पुणे सिथत कलाकार स्थानीय क्षेत्र में अभिनव परियोजना पर कर रहे हैं काम
कोच्चि, 20 जनवरी : पत्ताें से भरे एक परिसर के शांत माहौल में विरासत संरचनाओं के पास पुननिर्मित एक टाइल छत वाली इमारत के अंदर पी. के. नंदकुमार ने अपने चुनिंदा कलाकृतियाें को प्रदर्शित किया है। इन्हें कोच्चि मुजिरिस बिनाले (के एम बी) के तहत प्राचीन और नए कला के वर्गीकरण के साथ प्रदर्शित किया गया है।
एक प्राचीन आराधनालय, एक हिंदू मंदिर और एक डच पैलेस वाले मट्टानचेरी में ऐतिहासिक यहूदी टाउन के शोरगुल से थोड़ी ही दूरी पर, मध्यम उम्र के चित्रकार-मूर्तिकार ने अपनी कलाकृतियों को प्रदर्शित किया है जिन्हें वे अपने निवास स्थान पुणे से लाये हैं और जिनका निर्माण उन्हांनेे इस तटीय शहर से एकत्र सामग्रियों से किया है। वास्तव में, ये कृतियां विचाराें का जमावडा़ है जिनमें से कुछ कृतियां आगतुंकाें को बेहद पसंद आ रही हैं और इस तरह यह एक 'समुदाय संग्रहालय की अवधारणा की पुष्टि करता है।
उत्तरी केरल के कोझीकोड निवासी, नंदकुमार ने पिछले दो दशकों तक महाराष्ट्र के शहर में कला का अध्ययन किया है। अपने अध्ययन के दौरान सौंदर्य के प्रति उनका लगाव विकसित हुआ, जिसने भारत के एकमात्र बिनाले का आयोजन कर रहे अपने मूल राज्य केरल में लोगाें के साथ इंटरैक्टिव सत्र आयोजित करने के लिए उनके उत्साह को बढ़ाया। इस कलाकार ने साढ़े पांच शताब्दी पुरानी प्रार्थना के लिए प्रसिद्ध यहूदी घर के पास सिथत 1555 में बनाये गये पैलेस और पाझायान्नुर भगवती मंदिर से थोडी़ दूर स्थित इसी भूखंड पर 2012 के पहले केएमबी में भी अपनी कलाकृतियाें को प्रदर्शित किया था।
पहले के एम बी में अपनी पहल से लेकर अभी चल रहे सत्र में, नंदकुमार ने अपनी कृतियाें को 'द लैड रि- फार्म्ड 2 का नाम दिया है।
आखिर यह सब शुरू कैसे हुआ? कलाकार ने कहा कि दरअसल, डच पैलेस के केंद में सिथत आंगन में पाझान्नुर भगवती मंदिर पिछली पांच शताबिदयों से सामाजिक सम्बन्धों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थापना के रूप में सेवारत है। वाटर बाडी के पास उन्होंने कहा, ''यह जरूरतमंद लोगाें को रोजाना दिये जाने वाले नि: शुल्क भोजन के लिए लोकप्रिय था। यहां डायनिंग हॉल और तालाब के रूप में इस्तेमाल किये गये संरचनाओं के अवशेष का इस्तेमाल अभी भी बर्तन साफ करने के लिए किया जाता है।
पुणे के महिंद्रा यूनाइटेड वर्लड कॉलेज में पढ़ाने वाले नंदकुमार ने अपने कुछ दोस्तों के साथ इस भूखंड को आंशिक रूप से बहाल करने में मदद के लिए 2012 में एक महीने तक सफार्इ अभियान और एक प्रदर्शनी शुरू की। उन्हांनेे कहा, ''यह आम लोगों के लिए एक प्रेरणादायक आयोजन था। इस अभियान और प्रदर्शनी ने समुदाय को एक साथ लाने और मंदिर के चारो ओर वाटर बाडीज सहित सांस्कृतिक और पर्यावरण की दृष्टि से कमजार क्षेत्रों के संरक्षण के मुद्दे के समाधान के लिए एक कदम की शुरुआत करते हुए कला के मूल्य पर प्रकाश डाला।
दूसरे बिनाले के कट, और उनकी गैलरी के लिए प्रवेश द्वार के बिल्कुल दाहिनी ओर 1993 की एक मूर्ति है जिसे देखकर समझदार दर्शक अचंभित हो सकते है। यह धातु से निर्मित आठ फीट लंबी मूर्ति है जिसे दोनों ओर से लोहे की जंजीर से संतुलन प्रदान किया गया है। यह जंजीर क्षैतिज रॉड से ऊपर की ओर जाती है, जिसे अब कहीं लटका दिया गया है। तो फिर यह मूर्ति कैसे खड़ी है? नंदकुमार कहते हैं, ''इसका कारण बिल्कुल सामान्य है। जंजीर खंभे के रूप में कार्य करती है, इसलिए यह मूर्ति खड़ी है। नंदकुमार के कला संबंधित कार्यों में पवित्र वस्त्रों का संग्रह शामिल है जिन्हें मलयालम में तिरूवुडायाडाहाल कहा जाता है। नंदकुमार कहते हैं, ''लोग, विशेषकर दूर और पास की महिलाएं यहां आ सकती हैं और इन कपड़ों से आकार (वास्तव में पास के मंदिर में देवी-देवताओं को कपड़े पहनाना) बना सकती हैं। मूलत:, कला संबंधित मेरे कार्य एक समुदाय आधारित कला परियोजना का हिस्सा हैं।
दिलचस्प बात तो यह है कि नंदकुमार ने अपने पुरानी दिखने वाली पत्थर की मूर्तियां और तांबे के बक्शों को परिसर से एकत्र किये गये विरासत वस्तुओं के साथ मिला दिया है। इस तरह उन्होनें अपने संवेदनशील दिमाग का इस्तेमाल करते हुए प्राचीन वस्तुआें से नयी वस्तुओं का निर्माण किया।
यहाँ उत्तराखंड के टिहरी जिले में अभी डूबे हुए गांव पर एक कृति को प्रदर्शित किया गया है जिसे नंदकुमार ने पानी के साथ नये रूप में प्रदर्शित किया है।
इन कृतियाें के बीच, एक अन्य कलाकार कन्नूर जिले में कोट्टीयुर के एम. जे. इनास की मूर्तियां हैं। दिल्ली आधारित इस मूर्तिकार की मूर्तियां पीतल से बनी हैं। उन्हांनेे फाइन आर्ट कालजे से अपनी कला का अध्ययन किया है जो तिरुवनंतपुरम में 49 वर्षीय नंदकुमार की मातृ संस्था है।
पिछले महीने, नंदकुमार ने स्थानीय विधालय के छात्रों को क्ले मॉडलिंग में प्रशिक्षित किया। उन्हांनेे एक पारंपरिक छवि के साथ 'कलामेझुटु का आयोजन किया जिसके तहत पलक्कड़ जिले में पट्टाम्बि से बेबी कुरुप के नेतृत्व में तीन कलाकारों ने मुख्य हॉल से सटे एक कमरे में प्राकृतिक पाउडर के इस्तेमाल से 12 गुना 10 फीट की एक कलाकृति का निर्माण किया।
नंदकुमार कहते हैं, ''यह कला और अन्य दृश्य माध्यमाें के साथ - साथ साहित्यिक माध्यम के द्वारा समुदायों के अतीत और वर्तमान को सामने लाने का एक प्रयास है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें