्होंने कई व्याख्यान दिया है, संगोष्ठियां आयोजित की है और शिविरों का आयोजन किया है। श्री लाहोटी ने कहा कि मल्खा, मूल्यों और प्रथाओं के लिए समर्पित डीसीवाईटी ने कपड़े और वस्त्र की दुनिया में उल्लेखनीय मुकाम हासिल किया है। उन्होंने कहा, ‘‘इस तरह यह अमूल्य विरासत और एक अद्भुत परंपरा की रक्षा करने वाली एक महत्वपूर्ण शक्ति के रूप में उभरा है।’’ कृष्णाकृति महोत्सव के उद्घाटन सत्र में दो विद्वानों के द्वारा कला पर चर्चा भी की जाएगी। विश्व भारती के प्रोफेसर आर. शिव कुमार ‘रवीन्द्रनाथ टैगोर के साथ दुनिया का समझना’ पर व्याख्यान देंगे जबकि प्रोफेसर नवज्योति सिंह ‘कला के मूल को समझना’ पर एक शोध पत्र प्रस्तुत करेंगी।

National Museum Institute to organize three-day seminar on "Cross Cultural Knowledge Exchange in Antiquity”

Leading historians and academicians to participate in the seminar being held as part of NMI’s Silver Jubilee functions
New Delhi, Jan 6: As part of its Silver Jubilee celebrations, National Museum Institute (NMI) will organize a three-day seminar on "Cross Cultural Knowledge Exchange in Antiquity”, beginning here tomorrow, which provides a platform for leading historians and academicians from India and abroad to exchange ideas on the interactions between Greece, Iran, India and China in antiquity.
The seminar is being jointly organised by the Centre for Community Knowledge, Ambedkar University, Delhi; Indian National Science Academy (INSA), Delhi; and the NMI. The theme examines aspects of cooperation and mutual interplay between cultures, with a view to develop a unified perspective.
Dr Lotika Varadarajan, eminent Academic and Tagore scholar, is the Principal Investigator and Seminar Coordinator, and the Centre for Community Knowledge, Ambedkar University, is the main organiser.
Dr Venu Vasudevan, Vice Chancellor of NMI, said the historical encounters among ancient Indians, Iranians, Greeks and Chinese during 5 BCE to 5 CE had left a rich trail of literary, archaeological, epigraphic and numismatic evidence that show that knowledge transfer can be documented in the pre-literate past.
“The seminar will give an opportunity to the participants to come out with scholarly presentations and lectures to look at the subject in a refreshing manner,” noted Dr Vasudevan, who is also Director General of National Museum.
Dr Bipin Kumar Thakur, Registrar, NMI, said the academic initiative would promote a unified perspective and help further collaboration of the discourse among ancient Indian, Iranian, Chinese and Greek studies as also in the study of a shared ancient cultural-cum-technological heritage of the modern world.
The inaugural day of the seminar, to be held in the Conference Room of NMI, will view the past through presentations on a range of issues, such as Medicine, Mathematics and Astronomy, Trade Routes, Technology and Material Cultures, Epigraphy, Linguistics and Numismatics, Knowledge Systems, Ideologies of faith and Culture, Tradition and Transmission.
Two keynote lectures will be delivered by Dr. Daryoosh Akbarzadeh, Professor, Iranian Studies, Teheran, and Dr. U P Arora, Professor, Greek Studies, Jawaharlal Nehru University, New Delhi, respectively.
A number of presentations will be made at the seminar by academicians and historians. They include Prof. Ranbir Chakravarti (Situating a Buddhist Avadana Tale: South Asia’s links to West and Central Asia and the Eastern Mediterranean during 1-3 C.E.; Dr He Zhang (The Significance of Hindu Iconography and Khotan-Saka Scripts in the Carpets of Tarim) and Prof. Naman Ahuja (The British Museum Hāritī: Towards Understanding Trans-culturalism in Gandhara).
The second day of the seminar will be held at the Ambedkar University while the proceedings of the concluding day (Jan. 9) will be hosted by Indian National Science Academy.
On Day 2, Dr K K Chakravarty, Chairman, Lalit Kala Academy, New Delhi will deliver the keynote lecture while Dr Kishor K Basa, Dr. Up Arora, Prof. Li Shuicheng and Dr Azadeh Heidarpour will make presentations.
Video presentations will be made by Dr. Colin Renfrew (Prehistoric Antecedents of the Silk Road); Katyaoun Fekripour (The Mythical Creatures in Iranian and Indian Art) and Mr. Shambwatitya Ghosh (From Mitra to Surya: Forms of Sun Worship).

The Valedictory Session at INSA will be addressed by Mr. Surajit Sarkar, Dr Azadeh Heidarpour and Dr Lotika Varadarajan, Seminar Coordinator.

कोच्चि-मुजिरिस बिनाले में खिलौना गाड़ी की गतिशील छाया - आकृतियां दर्शकों में भर रही है रोमांच

 
जापानी कलाकार रियोटा के छाया-खेल बच्चों और वयस्कों दोनों को लुभा रहे हैं। 
कोच्चि, 6 जनवरी: अंदर एक अंधेरे कमरे में एक चमकदार छोटी सी खिलौनानुमा गाडी घूम रही है और तीन दीवारों और कमरे की छत पर पड़ती गाड़ी की छाया के कारण हर पल बदलती तस्बीरें सृजित हो रही है। यह इस कमरे में आने वाले दर्शकों को गाड़ी में बैठकर यात्रा करने सरीखा अनुभव प्रदान कर रहा है। यह सब कुछ दर्शकों को रोमांचित कर रहा है।


ऐतिहासिक बंदरगाह शहर कोच्चि में चल रहे कोच्चि-मुजिरिस बिनाले में प्रदर्शित रियोटा कुवाकुबो की यह प्रस्तुति बच्चे, युवा और बुजुर्ग सभी का आकर्शण का केन्द्र बनी हुयी है। छह मिनट में एक चक्कर पूरा करने वाली इस गाड़ी से आभासी यात्रा कई दर्शकों को इतना भा रही है कि वे बार-बार इसका अनुभव लेने के लिये वापस आ रहे हैं।
कमरे के दो दरवाजों में से एक दरवाजे से बाहर निकल रहे आठवी कक्षा का छात्र आदित्य मेनन कहता है, ‘‘यह वाकई मजेदार है। मैंने बार-बार इसे देखा। मैंने तीन बार इसे देखा।’’ उसकी मां प्रिया श्यामकुमार कहती हैं, ‘‘मैंने अभी अभी इसे देखा है। कमरे में मुझे थोड़ा पसीना भी आया। यह सब कुछ के अपने अर्थ हैं।’’
जापानी कलाकार ने कोच्चि मुजिरिस बिनाले के मुख्य प्रदर्शनी स्थल ‘‘एस्पिनवाल हाउस’’ में जो कुछ बनाया है वह बहुत ही सरल है। टोक्यो में रहने वाले रियोटा की गतिशील प्रदर्शनी का शीर्षक  ‘‘लास्ट रु 12 है। उसने खिलौना गाड़ी की पटरियों के साथ-साथ कोच्चि के सेंट्रल मार्केट से खरीदी गयी रोजमर्रे की सामग्रियों को सुनियोजित तरीके से रखा है।
केएमबी के क्यूरेटर जितिश कलात ने कहा, ‘‘जब चलती ट्रेन के पास से प्रकाश डाला जाता है तो बढ़ती और घटती छाया से बनती आकृतियां दर्शकों को मंत्रमुग्ध करती हैं। ये आकृतियां दर्शकों के शरीर के साथ सम्मिश्रित होती हैं।’’
इस प्रकार, ऊँची इमारतों में दिखाई देने वाले छोटे टंबलर, कपड़े की पंक्तियों के साथ इस्तेमाल किये गये औंधे प्लास्टिक क्लिप उन्हें जोड़ने वाली तारों के साथ बिजली के खंभे की तरह दिखते हैं और स्थिर मानव की तरह माॅल्ड अपने डिब्बे को पकड़ने की जल्दी में प्लेटफार्म पर दौड़ते यात्रियों की छाप छोड़ते हैं।
इसके अलावा, सब्जी की एक छिद्रित टोकरी है जिसका गोल सतह नीचे रखा है और ट्रेन बहुत नजाकत से थोड़े से कटे प्रवेश द्वार से गुजरती है। ऑटोमोबाइल के पास एक एकल बिन्दु प्रकाश स्रोत रखने पर, प्लास्टिक की वस्तु का आकार बढ़ने लगता है। दूसरी तरफ स्केच किये हुए वेब की तरह की छाया है जो पहले दीवार में फैलती है और फिर विपरीत दिशा में दीवार पर धीरे - धीरे समाप्त होने से पहले छत पर इधर - उधर फैल जाती है।
