कोच्चि , 02 मार्च: बिनाले में शांतामणि मुदैया की नायाब कलाकृति ‘बैकबाने ’ दर्शकों के आकर्षण का केन्द्र बन रही है। कलाकार शांतामणि मुदैया का कहना है कि अस्थियां मनुष्य को आंकने का अच्छा माध्यम है। अस्थियां एक दूसरे से अलग-अलग होती हैं लेकिन जब आपस में इकट्ठा होकर एक इकाई बनती है तो इनमें गजब की मजबूती आ जाती है।’’
Artist Shanthamani Muddaiah |
कोच्चि - मुजिरिस बिनाले (केएमबी) में प्रदर्शित अपनी कलाकृति को शांतामणि ने ‘बैकबोन’ शीर्षक दिया है। यह एक बड़ी रीढ़ (स्पाइनल कॉलम) के आकार में सीमेंट और राख से बनी मूर्ति है जिसे फोर्ट कोच्चि में एस्पिनवाल हाउस के मैदान में रखा गया है।
शांतामणि अपनी कलाकृति के बारे में पूरी तरह से दार्शनिक अंदाज में कहती हैं, ‘‘हमारे विचार, हमारी मान्यताओं और खुद के बारे में हमारी धारणा के अनुसार हमारे पास कई खंड हैं जो मिलकर एक सम्पूर्ण कलाकृति बनाती है।’’
उनकी 7 गुना 5 गुना 70 फुट की कलाकृति ‘बैकबाने ’ एक नदी जैसे आकार में मैदान में रखी हुई है। लेकिन इस कलाकृति को अचानक यहां नहीं लाया गया। कलाकार हाल ही में गंगा नदी की तीन महीने की यात्रा पर गयी थीं। उन्होंने इसे रूपकों से भरा पाया। वह हमारी संस्कृति की ‘रीढ़ की हड्डी’ मानी जाने वाली प्राचीन नदी पर एक समकालीन वृतांत पेश करना चाहती थी।
उनकी बिनाले की कलाकृति में कार्बन सरीखी सामग्री का उपयोग किया गया है, जिसका इस्तेमाल नदी के द्वारा सामना किये जा रहे प्रदूषण जैसे मौजूदा मुद्दों को इंगित करने के लिए किया गया है।’’
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी कलाकृतियों को प्रदर्शित करने वाली शांतिमणि को जब प्रसव के लिए उनकी रीढ़ की हड्डी में एनीस्थिसिया का इंजेक्शन दिया गया तो उनकी रीढ़ की हड्डी (बैकबोन) प्रभावित हो गयी। ऐसा 90 के दशक के आखिरी में हुआ था उसके बाद विज्ञान ने काफी तरक्की कर ली। उसके बाद तो नैनो तकनीक, गामा किरणों और एमआरआई जैसी नयी आँखों (तकनीकों) के माध्यम से मानव शरीर में देखा जाने लगा।
बेंगलुरू की इस कलाकार ने कहा, ‘‘बैकबोन मेरे काम का केन्द्र है। मैं हमेशा से ज्ञान प्राप्त करने के लिए उत्सुक रही हूं और यह भी जानने के लिए उत्सुक रही हूं कि हम अपने शरीर के अंदर और हमारे आसपास की दुनिया को किस प्रकार देख सकते हैं। प्रौद्योगिकीय नवाचारों ने हमें अपने स्वयं के शरीर के अंदर देखने के लिए अवसर प्रदान किया। शरीर के अंदर देखने के नए विज्ञान ने मुझमें दिलचस्पी पैदा की।’’
एमएस विश्वविद्यालय बड़ौदा से एमएफए करने वाली शांतामणि अपनी कलाकृतियों में अल्पकालिक प्राकृतिक सामग्रियों का इस्तेमाल करती हैं और अक्सर कागज और लकडी़ के कोयले से कलाकृतियां बनाती हैं। अपने बिनाले की कलाकृतियों में उन्होंने भस्म का इस्तेमाल किया ‘‘जो न तो राख है और न ही खनिज है, बल्कि यह वैसा पदार्थ है जो सभी जीवन शक्ति को फीका कर देती है और मूर्ति की मरम्मत के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है और कई बार यह एक रूपक होता है।
खुद को सबसे पहले एक चित्रकार समझने वाली और अपने हाथ के माध्यम से सोचने वाली कलाकार कहती हैं, ‘‘मैंने इस मूर्ति को बाहर लाने की चुनौती को पसंद किया और इसके डायनैमिक्स को इस माहौल में पेश किया।
‘‘मैनें दर्शको के द्वारा इससे बातचीत करने के अंदाज का आनंद लिया।’’
केएमबी’ 14 के क्यूरेटर जितिश कलात ने कहा कि इस कलाकृति को देखकर महसूस होता है ‘‘मानो बहुत पहले के इतिहास को इस कदाचित अचानक निकाले गये जीवाश्म के रूप में लाया गया है। सीमेंट और राख से बनी शांतामणि की 70 फुट लंबी मूर्ति को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि किसी विशाल गोजर ने महासागर को पार कर एस्पिनवाल हाॅल के खुले लाॅन को अपना अंतिम विश्राम स्थल बना लिया हो। राख जैसे ज्वालामुखी चट्टान का उपयोग विशेष रूप से बहुत ही रोचक है। पदार्थ की छिद्रदार सतह में कुछ भूवैज्ञानिक निशान हैं और यह खुद जीवाश्मों की तरह प्रतीत होता है।’’
शांतामणि को लगता है कि फोर्ट कोच्चि ने ‘बिनाले की खूबसूरती’ को बढ़ा दिया है। उन्होंने इस तथ्य की सराहना की कि इस प्रदर्शनी ने नया मुकाम हासिल किया है। वह कहती हैं, ‘‘आपको इस जैसी जगह नहीं मिल सकती है, जिसे देखकर ऐसा लगता है मानो इसने इतिहास को पहन लिया हो। आप ऐसा केवल तब अनुभव करेंगे जब आप यह महससू करेंगे कि भारत को इस तरह एक जगह की सख्त जरूरत है; एक ऐसी जगह जिसका वास्तव में रचनात्मक प्रक्रिया के साथ संबंध है।’’
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें