शनिवार, 3 जनवरी 2015

वरिष्ठ कलाकार आनंदी प्रसाद बादल के चित्रों की प्रदर्शनी 6 से


आनंदी प्रसाद बादल
पटना, 3 जनवरी : आम तौर पर अगर हम महानगरों को छोड़ छोटे शहरों की बात करें तो ऐसे कलाकारों की संख्या बहुत ही कम है जो इस बात की परवाह किए बगैर लगातार कला सृजन करते हैं कि उनका काम किसी बड़ी कला प्रदर्शनी में शामिल होती है या नहीं, बिकती है या नहीं बिकती, उन्हें कोई तरजीह देता है या नहीं।  बिहार के एक ऐसे हीं वरिष्ठ कलाकार हैं  श्री आनंदी प्रसाद बादल, जिनके  चित्रों की एकल प्रदर्शनी पटना के बहुद्देशीय सांस्कृतिक परिसर में कला संस्कृति एवं युवा विभाग, बिहार एवं बिहार ललित कला अकादमी  सौजन्य से दिनांक 6 जनवरी से होने जा रही है। 11 जनवरी तक चलने वाली इस प्रदर्शनी का उद्घाटन कला एवं संस्कृति मंत्री श्री विनय बिहारी करेंगे। विशिष्ट अतिथि श्री आनंद किशोर (सचिव , कला संस्कृति एवं युवा विभाग ) होंगे तथा समारोह की अध्यक्षता डॉ रामवचन राय ( माननीय स. स. प. ) करेंगे।  

श्री आनंदी प्रसाद बदल एक ऐसे वरिष्ठ कलाकार हैं जो अपने जीवन में लगातार काम करते रहे और सैकड़ो कलाकृतियों का निर्माण किया। बिहार की बहुत पुरानी संस्था शिल्पी संघ के सचिव पद पर रहते हुए कई कला प्रदर्शनियों तथा कार्यशालाओं का सफलतापूर्वक आयोजन भी किया। तत्काल वे बिहार ललित कला अकादमी में अध्यक्ष की हैसियत से काम कर रहे है।    

KMB ’14 collateral show Janela peeks into shared history of Kerala & Goa

Works of 26 artists at Mattancherry’s Mill Hall woo curious visitors

Kochi, Jan 3: As a striking collateral show at the Kochi-Muziris Biennale (KMB), Janela: Migrating Forms and Migrating Gods is a window into the Museum of Goa (MoG) that artist Subodh Kerkar is setting up in this ancient city further south of his tiny state along the Konkan Coast. Featuring the works of 26 Indian and international artists, including Subodh’s 18-year-old son Siddharth Kerkar, the exhibition explores the shared histories of Kerala and Goa.




‘Janela’, which is spread around a warehouse and the grounds of Mattancherry’s Mill Hall Compound by the Arabian Sea, starts with Subodh’s ‘Chillies’, made of cycle tyres—as is his ‘Pearlspot’ fish found as you walk down. The ‘Chillies’ look like they are hung up to dry in the sun, suggesting the goods that the Portuguese brought to south India from their other colonies.

Curator Valentina Gioia Levy, who is from the Museum of Oriental Art in Rome, brings an international flavour to the exhibition, with cultural exchange as the motif.

Mumbai-based Sweety Joshi’s untitled exhibit deals with the development of language, while Friso Witteveen’s ‘Lingam Palace’ shows how men from his native Holland Dutch came only as traders and—unlike the Portuguese—did not care to convert.
Among other works, Narendra Yadav’s ‘My Phantom Mother’ depicts a icon of Mother Mary placed on a lotus, showing how easily religious borrowed imagery from each other.

‘Janela’, as Subodh notes, “digs into the recesses of historical archives, memory and celebrate the connectedness” of cultures.

“The waves that wash the shores of the west coast of India have not only carved and shaped rocks, but also ideas, dreams and narratives. The ocean has acted as a medium of intercontinental cultural diffusions,” he says. “The word for a window in both Konkani and in Malayalam is adopted from the Portuguese language. It is ‘Janela’.”