पीछे की यात्रा असाधारण रूप से धीमी है। वहां एक धातु के पिंजरे की तरह की एक अन्य वस्तु है जिसके साथ क्योटा जादू को दोहराते हैं, लेकिन इससे अलग प्रकार का अनुभव होता है। उसके बाद, एक मिनट या उसके तुरत बाद, ट्रेन तेज गति से रिवर्स होती है। इससे पहले देखी गयी वस्तुएं अलग वेग में फिर से प्रकट होती हैं। इस प्रकार नीचे की ओर यात्रा संचयी प्रभाव छोड़ती है।
होंशु के जापानी द्वीप पर शुकुबा विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र और मल्टीमीडिया कलाकार 43 वर्षीय क्योटा ने कहा, ‘‘दो संभावित दृष्टिकोण दर्शकों को अनुभव करने के लिए हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘वस्तुओं को इस प्रकार व्यवस्थित किया गया है ताकि जब उन पर छाया डाली जाए तो वे परिचित छवियों - शायद एक जंगल, या एक सुरंग या एक सिटीस्केप की याद दिलाए। प्रत्येक दर्शक अपने निजी अनुभवों के आधार पर अलग - अलग तरह से अनुभव कर सकता है।’’
रयोटा ने कहा, ‘‘इस प्रकार यह इंस्टालेशन दर्शकों के चेतन और अवचेतन के पुनःसंग्रह को इकट्टा करते हुए आत्म चिंतन के लिए जगह बनाता है। रयोटा का केएमबी कार्य उनकी 2010 की ‘द टेंथ सेंटिमेंट’ नामक इंस्टालेश के तर्ज पर माॅडल की गयी है जिसे टोक्यो में म्यूजियम आॅफ कंटेपररी आर्ट के द्वारा आयोजित साइबर आर्ट्स जापान एक्जिबिशन में प्रदर्शित की गयी थी।
गिफु प्रान्त में ओगाकी में इंटरनेशनल अकेडमी आॅफ मीडिया आर्ट्स एंड साइंसेज में भी अध्ययन करने वाले कयोटा का मानना है कि उनका केएमबी इंस्टालेशन दो कदाचित विपरीत दृश्य अनुभव -एक डिजिटल दायरे में और दूसरा शुद्ध एनालॉग से संबद्ध कर सकता है।
केएमबी’14 में कई लोगों के द्वारा, रयोटा के काम में चुप्पी का अनुभव एक बड़ी चर्चा का विषय बन गया है। 29 मार्च तक चलने वाली 108 दिन की इस प्रदर्शनी में 30 देशों के 94 कलाकारों की 100 मुख्य कलाकृतियों को प्रदर्शित किया गया है।

दिल्ली के मेट्रो स्टेशनों पर लगेगी कला प्रदर्शनी

प्रतीकात्मक तस्वीर

कला प्रेमियों के लिए दिल्ली मेट्रो से सफर करना अब और अच्छा अनुभव होगा क्योंकि कई स्टेशनों पर कलाकृतियों, तस्वीरों आदि की प्रदर्शनी लगाई जाएगी.
इसकी शुरुआत 15 जनवरी से होगी जब जोरबाग और मंडी हाउस दोनों मेट्रो स्टेशनों पर कई लाइटबॉक्स लगाए जाएंगे जो तस्वीरें, आर्टप्रिंट, वीडियो और डिजिटल कलाकृतियां से सजे होंगे.
इन कलाकृतियों के साथ अंग्रेजी और हिन्दी भाषा में इनकी जानकारी भी दी जाएगी. कलाकृतियों के हर तीन महीने में बदलने की उम्मीद है.

 

यह परियोजना इंडिया हैबिटेट सेंटर (आईएचसी) के ‘द हैबिटेट इनीशियेटिव: आर्ट इन पब्लिक स्पेसेज’ का हिस्सा है.
आईएचसी के निदेशक राकेश काकेर ने कहा, ‘आईएचसी हमेशा लोगों को आकर्षित करने वाले कार्यक्रमों के निर्माण में अग्रणी रहा है. एक नई नीति पहल के तहत हमने अब कला को सार्वजनिक स्थलों पर ले जाने का फैसला किया है और दिल्ली मेट्रो के साथ हमारा सहयोग इस दिशा में पहला कदम है.’ जनवरी से जोरबाग मेट्रो स्टेशन पर ‘द लॉग एक्सपोजर एट उदयपुर, 1857-1957’ प्रदर्शनी की तस्वीरें तीन लाइटबॉक्सों में प्रदर्शित की जाएंगी.
परियोजना की क्यूरेटर अलका पांडे ने बताया कि मार्च महीने में मंडी हाउस मेट्रो स्टेशन पर तरुण छाबड़ा की होली से जुड़ी तस्वीरें लगायी जाएंगी.
- इनपुट भाषा
सौजन्य :
http://aajtak.intoday.in

http://aajtak.intoday.in/story/art-photographs-digital-works-at-delhi-metro-stations-1-794146.html

सोमवार, 5 जनवरी 2015

बिनाले में भारतीय डाक स्टाल में पोस्टकार्ड और पत्र लिखने की भावना को फिर से किया जा रहा है जागृत

 विदेशियों ने अपने प्रियजनों को पोस्टकार्ड लिखने के लिए स्टाल पर एक बीलाइन बनाया

कोच्चि, 5 जनवरी: ऐसे समय में जब ईमेल और ई-चैट ने लोगों के संचार साधनों पर विजय प्राप्त कर लिया है, कोच्चि मुजिरिस बिनाले (केएमबी) में पोस्टकार्ड और पत्र लिखने की भावना को जागृत करने के लिए एक साहसिक प्रयास किया जा रहा है। समकालीन कला महोत्सव में किया जा रहा यह प्रयास आगंतुकों, विशेषकर विदेशियों में काफी लोकप्रिय हो रहा है।
Visitors at the India Post stall set up at
Aspinwall House, the main venue of
Kochi Muziris Biennale in Fort Kochi 
on Monday
केएमबी के सहयोग से डाक विभाग द्वारा बिनाले के मुख्य आयोजन स्थल फोर्ट कोच्चि के एस्पिनवाल हाउस में स्थापित एक एक्सटेंशन काउंटर पर पिछले दो सप्ताह से काफी भीड़ - भाड़ वाला माहौल है। अपने प्रियजनों को कुछ वाक्य लिखने के लिए पोस्टकार्ड और अंतर्देशीय खरीदने और लिखकर उन्हें स्टाल पर ही रखे पोस्ट बाॅक्स में डालने के लिए यहां अधिक से अधिक लोग आ रहे हैं।
स्टाल पर लाल रंग वाले सभी आइकाॅनिक पोस्ट बाॅक्स बीते दिनों की याद दिला रहे हैं। ये उस समय की याद दिला रहे हैं जब ये बाॅक्स लोगों के दिल के काफी करीब थे और सार्थक पत्राचार का एक महत्वपूर्ण साधन थे।

काउंटर पर डाक सहायक ने कहा, ‘‘हमने यह कभी उम्मीद नहीं की थी कि विदेशी लोग पत्र और पोस्टकार्ड लिखने में इतनी रुचि दिखायेंगे। औसतन 30 लोग काउंटर पर सेवाओं का उपयोग कर रहे हैं और उनमें से अधिकतर विदेशी हैं।’’
डाक विभाग ने इस बड़े कला समारोह का हिस्सा बनने का निर्णय इसलिए लिया क्योंकि उसे प्रतिष्ठित भारतीय डाक का प्रदर्शन के लिए सही मंच प्रदान किया गया। एर्नाकुलम पोस्ट मास्टर जनरल एम. वेंकटाशरूलु ने कहा, ‘‘वास्तव में, हम अपने विभिन्न उत्पादों को लोगों के लिए प्रदर्शित करना चाहते हैं।  हमें इस बात से बेहद खुशी है कि लोग अभी भी पत्र और पोस्टकार्ड लिखना पसंद करते हैं जो वर्तमान ई-संचार के परिदृश्य में एक खो चुकी कला बन कर रह गयी है।’’
केएमबी’14 के कार्यक्रम निदेशक रियास कामू ने कहा कि बिनाले हमेशा से संस्कृति, कला और इतिहास का एक केन्द्र बिन्दु रहा है। उन्होंने कहा, ‘‘अंतर्देशीय पत्र और पोस्ट कार्ड हमेशा हमारे दिल के बहुत करीब रहे हैं। लेकिन इंटरनेट और मोबाइल फोन के आगमन के साथ, हमारे परिदृश्य को रोशन करने वाले ये अंतर्देशीय और पोस्टकार्ड 19 वीं सदी के आखिरी सालों से, लाल बाॅक्स केे विशिष्ट छाये के साथ गुमनामी में चले गये है।
भारत और विदेशों के 94 कलाकारों के 100 मुख्य कार्यों को प्रदर्शित करने वाला केएमबी’14 का समापन 29 मार्च को होगा।

कृष्णाकृति महोत्सव में कला संगोष्ठियों के साथ नृत्य, संगीत और सिनेमा का आनंद

हैदराबाद में छह स्थानों पर 7-11 जनवरी के दौरान आयोजित होने वाला महोत्सव कला शिक्षा पर केंद्रित होगा

हैदराबाद, 5 जनवरी: मोतियों के लिए विख्यात हैदराबाद शहर में इस सप्ताह कला - सौंदर्य की बहार आने वाली है। हैदराबाद में बुधवार 7 जनवरी से सुप्रसिद्ध कृष्णाकृति वार्षिक कला और संस्कृति महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है जिसके तहत वार्ता, सेमिनारों और कार्यशालाओं के अलावा सुप्रसिद्ध नृत्य, संगीत, सिनेमा, चित्रकला और साहित्य पर आधारित विभिन्न गतिविधियों का आयोजन किया जाएगा।

आयोजकों ने आज कहा कि हैदराबाद, सिकंदराबाद और साइबराबाद में सात स्थानों पर 7 से 11 जनवरी तक आयोजित इस कला एवं संस्कृति के महोत्सव में आम लोगों के लिए प्रवेश निःशुल्क है। हालांकि इस महोत्सव में कई प्रकार के लाइव शो का आयोजन किया जा रहा है लेकिन इसे मुख्य रूप से कला शिविर के आसपास केंद्रित किया जा रहा है। इससे प्राप्त आय दान दे दी जाएगी।

कृष्णाकृति फाउंडेशन के प्रमुख प्रशांत लाहोटी ने आज यहां बताया कि सुप्रसिद्ध शास्त्रीय नर्तक बिरजू महाराज और मल्लिका साराभाई इस 11वें पांच दिवसीय महोत्सव में दो दिन संध्या में अपना प्रदर्शन करेंगे।

इस महोत्सव को कला संरक्षक कृष्णचंद्र बी. लाहोटी की स्मृति में 2003 में स्थापित फाउंडेशन के द्वारा आयोजित किया जा रहा है। इस महोत्सव का उद्देश्य सिर्फ अपने प्रदर्शन की बजाय कला और संस्कृति पर लोगों को प्रशिक्षित करना है। उन्होंने कहा, ‘‘यही कारण है कि हमने कला पर शिविर का आयोजन किया है, जिसके तहत विभिन्न विषयों, कार्यशालाओं, वाद - विवाद, संगोष्ठियों, व्याख्यानों और इसी तरह के अन्य पहलुओं पर प्रस्तुतीकरण पेश की जाएगी।

