3 फ़रवरी 2014
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नरेश अपनी कृति के साथ |
मनुष्य स्वभाव से हीं घुम्मकड़ प्रवृत्ति का रहा है, कभी आजीविका के लिए तो कभी उत्सुकता वश। आज हमारे पास आवागमन के कई आधुनिक साधन है पर एक वो भी समय था जब थोड़ी सी दूरी तय करने में महीनो लग जाते थे। तब भी मनुष्य अपने घुम्मकड़ स्वभाव को बड़े उत्साह के साथ अंजाम देता था।
आज के परिपेक्ष में अगर हम देखें तो लोगों में अपने घर को छोड़, अपनों से दूर जाने कि विवशता काफी बढ़ी है। बिहार एक ऐसा राज्य रहा है जहाँ के लोगों का दूसरे राज्यों या विदेशों में जीविकोपार्जन के लिए पलायन बहुतायत हुआ है। आम तौर पर यही लगता है कि लोग मौज-मस्ती के लिए बाहर का रुख करते हैं पर क्या असलियत में ऐसा है ? क्या अपने घर में अपनों के साथ बैठ कर टेलीविजन पर सिनेमा देखने से ज्यादा आनंद अपनों से दूर बेतहाशा ठंढ तथा चमड़ी जला देने वाली गर्मी में घर से बहार निकल कर मजदूरी करने में आता है ? ऐसे सवालों का सही जवाब वही दे सकता है जो इसे करीब से देखा हो या जिया हो।
नरेश कुमार एक ऐसे युवा कलाकार है जिन्होंने अपने शहर से दूर दिल्ली में रह कर इसे बखूबी जाना है। इन्होने इसी विषय को अपनी कला सृजन का आधार बनाया है। इन दिनों नरेश की इसी विषय पर आधारित आकर्षक कृतियों की एकल प्रदर्शनी मुम्बई में चल रही है। 11 जनवरी से शुरू हुई इस प्रदर्शनी का समापन 5 फ़रवरी को होगा।
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शीर्षक- आनंदी देवी |
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शीर्षक- कोलम्बस |
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शीर्षक- past present and future |
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portit of the home town III |
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portrait of home town |
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The Capital |
NICE JOB
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