‘Janela’, thus, is an attempt to peep into the shared histories of Goa and Kerala and also explore what historians A. G. Hopkins and Christopher Bayly described as proto-globalization, he adds. “It is also an endeavour to narrate history through the contemporary idiom.”

Subodh believes that the KMB is the best thing to happen to Indian art, because like the saint poets of ancient India who made the Vedas accessible to the common man, biennale here has brought contemporary art to people.

“The notion was that contemporary art is only for the elite,” says Subodh, who gave up his medical practice about 20 years back to take up art fulltime. “But thanks to this biennale, I see people who would otherwise be scared to enter into a gallery, come here freely. They have taken the language of art to the common man. That is their greatest contribution.”

Subodh hopes to do the same through the MoG, which is scheduled to have its first exhibition in October, and through a programme called Kalakirtan, which will discuss contemporary art in village squares, temples and churches, a couple of times a month.
Kochi Biennale Foundation, which is hosting the 108-day KMB’14 that mainly features 100 artworks by 94 artists from across the world, notes that ‘Janela’ focuses on the question of visual forms that have been considered as shapes, archetypes or symbols. “It also looks into their aptitude to being assimilated or modified during the process of cultural cross-breeding,” says KBF secretary Riyas Komu, who is the KMB’14 director of programmes.

Special attention is paid on the visual forms connected with the transcendent. In the past, the topic of the sacred image has always had a great importance in European and Indian art. The exhibition questions its redefinition, and the role that it might have, today, in the context of artistic researches focusing on identity, historical, socio-political and/or anthropological issues.

गुरुवार, 1 जनवरी 2015

सभी इन्द्रियों पर जादू कर रही है बिनाले में प्रदर्शित बेनिथा परसियाल की सुगन्धित कृतियाँ

छाल के पाउडर , लोबान, लोहबान, सूखी जड़ीबूटियों, और मसालों के सम्मिश्रण से उत्पन्न होने वाली खुशबू आगंतुकों को वशीभूत कर  रही है।

कोच्चि,1 जनवरी : कला संस्कृति के विश्व महोत्सव "कोच्चि मुजरिस बिनाले " के प्रदर्शनी स्थलों में से एक पीपर हाउस में अपनी बेमिसाल कृतियों का प्रदर्शन कर रही बेनिथा परसियाल को अपनी एक कृति को लेकर एक दर्शक से अप्रत्यासित प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ा। हालांकि 108 दिन तक चलने वाले इस बिनाले में उनकी कृतियों को दर्शकों से उत्साहजनक प्रतिक्रिया मिल रही है लेकिन चेन्नई स्थित इस कलाकार को एक दर्शक से जो "सार्थक " प्रतिक्रिया मिली , वह चेन्नई के कलाकार के लिए खास तौर पर याद रहेगी।

Benitha Perciyal_The Fires of Faith at Pepper House 

एक पखवाड़े से थोड़े अधिक समय पूर्व समुद्र के सामने स्थित इस पौराणिक परिसर में आने वाले एक असंतुष्ट दर्शक से बेनिथा का सामना हुआ जिन्होंने बेनिथा से बिना हाथ वाली यीशु मसीह के चित्रण के बारे में जानकारी चाही। बेनिथा " द फायर्स ऑफ फेथ " शीर्षक वाली अपनी कृति के साथ हुए पूरे प्रकरण को याद करते हुए कहती है , " कला के सम्बन्ध में उनकी यह सबसे बेहतरीन बातचीत थी। "