कृष्णाकृति महोत्सव का एक दशक लंबा ट्रैक रिकॉर्ड है। इसने कॉर्पोरेट घरानों और खुद कलाकारों के अलावा छात्रों और देश से बाहर रह रहे काफी कला प्रेमी दर्शकों को सदा ही आकर्षित किया है।
इस बार, महोत्सव और कला शिविर के उद्घाटन के बादकलाकृति अवार्ड फाॅर एचीवमेंट एंड एक्सेलेंसप्रस्तुत किया जाएगा। बंजारा हिल्स में कलाकृति आर्ट गैलरी में शाम 5 बजे आयोजित इस सत्र के बाद दो वार्ता: रवींद्रनाथ टैगोर के साथ विश्व वार्ता’ (कला इतिहासकार आर. शिव कुमार के द्वारा) औरकला की उत्पत्ति को समझना (तात्विकी विशेषज्ञ नवज्योति सिंह के द्वारा) आयोजित की जाएगी।

दूसरे दिन, अहमदाबाद स्थित मल्लिका साराभाई और उनकी मंडली शिल्पकला वेदिका मेंसम्प्रदायमपेश करेंगे। अगली शाम, बुजुर्ग उस्ताद बिरजू महाराज कत्थक नृत्य से उसी स्थल की शोभा बढ़ाएंगे।

अन्नपूर्णा इंटरनेशनल स्कूल आॅफ फिल्म एंड मीडिया में भी इन पांच दिन कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा जिसके तहत वृत्तचित्र की स्क्रीनिंग, निर्देशकों के साथ बातचीत और फिल्म निर्माण कार्यशालाओं का आयोजन किया जाएगा। अपनी कृतियों के प्रदर्शन के बाद सभा को संबोधित करने वाले फिल्म निर्माताओं में रुचिका नेगी (एवरी टाइम यू टेल स्टोरी), मेराजूर रहमान बरुआ (नाइन मंथ्स), सबा देवन ( अदर सांग), नीता जैन दुहौत (सुरभि) और गौतम पेम्माराजू (क्या है कि, क्या नही है कि: दखानी) शाकमल होंगे। एल. वी. प्रसाद नेत्र संस्थान 8 जनवरी से हर दिन वार्ता और प्रस्तुति में शामिल होगा जिसका शुरुआत प्रख्यात कवि अशोक वाजपेयी कलाकार एस. एच. रजा पर व्याख्यान के साथ होगी। इसके बाद निर्मला बिलुका कानैरेटिव स्क्राॅल पेंटिंग परंपराएं और समकालीन कला प्रथाओं पर उनके प्रभावविषय पर व्याख्यान होगा।

9 जनवरी को ‘1930 के दशक के शुरुआत से आज तक के कार्य’ (कार्ल अंटाओ) औरभारत में आधुनिक कला (पार्थ मिटेर) पर वार्ता आयोजित की जाएगी। 10 जनवरी कोएक पेंटर की यात्रा’ (50 वर्ष की) पर अर्पणा कौर की वार्ता का आयोजन किया जाएगा और उसके बाद परमजीत सिंह की कला पर अमित दत्ता की फिल्म दिखायी जाएगी। अंतिम दिन, मुंबई के कलाकार चिंतन उपाध्याय की एक प्रस्तुति के बाद लाहौर आधारित क्यूरेटर-लेखक नाजिश अता-उल्लाहपाकिस्तान में समकालीन कलापर बात करेंगे।

11 जनवरी को नई प्रौद्योगिकियों और पारंपरिक कला का उपयोग करने वाले फ्रांसीसी कलाकार बी2फेज द्वारा तीन प्रर्दशर्नियों की शुरुआत की जाएगी। कलाकृति गैलरी मेंनोमाड्स आॅफ मेमोरीज’ (पेंटिंग) और एलायंस फ्रैंकेसे में एक इंटरेक्टिव मीडिया इंस्टालेशन का समापन 21 जनवरी हो होगा, जबकि गोएथे जेन्ट्रम में शो का समापन 19 जनवरी को होगा।


लाहोटी ने कहा कि कृष्णाकृति फाउंडेशन ने पिछले एक दशक में 150 छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान किया है। ‘‘इसके अलावा, हमने फ्रांस की सरकार के साथ एक टाई-अप किया है जिसके तहत हर साल हमारे दो भारतीय छात्रों को कला पाठ्यक्रमों के लिए यूरोपीय देश भेजा जाता है जिसका खर्च फ्रांस की सरकार वहन करती है।