भारत की समकालीन कला आज अपने उस दौर में है जहाँ यह कह पाना कठिन है की हम उन्नति की दिशा में जा रहे हैं या पतन की ऒर / यूँ तो हमेशा से हीं कला बाज़ार, राजनीति या कई अन्य चीजें कला को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती रही है पर आज के युग में इसका प्रभाव बहुत ज्यादा देखने को मिल रहा है / ऐसे में कलाकार क्या करे ? जब यह कहा जाता है कि आज भारतीय कलाकार स्वतंत्र है, उसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्राप्त है पर क्या वह सही रूप में स्वतंत्र है ?
गोष्ठी के मुख्य वक्ता गण तथा संबोधित करते श्री वेद प्रकाश भारद्वाज |
इन्हीं गंभीर विषयों को चर्चा का विषय बनाया गया आर्ट ऑफ़ बिहार द्वारा एक कला गोष्ठी में / विषय था " भारतीय समकालीन कला की चुनौतियाँ " / AOB के दिल्ली स्थित कार्यालय में १ सितम्बर को आयोजित इस गोष्ठी में कई कलाकारों की मौजूदगी में तीन मुख्य वक्ता , वरिष्ठ कला समीक्षक तथा कला मर्मज्ञों ने अपने विचार रखे / वरिष्ठ कलाकार एवं कला के जानकर पटना श्री अनिल कुमार सिन्हा ने इस कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए अपने विचार रखे / वरिष्ठ कलाकर एवं कला समीक्षक श्री वेद प्रकाश भरद्वाज ने अपने बहुमूल्य वचनों से कलाकारों को अवगत कराते हुए कला जगत में व्यवसायवाद पर विशेष रूप से प्रकाश डाला / वहीँ श्री सुमन सिंह ने इस विषय पर अपने लेख पढ़े / उन्होंने बिहार के कला इतिहास की व्याख्या करते हुए समकालीन कला सन्दर्भों पर प्रकाश डाला /
गोष्ठी में उपस्थित कलाकार |
कलाकारों की ऒर से रविन्द्र दास, भुनेश्वर भास्कर, रागिनी सिन्हा, सुनील कुमार, दिनेश कुमार राम ने भी अपने विचार रखे / भुनेश्वर भास्कर ने कला क्षेत्र में राजनीतिक प्रभाव को कला की दिशा तय करने का एक बड़ा कारक बताया /
सभा के अंत में आर्ट ऑफ़ बिहार के मुखिया एवं संपादक राजेश चन्द ने धन्यवाद् ज्ञापन किया तथा कलाकारों एवं कला प्रेमियों से इस मुहीम में सहयोग की अपील की /
Nice attempt.Carry on.
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