बुधवार, 12 अगस्त 2015

राष्ट्रीय संग्रहालय में प्राचीन नक्शों की अनूठी प्रदर्शनी का शुभारंभ

नई दिल्ली, 12 अगस्त: राजधानी में शुरू हुयी प्राचीन नक्शों की एक अनोखी प्रदर्शनी पृथ्वी के सही भौतिक चित्रण के लिए सदियों से अनवरत जारी मानव की अथक कोशिश को उजागर करेगी। यह प्रदर्शनी भारतीय उपमहाद्वीप के प्रयोगात्मक ब्रह्माण्डीय निरूपण से लेकर भौगोलिक चित्रण की विकास यात्रा को भी रेखांकित करेगी।
Exhibition view of Cosmology to Cartography
केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन राज्य मंत्री डॉ. महेश शर्मा ने राष्ट्रीय संग्रहालय (एनएम) के सहयोग से हैदराबाद स्थित कलाकृति आर्काइव द्वारा आयोजित दो महीने तक चलने वाली भारतीय मानचित्रों की सांस्कृतिक यात्रा’ प्रदर्शनी का उद्घाटन किया। राष्ट्रिय संग्रहालय ने काली दीवारों और कहीं- कहीं लाल प्राॅप के साथ अभिनव डिजाइनों से सुसज्जित गैलरी में प्रदर्शित 72 नक्षों में से दो नक़्शे उपलब्ध कराये हैं।
भारत के लिए अमरीकी राजदूत रिचर्ड वर्मा और केंद्रीय संस्कृति सचिव नरेंद्र कुमार सिन्हा की उपस्थिति में मंगलवार शाम को इस प्रदर्शनी का शुभारंभ किया गया। इस दौरान मंत्री ने कहा कि यह प्रदर्शनी ब्रह्मांड और परिदृश्य का चित्रण करते हुए पुरानी पीढि़यों की क्षमता का प्रदर्शन करती है।
जर्मन मानचित्रकार डॉ. अलेक्जेंडर जॉनसन के साथ लंदन वासी भारतीय वास्तुकार डॉ. विवेक नंदा द्वारा क्यूरेट की गयी और विषयगत क्रम में सुरुचिपूर्ण ढंग से प्रदर्शित की गयी इस प्रदर्शनी के बारे में उन्होंने कहा, ‘‘आज के युवाओं को इस मिशन को आगे ले जाना चाहिए।’’ कलाकृति द्वारा आयोजित इसी तरह की एक प्रदर्शनी इस गर्मी के प्रारंभ में समाप्त हो चुके दूसरे कोच्चि- मुजिरिस बिनाले पर प्रकाश डालती है।
कला और विरासत के प्रमोटर प्रषांत लाहोटी के नेतृत्व में प्रारंभ किया गया कलाकृति आर्काइव ऐतिहासिक नक्शों का देश का सबसे व्यापक निजी संग्रह है। डिजाइनिंग फर्म चलाने वाले सिद्धार्थ चटर्जी ने गैलरी का नक्शा तैयार किया था।
Map 1d. Rajasthan, 18th Century, 115 x 120cm, Opaque watercolor on cotton
15 वीं शताब्दी के प्रारंभ की अपनी सबसे पुरानी कृति के अलावा 10 फीट गुना 15 फीट के सबसे बड़े आकार में कलाकृति को प्रदर्शित करने वाली प्रदर्शनी के बारे में राजनयिक श्री रिचर्ड वर्मा ने कहा कि प्रदर्शनी में 15वीं शताब्दी के नक़्शे प्रतिनिधित्व किये गये स्थानों के आधुनिक दिनों के उपग्रह चित्रों के समतुल्य आने में सफल रहे हैं ।
1980 बैच के आईएएस अधिकारी श्री सिन्हा ने देश भर में संग्रहालय के संग्रह के त्वरित डिजिटलीकरण का आह्वान करते हुये कहा, ‘‘भविष्य की पीढि़यों के कल्याण के लिए यह प्रक्रिया पहले से ही जारी है।’’
सभा का स्वागत करते हुए राष्ट्रीय संग्रहालय के महानिदेशक संजीव मित्तल ने कलाकृति आर्काइव के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि इसके संग्रह जनता के लिए खुले हैं। उन्होंने कहा, ‘‘कई निजी संग्राहक ऐसा नहीं करते हैं।’’
श्री लाहोटी ने अपने संबोधन में, जोर देते हुए कहा कि ऐतिहासिक नक्शे के संग्रह को न सिर्फ जुनून की जरूरत है बल्कि दर्द और परेशानी का तत्परता से सामना करने की भी जरूरत है। 
Release of Catalogue on Cosmology to Cartography
इस समय जारी प्रदर्शनी प्रतिस्पर्धात्मक वैष्विक हितों तथा उन धार्मिक, आर्थिक एवं राजनीतिक प्रभावों को भी दर्शाएगी जिन्होंने मौजूदा दृश्टिकोण के अनुसार ’’भारत’’ की अवधारणा के विकास में योगदान दिया। इस प्रदर्शनी में भारतीय छपाई उद्याग के विकास को भी दर्शाया गया है, जिसे हालाकि यूरोप के लोगों के द्वारा स्थापित किया गया था, लेकिन इस पर भारतीय कलात्मक शैली और प्रौद्योगिकी का काफी प्रभाव पड़ा।
12 साल से ऐतिहासिक नक्शे का संग्रह करने वाले और 2002 में कलाकृति आर्ट गैलरी का शुभारंभ करने वाले लाहोटी ने कहा, ‘‘यहां भारत के अभूतपूर्व ऐतिहासिक नक़्शे के साथ 15 वीं से 19 वीं सदी के गहरे धार्मिक प्रतीकों के स्मारकीय मूल चित्र भी प्रदर्शित किये गये हैं।’’