36 वर्षीय कलाकार कहती हैं, ‘‘वह महिला इसलिये  नाराज थी क्योंकि उनकी नजर मे जिस तरह से यीशु जीसस का चित्रित किया गया था वह प्रथा के खिलाफ जाता था। लेकिन मैंने उनसे पूछा कि किसने यह प्रथा बनायी। हमने इस बारे मे थोड़ी देर बातचीत की। आखिरकार वह मेरे तर्क संतुष्ट नजर आने लगी। आस्था भौतिकता के बारे मे नहीं होती  है। (किसी कलाकृति मे यह लागू हाता  है।) यह संवेदनशीलता के  बारे मे  है।’’
Benitha Perciyal_The Fires of Faith at Pepper House
चेन्नई में रहने वाली इस कलाकार ने मद्रास कालेज आॅफ आर्ट्स एंड कल्चर से स्नातक किया। कोच्चि मुजिरिस बिनाले, 2014 मे बेनिथा की कृति कोच्चि के उपनगर मैट्टानचरी की पुरानी मूर्तियों  की दुकानों से प्रेरित है। इन दुकानो में औपनिवेषिक काल की पुरानी मूर्तियाँ हैं, जिनमें से ज्यादातर ईसाई मूर्तियां हैं। वहां  उन्होने एक गोदाम से अपने विशिष्ठ विवरण हासिल किये।  इस गोदाम मे यीशु की दो आदमकद मूर्तियाँ हैं। इनमे से एक मूर्ति मे यीशु को फिगवुड गधे पर सवार दिखाया गया है। यहां यीशु की माँ मरियम को एक फिगवुड गधे पर सवार दिखाया गया है। यह अनके चीजो के अलावा ‘‘एक माँ के मिठास भरे सुगंध’’ तथा समर्थको को दर्शाने लिए किया गया।

बेनिथा कहती है, ‘‘मैं पुरानी चीजें ही इकट्ठा करती हूं। ये पुरानी चीजें मुझसे बातें करती हैं। मैट्टानचेरी की अपनी पूर्व की यात्रा के दौरान मैं पुरानी वस्तुओं की दुकानों का दौरा किया और वहाँ हमने ऐसी धार्मिक मुर्तियाँ देखी जिनमें हाथ एवं पैर नहीं थे। ये मूर्तियां दुनिया के विभिन्न हिस्सों से आयी थी। इन्हें एक बार एक मंदिर में भी रखा गया था। अब ये मूर्तियाँ एक दुकान में थी। यह ऐसी बातें थी जिनके बारे में सोचने को विवश किया और इसलिये हमने आस्था के बारे में बात करने का फैसला किया। ’’

बेनिथा ने कोच्चि मुजिरिस बिनाले, 2014 में अपने प्रदर्शनी स्थल के बगल में स्थित एक कमरे में अपनी जमा की हुयी वस्तुओं को भी प्रदर्शित किया है। बिनाले को जाने-माने कलाकार जितिश  कलात ने क्यूरेट किया है।
यह पहला मौका नहीं है जब बेनिथा ने वैसी मूर्तियां बनाई हैं जिनमें कुछ चीजों की अनुपस्थिति कई लोगों को नागवार गुजर सकती है। इस कलाकार ने पहले एक पीएटा बनाया था जिसमें यीशु को मरियम के हाथों में नहीं दिखाया गया था। इसाई कलाकार कहती हैं, ‘‘यहां मौजूद रिक्तता अनुपस्थिति के दर्द को प्रदर्शित करती है।‘‘ बेनिथा अन्य धर्म को लेकर कोई चित्रण नहीं करती क्योंकि उनके अनुसार वह इन धर्मों के बारे में बहुत अधिक नहीं जानती हैं।’’

बेनिथा की मूर्तियां छाल पाउडर, लोबान, लोहबान, सूखी जड़ी बूटियों और मसालों जैसी प्राकृतिक चीजों का इस्तेमाल करके बनायी गयी है। इसलिये 12 दिसंबर को शुरू हुये बिनाले के आरंभिक दिनों में, इन मूर्तियों से आने वाले सुगंध के कारण दर्शक डच शैली में बने पीपर हाउस के केन्द्रीय आंगन में खींचे चले आते थे जहां बेनिथा की मूर्तियां प्रदर्शित हैं। उनका मानना है कि उनकी कृतियों के केवल भौतिक स्वरूप नहीं बल्कि इससे अधिक है और ये मूर्तियां सरल भाषा के जरिये लोगों के साथ बातें करती हैं। वह कहती हैं कि ये मूर्तियां इंद्रियों को प्रभावित करती हैं।’’
Benitha Perciyal_The Fires of Faith at Pepper House

इंसेंस की क्षणिकता तथा सतत परिवर्तन तथा पुनर्जन्म की इसकी क्षमता ने उन्हें वैसी मूर्तियां बनाने के लिये प्रेरित किया जिनकी खुशबू समय के साथ फीकी पड़ जायेगी और मूर्तियां स्थानीय वातावरण के अनुसार बदल जाऐंगी या बिखर जाऐंगी  बेनिथा कहती हैं, ‘‘लेकिन आपके मन में इनकी यादें होंगी।’’

दूसरे कोच्चि मुजिरिस बिनाले में मुख्य विषय ‘‘व्होल्र्ड एक्सप्लोरेशन‘‘ के तहत 30 देशों के 94 कलाकारों की 100 मुख्य कृतियों को प्रदर्शित किया गया है। यह इस साल 29 मार्च को सम्पन्न होने वाला है।

बुधवार, 31 दिसंबर 2014

All smiles as Oz artist portrays patients at hospital in biennale city

Kochi, Dec 31: This cheerful artist from Down Under is now a familiar face to patients at a leading hospital in this city amid India’s only biennale. Ever since Kochi Biennale Foundation (KBF) launched the Arts and Medicine project eleven months ago, Australian Daniel Connell has fascinated the patients by drawing their portraits with exceptional dexterity and ease, bringing smiles on their faces.
Young Connell, who was at the General Hospital in downtown Ernakulam to participate in the 45th edition of the Arts and Medicine programme here on Wednesday as part of the ongoing Kochi-Muziris Biennale, surprised the patients by inquiring about their whereabouts in their mother tongue Malayalam.  But then, Connel had earlier as well stayed in Kochi during the country’s first biennale that was held during 2012-13 for 96 days.
Currently pursuing PhD at School of Art, Architecture and Design under University of South Australia, Connell has travelled extensively across India exploring the potential of portraiture to generate human connectedness across cultures.  
“Portraiture is a unique art form that helps one to be sensitive and reflective about their own personality. By looking at their own portraits, the patients will, for a while, think about themselves and the realities of life,” the Melbourne-based artist said.
“We never force the patients to come out and attend the programmes since that can be just impossible for some of them due to poor health conditions. However, what is happening here is truly encouraging. The patients at the hospital are very excited about the project and are ready to engage with the programme,” he added.
Connell also opined that the project needs to be expanded to more hospitals, adding that hospitals should not be a place of despair, but a place of hope and happiness. Artists should visit places like hospitals, interact with people and help the public realize the healing power of art, he added.
KBF research coordinator Bonny Thomas said 2014 has been a “fulfilling” year for ‘Arts and Medicine’ which began in February as a weekly project that would hold a music show every Wednesday. “I thank the hospital authorities, doctors and staff for all their support,” he said. “As we enter the New Year, the KBF will come out with more such programmes in association with (Kochi’s) Mehboob Memorial Orchestra for the benefit of the patients.”

मंगलवार, 30 दिसंबर 2014

इकोफ्रेंडली संग्रहालय बना भारत कला भवन

सौजन्य :
वाराणसी। संग्रहालय पुरातात्विक धरोहरों को संरक्षित करने के लिए होती हैं। आमतौर पर यह सोचा भी नहीं जा सकता है कि पीली या तेज रोशनी बिखरने वाले बल्ब या हैलोजन से भी इन थातियों को नुकसान पहुंच सकता है। इस बारीक पहलू पर देश के प्रतिष्ठित संग्रहालय काशी हिंदू विश्वविद्यालय स्थित भारत कला भवन के विशेषज्ञों का ध्यान गया। विमर्श में तथ्य सामने आया कि पुरातात्विक धरोहरों पर तेज रोशनी पडऩे से उनकी नैसर्गिक आभा पर भी असर पड़ता है।
बेहद धीमी और लंबी इस प्रक्रिया को आसानी से पकड़ा नहीं जा सकता है। लिहाजा छोटी-छोटी कवायदों के बड़े फैसले लिए गए। अब कला भवन इको फ्रेंडली संग्रहालय बन चुका है। यहां आपको परेशान करने वाली भारी भरकम हैलोजन लाइटें नहीं मिलेंगी। कम वोल्टेज खपत की अच्छी रोशनी देने वाले एलईडी बल्ब का फोकस दर्शकों को सुकून देता है।
बिना एसी के वातानुकूलन
भारत कला भवन की एक खासियत यह भी है कि यहां किसी भी वीथिका में एयर कंडीशन नहीं है। सभी एसी निकाल दिए गए हैं। सभी वीथिकाएं इस कदर व्यवस्थित हैं कि यहां हमेशा हवा का आवागमन होता है। पर्यटकों व इतिहास के जिज्ञासुओं को कोई दिक्कत नहीं होती। 


कलाओं का संरक्षण

संग्रहालय के निदेशक प्रो. एके सिंह बताते हैं कि हैलोजन लाइटों से वस्तुओं पर खराब असर होता है। इनके बल्बों से क्लोरो फ्लोरो कार्बन, नाइट्रोजन आदि का उत्सर्जन होता है। यह तत्व पेंटिंग, ऐतिहासिक पत्थर, कपड़े आदि को नुकसान पहुंचाते हैं। 


70 हजार कम हुआ बिल

संग्रहालय के सुपरवाइजर डा. आरएन सिंह के अनुसार संग्रहालय से पीली रोशनी वाले बल्ब व एसी हटवाने से भारत कला भवन का खर्च कम हो गया। उन्होंने बताया कि इस निर्णय से यहां का 70 हजार रुपये प्रतिमाह बिजली का बिल कम हो गया। इन कवायदों से यह पहला इकोफ्रेंडली संग्रहालय हो गया है।

सोमवार, 29 दिसंबर 2014

Biennale to showcase 7 films produced by novel fund-raising techniques

Debutant Malayalam directors’ works at Jan 2-8 segment of KMB Artists’ Cinema


Kochi, Dec 29: Come New Year, and the ongoing Kochi-Muiris Biennale (KMB) is set to lend Indian cinema a unique chapter. A 100-day film festival running parallel to KMB’14 will premier in Kerala seven movies that have been produced through unconventional crowd-funding and artistic support methods.
What’s more, six of the works in the series are by debutant Malayalam directors. The films, slated to be shown during January 2 and 8 at the main Aspinwall House venue as part of the Artists’ Cinema segment, are curated by noted critic and documentary filmmaker C S Venkiteswaran.

Kanyaka Talkies(Virgin Talkies) -Poster
Also all of them — ‘CR no 89’ by Sudevan, ‘Oralpokkam’ by Sanalkumar Sasidharan, ‘Dayom Panthrandum’ by Harshad P K, ‘Unto Dusk’ by Sajin Babu T A, ‘Chayilyam’ by Manoj Kana, ‘Kanyaka Talkies’ by KR Manoj and  ‘Zahir’ by Sidharth Siva — are made in digital. Their show will be held at the newly-built Umbrella Pavilion of the sea-facing Aspinwall complex, which displays more than two-thirds of the 100 main KMB’14 works by 94 artists from 30 countries including India.
Made in the last two years, these films have been screened at national and international film festivals. They have won national and state awards for best Malayalam and best debut films, but have not yet had a state-wide release. Thiruvananthapuram-based Venkiteswaran, 55, has clubbed them together under the theme ‘Capital and Cinema: Breaking the Circles’, noting “this is real new-generation filmmaking”.
“The filmmakers are trying to push the frontiers and create new aesthetics of filmmaking. They have produced these films outside and against mainstream commercial cinema norms,” said the national award-winning critic, who is a native of Chalakkudy in Thrissur district. Stating that KMB’14 is an “ideal platform” for their showing, he said it creates a dialogue between the local and global, where the audience can get a taste of contemporary cinema. “Here, films are not just a commercial product, but it is art.”
Among the seven, ‘Kanyaka Talkies’ was the opening film of the Indian Panorama at the 44th International Film Festival of India at Goa. At KMB’14, it will have an added feature: a video installation that featured in film will be shown during its screening.  “In that sense,” said Kanyaka Talkies director K R Manoj, “it is a complete screening and only a venue such as the biennale could offer me this opportunity.”
Dayom Panthrandum
KMB ’14 Programme Manager Bandhu Prasad pointed out that these set of films, shown as part of biennale’s 100-day festival, is “breaking” the commercial cinema set-up. “The filmmakers, all of whom will be present at the screening, have used different production and distribution methods,” he noted. “We are proud to mark the premiers of this talented bunch.”

M D NICHE - Media Consultants