बोधगया बिनाले में फोटोग्राफी पर गंभीर बहस
बोधगया, 20 दिसम्बर : बोधगया बिनाले को युवा कलाकारों का बिनाले कहा जाए तो यह गलत नहीं होगा। इस बिनाले में शामिल कलाकारों में ज्यादातर युवा कलाकार हैं जो गंभीर विषयों पर बनी अपनी कलाकृतियों और कलात्मक अभिव्यक्तियों से कलाप्रेमियों का मन मोह रहे हैं।
बिनाले में मंगलवार को दिल्ली में रहने वाले बिहार के युवा कलाकार मुरारी झा ने पलायन की समस्या पर अपनी कलात्मक प्रस्तुति दी। वैसे तो पलायन या स्थान परिवर्तन को बाध्य हो जाना वैश्विक समस्या है I किन्तु यहाँ यह बिहार से लगातार हो रहे पलायन पर केंद्रित था I यह एक तथ्य है कि पलायन जिन कारणों व जिन स्थितियों में भी होता है, उसका एक पक्ष यह भी है कि मनुष्य जहाँ भी जाता है उसकी अन्तःचेतना में उसका मूल स्थान यादों के रूप में अन्तर्निहित रहता है।
इस बारे में मुरारी कहते हैं कि सिर्फ एक व्यक्ति विस्थापित नहीं होता बल्कि वह अपने साथ सदियों से चली आ रही संस्कृति का भी विस्थापन करता है,जो कई बार एक दूसरी संस्कृति को जन्म देता है तो कभी दूसरी संस्कृतियों को प्रभावित करता है, जिसके अगर अपने फायदे हैं तो अपने नुकसान भी। कई बार यह विस्थापन खतरनाक स्थिति को जन्म देता है और यहीं शांति की तत्कालिकता भी महसूस होती है जो बोधगया बिनाले के आयोजन के मूल में है।
बिनाले में आज दो विषयों पर टॉक शो हुआ जिसमें पहला विषय था ऑल्टरनेटिव फोटोग्राफी। देश के चर्चित फोटोग्राफर पी माधवन ने अपने वक्तव्य ऑल्टरनेटिव फोटोग्राफी की प्रशंसा करते हुए कहा कि जब भी फोटोग्राफी को कला के तौर पर देखा जाएगा, वहां डिजिटल फोटोग्राफी पर ऑल्टरनेटिव फोटोग्राफी हमेशा हावी रहेगी।
इसी विषय पर बोलते हुए जाने-माने फोटोग्राफर सुमन श्रीवास्तव ने कहा कि डिजिटिल फोटोग्राफी को पिक्सोग्राफी कहना ज्यादा होगा लेकिन जब कभी भी तस्वीरों की क्वालिटी और उसकी कलात्मक प्रस्तुती की बात आएगी, वहां एनालॉग फोटोग्राफी या ऑल्टरनेटिव फोटोग्राफी ही विकल्प है। उन्होंने ये भी कहा कि भारत ही नहीं, पश्चिमी देशों में भी ऑल्टरनेटिव फोटोग्राफी का चलन और उसकी मांग फिर से बढ़ी है।
ज्ञान का समाज और समकालीन कला पर देश के ख्यातिलब्ध कहानीकार व चिंतक शैवाल ने कहा कि संभव है कि ज्ञान किसी को खबर के रूप में भी मिले, लेकिन समकालीन कला में उसकी अभिव्यक्ति कैसी हो, यह उस खबर के विश्लेषण के जरिए ही संभव है, यानी कला की नजर में महत्वपूर्ण यह नहीं है कि आप क्या देखते हैं, महत्वूपूर्ण यह है कि जो आप देखते हैं अपने कला चिंतन के दौरान आप उसकी व्याख्या किस तरह से करते हैं।
सूत्र - सुनील कुमार
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