11 अक्टूबर तक चलने वाली यह प्रदर्शनी मूल पांडुलिपि की प्रतिलिपियों सहित उपमहाद्वीप और कई देशों में पेंट किए गए और मुद्रित भारतीय नक़्शे जैसे विभिन्न प्रकार के समृद्ध स्रोतों को प्रदर्शित करती है। इस प्रदर्शनी में 19 वीं शताब्दी के शुरुआत तक 400 साल तक की अवधि के दौरान जैन और हिंदू के ब्रह्माण्ड संबंधी निरूपण तथा उनकी सीमाओं, पवित्र नदियों और तीर्थ स्थलों के चित्रण से लेकर उपमहाद्वीप की प्राचीन यूरोपीय अवधारणाओ के कार्टोग्राफिक चित्रण को प्रदर्शित किया गया है।
गैलरी में यात्रा कार्यक्रम उपमहाद्वीप के प्राचीन यूरोपीय विचारों के कार्टोग्राफिक चित्रण के साथ जारी है, और भारत का पहला थोड़ा सटीक नक्शा 1498 में वास्को दा गामा के आगमन से 16 साल पहले बनाया गया था। यह प्रदर्शनी विभिन्न यूरोपीय शक्तियों के द्वारा अपने वर्चस्व के लिए सैन्य प्रतिस्पर्धाओं के तहत नक्षा बनाने की कला के विकास और राज-युग के दौरान नक्शा बनाने वालों के माध्यम से भारत के कार्टोग्राफिक समेकन को प्रस्तुत करती है।
दर्शक भारतीय उपमहाद्वीप पर नियंत्रण के लिए कई यूरोपीय शक्तियों और विभिन्न महान भारतीय राज्यों के बीच नाटकीय और जटिल संघर्ष को दर्शाने वाले शक्तिशाली ग्राफिक अभ्यावेदन को देखने के लिए उत्साहित हैं।
Union Minister of State for Culture and Tourism Dr Mahesh Sharma (right)
inaugurating the exhibition along with Dr Vivek Nanda (centre)
 and Dr Alexandar Johnson (left)
उदाहरण के लिए, 16 वीं शताब्दी में पुर्तगाल को भारत के साथ यूरोपीय बातचीत पर एक आभासी एकाधिकार का आनंद लेते देखा जा सकता है। हालांकि, 1600 के दशक के शुरूआत से, भारत में नई शक्तियां पहुंची और ब्रिटिश, डच, फ्रेंच, डेनमार्क और फ्लेमिश के नक्शे उनके प्रयासों और विभिन्न भारतीय शक्तियों के साथ उनकी जटिल बातचीत को दर्शाते हैं। भारत का आधुनिक, पहचानने योग्य रूप जर्मनी, इटली, इंग्लैंड और तुर्क तुर्की में मुद्रित कार्यों के माध्यम से इस अवधि में पहली बार देखने में आया।
‘ब्रह्माण्ड विज्ञान से लेकर मानचित्रण’ में वैसे नक़्शे भी शामिल हैं जो भारत पर प्रभुत्व के लिये फ्रांस और ब्रिटेन के बीच के उन युद्धों को दर्शाते हैं, जिनका समर्थन उनके भारतीय सहयोगियों ने किया। उप महाद्वीप पर ब्रिटिश प्रभुत्व के साथ भारत के सटीक सामान्य नक्शे बनाने के लिए वैज्ञानिक तरीकों का उपयोग भी शुरू हुआ, जिसका उपयोग ‘राज’ के निर्माण का समर्थन करने वाली सैन्य और न्यायिक शक्ति के माध्यमों के रूप में किया गया।
देश की सैन्य पांडुलिपि नक़्शे के बेहतरीन जीवंत संग्रह में से एक, कलाकृति आर्काइव्स ने, भारत में अपना नियंत्रण मजबूत करने के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी के संघर्ष का पता लगाने वाले नक्षे को भी प्रदर्शित किया है। ये नक़्शे पहले रेलवे के पूरा होने  के रूप में भारतीय समाज और अर्थव्यवस्था में क्रांति आने जैसे नवाचारों की कहानी बयां करते हैं।
प्रभावशाली मानचित्रकारी भारत की समृद्ध बौद्धिक प्रतिभा को प्रदर्शित करती है। हालांकि, भारत के लोगों को अपनी इस विरासत पर अपने स्वामित्व के लिये 1947 में भारत की आजादी तक इंतजार करना पड़ा।
Union Minister of State for Culture and Tourism Dr Mahesh Sharma
viewing the exhibition
प्रदर्शनी के अंत में वैसे नक़्शे हैं जो भारतीय शहर के निर्माण का संकेत देते हैं। इनमें मध्ययुगीन हैदराबाद और बंगलौर, और फ्रेंच पांडिचेरी के मॉडल शामिल हैं। दर्शक इस प्रदर्शनी में मुंबई, कोलकाता और दिल्ली सहित भविष्य के भारतीय महानगरों की असाधारण योजनाओं की खोज भी कर सकते हैं। राष्ट्रीय संग्रहालय के संग्रह से लिये गये दो नक्शों में से एक नक्शा भगवान कृष्ण की 18 वीं शताब्दी की राजस्थानी तस्वीर है जिसमें उनके विशाल विष्वरूप को दिखाया गया है। दूसरा नक्शा पांच शताब्दी पुरानी वाटरकलर कृति है जिसमें हैदरबाद के निजाम अली खान फ्रेच दूत एम बस्सी की बात सुन रहे हैं। इस तस्बीर की फैली हुयी पृश्ठभूमि में प्राचीन शहर दिख रहा है।

मंगलवार, 11 अगस्त 2015

पटना में अंतर्राष्ट्रीय छापाकला प्रदर्शनी का उद्घाटन

पटना , 11 अगस्त, कला संस्कृति एवं युवा विभाग, बिहार तथा बिहार ललित कला अकादमी, पटना  द्वारा आयोजित छापकला प्रदर्शनी की दूसरी कड़ी के तहत अंतर्राष्ट्रीय प्रिंट एक्सचेंज प्रोग्राम (IPEP) के संयुक्त सौजन्य से 21 देशों के 55 छपकलाकारों के कलाकृतियों की एक प्रदर्शनी का उद्घाटन आज पटना के बहुद्देशीय सांस्कृतिक परिसर में स्थित कला दीर्घा में हुआ। इस प्रदर्शनी का विधिवत उद्घाटन श्री अंजनी कुमार सिंह , मुख्य सचिव, बिहार सरकार ने किया। इस अवसर पर अकादमी के अध्यक्ष श्री आनंदी प्रसाद बादल ने कहा कि बिहार ललित कला अकादमी राज्य के कलाकारों को प्रोत्साहित करने के लिए  कई कार्यक्रमों की योजना बनाई है जो आने वाले दिनों में कलाकारों एवं कला प्रेमियों को दिखेगा। 
FEAR: HORROR/ TERROR विषय पर आधारित इस प्रदर्शनी को राजेश पुल्लरवार ने क्यूरेट किया है तथा इसके संयोजक संजय कुमार हैं।  

सोमवार, 10 अगस्त 2015

अंतर्राष्ट्रीय स्तर की एक वृहद छपा कला प्रदर्शनी का आयोजन पटना में

पटना , 10 अगस्त , बिहार पिछले कुछ वर्षों से अपनी कला सम्बंधित कार्यक्रमों के लिए चर्चित रहा है। बिहार ललित कला अकादमी के गठन के बाद से कई कार्यक्रम हुए परन्तु पिछले एक वर्ष में कोई बड़ा कार्यक्रम सुनने में नहीं आया था। इस चुप्पी को तोड़ते हुए बिहार सरकार मुंबई की संस्था IPEP (अंतर्राष्ट्रीय प्रिंट एक्सचेंज प्रोग्राम ) के साथ मिल कर अंतर्राष्ट्रीय स्तर की एक वृहद छपा कला प्रदर्शनी का आयोजन करने जा रही है। इस प्रदर्शनी में 21 देशों के 55 छपा कलाकारों की कृतियाँ प्रदर्शित की जाएगी।  प्रदर्शनी को मुंबई के राजेश पुल्लरवार क्यूरेट कर रहे हैं ।

बहुद्देशीय सांस्कृतिक परिसर, पटना में आयोजित इस प्रदर्शनी का उद्घाटन  11 अगस्त को अंजनी कुमार सिंह (मुख्य सचिव बिहार सरकार) करेंगे।  प्रदर्शनी 16 अगस्त तक दर्शकों के लिए खुली रहेगी।    

रविवार, 9 अगस्त 2015

अपने बुनियाद को कायम रखते हुये बिनाले का परिदृष्य उभर रहा है: क्यूरेटर

मुंबई / कोच्चि, 8 अगस्त: कोच्चि- मुजिरिस बिनाले (केएमबी) का सौंदर्य धीरे-धीरे विकसित हो रहा है क्योंकि भारत का एकमात्र समकालीन कला महोत्सव कोच्चि की अव्यक्त महानगरीय भावना और तटीय क्षेत्र के औपनिवेशिक काल से पहले की शताब्दियों के सह-अस्तित्व के बहुसांस्कृतिक इतिहास को व्यक्त करने के अपने मूल विचार के साथ शुरू होने वाला है। देश के प्रमुख क्यूरेटरों ने इस बात का खुलासा किया।
कोच्चि बिनाले फाउंडेशन (केबीएफ) द्वारा केएमबी के आगामी (2016) संस्करण के लिए क्यूरेटर की घोषणा किये जाने के तीन सप्ताह बाद मुंबई में आयोजित एक पैनल चर्चा में वक्ताओं ने बिनाले के अपने अनुभवों को साझा किया और इसके संगठन के द्वारा सामना की जा रही चुनौतियों और अधिक से अधिक लोगों तक बड़े पैमाने पर विचारों को ले जाने की चुनौतियों पर चर्चा की।

From left to right: Prajna Desai, Art Historian, in conversation with Riyas Komu, Co-curator, Kochi-Muziris Biennale 2012 & Co-founder, Kochi Biennale Foundation, Sudarshan Shetty,Artistic Director & Curator, Kochi-Muziris Biennale 2016, Bose Krishnamachari, Co-curator, Kochi-Muziris Biennale 2012 & Co-founder, Kochi Biennale Foundation and Jitish Kallat,Artistic Director & Curator, Kochi-Muziris Biennale 2014.
कला इतिहासकार प्रज्ञा देसाई ने शुक्रवार की शाम को आयोजित इस चर्चा का संचालन किया जिसमें केएमबी (2012) के पहले संस्करण के सह-क्यूरेटर बोस कृष्णमाचारी और रियास कोमू ने अपने 2014 और 2016 के समकक्षों - जितिष कलात और सुदर्शन शेट्टी के साथ इस बात पर प्रकाश डाला कि किस प्रकार बिनाले ने कई समुचित विवेक एवं तर्क के साथ अपनी गुणवत्ता को बरकरार रखा है यहां तक कि मौसम के खराब होने पर भी इस आयोजन के पिछले दो संस्करणों में 9 लाख से कम दर्शक आने के बावजूद भी इसने अपनी गुणवत्ता को बरकार रखा।
80 मिनट की यह चर्चा केएमबी के पिछले दो संस्करणों के सार को पेश करने वाली एक लघु फिल्म के साथ शुरू हुई जिसकी शुरुआत कृष्णमाचारी के द्वारा भारत के पहले बिनाले की मेजबानी की योजना के प्रारंभ और 2010 में स्थापित केबीएफ के संघर्श और अंततः विजय को याद करते हुए हुई।
राष्ट्रीय आधुनिक कला दीर्घा में खचाखच भरे दर्शकों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘तब से, समकालीन कला के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने और भारत में कला तक अधिक से अधिक लोगों की पहुंच का विस्तार करने के प्रयास किये गये हैं। हम अपने द्वारा पेशकश किये गये कई सहयोगों पर अमल कर कार्यक्रमों और रेजीडेंजिस के आदान- प्रदान में भी संलग्न रहे हैं।’’
कृष्णमाचारी की तरह ही ख्याति प्राप्त और मुंबई में रहने वाले कलाकार कोमू ने कहा कि केएमबी एक मजबूत मंच रहा है और इसने भारत में समकालीन अंतरराष्ट्रीय दृश्य कला सिद्धांत और प्रथा को शुरू किया है और इसने कला के अनुभवों के अलावा नए भारतीय और अंतरराष्ट्रीय एस्थेटिक का प्रदर्शन और इस पर बहस किया है ताकि कलाकारों, क्यूरेटर और जनता के बीच एक संवाद कायम हो सके।
एक पुराने व्यापारिक बंदरगाह के रूप में कोच्चि के पूर्व और मौजूदा अनुभव में निहित विष्वबंधुत्व और आधुनिकता की एक नई भाषा का सृजन करने के लिए ‘पीपुल्स बिनाले’ के रूप में केएमबी के मूल मिशन की पुष्टि करते हुए, उन्होंने कहा कि तटीय केंद्रीय केरल शहर में छह शताब्दियों से अधिक समय तक कई सांप्रदायिक वर्ग के लिए संकट की घड़ी रही है। उन्होंने कहा, ‘‘कोच्चि भारत के वैसे कुछ शहरों में हैं जहां सांस्कृतिक बहुलवाद की पूर्व औपनिवेशिक परंपराओं का पनपना जारी है। ये परंपराएं सांस्कृतिक बहुलवाद, वैश्वीकरण और बहुसंस्कृतिवाद के पद-आत्मज्ञान के विचारों की परभक्षी हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘वास्तव में, वे 14 वीं सदी में बड़े पैमाने पर आयी बाढ़ के बाद कीचड़ और पौराणिक कथाओं की  रतों के नीचे दब गये प्राचीन शहर का पता लगा सकते हैं।’’
कलात को केएमबी के साथ अपने जुड़ाव के बारे में बोलने के लिये आमंत्रित करके मॉडरेटर देसाई ने चर्चा को  गले चरण में बढ़ाया। उन्होंने कहा कि भारत में बिनाले की सफलता की कहानी है और यह इसलिये भी महत्वपूर्ण है क्योंकि अभी तक इसके दो संस्करण ही हुये हैं।
मुंबई निवासी कलात ने कहा कि उनके द्वारा क्यूरेटर किया गया केएमबी’14 सिर्फ कोच्चि के बारे में ही नहीं था बल्कि कोच्चि से था। उन्होंने यह भी बताया कि कैसे अपने क्यूरेटोरियल वक्तव्य में ब्रह्माण्ड विज्ञान में अपनी गहरी रुचि के बारे में चर्चा की थी। दरअसल बिनाले की शक्ति उसकी नाजुकता में निहित है।
2016 बिनाले में संभावित कलाकारों के साथ संवाद आरंभ करने वाले शेट्टी ने कहा कि विस्तृत शोध एवं विभिन्न क्षेत्रों के अनेक लोगों के साथ संवाद जारी है। यह प्रयास भी बड़े पैमाने पर जारी है कि परम्परा और समकालीनता की धाराओं को पाटा जाये।
चर्चा के आखिरी चरण में दर्शकों के साथ संवाद आयोजित हुआ जिसमें वक्ताओं ने दर्शकों के सवालों के जवाब दिये। दर्शकों ने पूछा कि किस तरह से केबीएम कला शिक्षा को बढ़ावा देता है और कोच्चिं आखिर कैसे भारत के सदियों पुराने विश्वबंधुत्व में विषेश जगह रखता है और किस तरह से ऐसी वैकल्पिक ताकत वाला बिनाले हरेक के सहयोग के साथ निरंतर रूप से जारी है।