रज़ा फाउन्डेशन का ‘दयाकृष्ण मेमोरियल लेक्चर’ श्रृंखला का छठवां व्याख्यान ‘लॉस्ट सिटीज एंड देयर इनहैबीटैंट्स’ अर्थात ‘गुम शहरें और उनके निवासी’ विषय पर चर्चित राजनीतिक, मनोवैज्ञानिक एवं आलोचक आशीष नंदी का 28 अगस्त 2018 को इंडिया हैबिटाट सेंटर के गुलमोहर सभागार में संपन्न हुआ।
रज़ा फाउन्डेशन नियमित रूप से साहित्य, संस्कृति और कला माध्यमों में अपनी विविध गतिविधियों से विद्वत समाज का ध्यान आकृष्ट करता रहा है। रज़ा फाउन्डेशन द्वारा आयोजित आठ व्याख्यान श्रृंखला अज्ञेय, कुमार गंधर्व, मणिकौल, हबीब तनवीर, वी.एस. गायतोंडे, केलुचरण महापात्रा, चार्ल्स कोरिया और दयाकृष्ण व्याख्यानमाला है, दयाकृष्ण व्याख्यान की प्रस्तुति में अब तक अनन्या वाजपेयी, प्रतापभानु मेहता, शिव विश्वनाथन, रामचंद्र गुहा, और रमिन जहान बेगलू का व्याख्यान संपन्न हुआ है।दयाकृष्ण व्याख्यानमाला की शुरुआत रज़ा फाउन्डेशन के प्रबंध न्यासी एवं हिंदी के सुप्रसिद्ध कवि अशोक वाजपेयी के स्वागत वक्तव्य एवं अतिथि वक्ता आशीष नंदी को गुलदस्ता भेंट कर के हुई। श्री अशोक वाजपेयी ने दयाकृष्ण का परिचय देते हुए दयाकृष्ण को स्वतन्त्र भारत का दार्शनिक बताया। उन्होंने कहा कि दयाकृष्ण संस्कृतियों में असामान्य रूचि रखने वाले और सांस्कृतिक सौन्दर्यशास्त्र इत्यादि विषय पर विचार करने वाले दार्शनिक रहे हैं। उनके स्मृति में रज़ा फाउंडेशन व्याख्यानमाला श्रृंखला के तहत नियमित आयोजन करता रहा है। मुख्य वक्ता आशीष नंदी ने अपने विषय गुम शहरें और उनके निवासी पर बोलते हुए कहा कि यह एक जैव मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि हम अलगाव के यथार्थ को जानते हैं और हम अपनी यादों को नियंत्रित कर सकते हैं। भूलने और याद रखने का एक माध्यम खो गया शहर है। कल्पना का शहर एक रहस्यमय शहर है। लेकिन गुम हो गए शहर को सार्वजानिक यादों, कला और साहित्य इत्यादि के माध्यम से हम उसे याद रख सकते हैं।उन्होंने खो गए शहरों के पहचान के दो तत्व बतलाये, एक शहर को येरुशलम के रूप में तथा दुसरे को हिरोशिमा-नाकासाकी के रूप में चिन्हित किया। आशीष नंदी ने इस आधार पर कहा कि गुम हुए शहरों का दास्तान निर्वासन एवं विस्थापन का दास्तान है, जिसे धर्म और विज्ञान दोने ने संभव किया है। वास्तविक शहर में खोये हुए शहर का आंशिक अंश स्वायत्त होता है। उन शहरों के पास एक स्वायत्त अस्तित्व है। इस क्रम में उन्होंने लाहौर, हैदराबाद, लखनऊ, कलकत्ता, दिल्ली, ढाका, कश्मीर इत्यादि शहरों के उदाहरण से अपनी बात को विस्तृत ढंग से रखा।इस अवसर पर ओम थानवी, अपूर्वानंद, सौमित्र मोहन, सुधीर चन्द्र, गीतांजली श्री, ज्योतिष जोशी समेत शहर के विभिन्न वय के विद्वतजन उपस्थित रहे। व्याख्यान के बाद श्रोताओं ने वक्ता आशीष नंदी से प्रश्न पूछ कर कार्यक्रम को संवादी बनाया।
आयोजन का धन्यवाद ज्ञापन रज़ा फाउंडेशन के प्रबंध न्यासी श्री अशोक वाजपेयी ने किया। रज़ा फाउन्डेशन का आगामी माह का कार्यक्रम 07-08 सितम्बर 2018 को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ़ आर्ट्स एंड एस्थेटिक्स में परस्पर का, 11 सितम्बर 2018 को त्रिवेणी कला संगम में और 12 सितम्बर 2018 को अलायन्स फ्रांसिस में आरम्भ-10 का, 17 सितम्बर 2018 को इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में आर्ट्स मैटर्स का, 19 सितम्बर 2018 को इंडिया हैबिटाट सेंटर में गायतोंडे व्याख्यानमाला का, 22 सितम्बर 2018 को इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में कुँवर नारायण स्मृति का, 24 सितम्बर 2018 को इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में आज कविता का दिल्ली में तथा 25-29 सितम्बर 2018 को पुणे में पेन इंटरनेशनल कांग्रेस का तथा 29 सितम्बर 2018 को देहरादून में आरम्भ देहरादून श्रंखला-1 का है। कार्यक्रम से सम्बंधित विस्तृत जानकारी रज़ा फाउंडेशन के वेब पेज पर पाया जा सकता है।
रज़ा फाउन्डेशन नियमित रूप से साहित्य, संस्कृति और कला माध्यमों में अपनी विविध गतिविधियों से विद्वत समाज का ध्यान आकृष्ट करता रहा है। रज़ा फाउन्डेशन द्वारा आयोजित आठ व्याख्यान श्रृंखला अज्ञेय, कुमार गंधर्व, मणिकौल, हबीब तनवीर, वी.एस. गायतोंडे, केलुचरण महापात्रा, चार्ल्स कोरिया और दयाकृष्ण व्याख्यानमाला है, दयाकृष्ण व्याख्यान की प्रस्तुति में अब तक अनन्या वाजपेयी, प्रतापभानु मेहता, शिव विश्वनाथन, रामचंद्र गुहा, और रमिन जहान बेगलू का व्याख्यान संपन्न हुआ है।दयाकृष्ण व्याख्यानमाला की शुरुआत रज़ा फाउन्डेशन के प्रबंध न्यासी एवं हिंदी के सुप्रसिद्ध कवि अशोक वाजपेयी के स्वागत वक्तव्य एवं अतिथि वक्ता आशीष नंदी को गुलदस्ता भेंट कर के हुई। श्री अशोक वाजपेयी ने दयाकृष्ण का परिचय देते हुए दयाकृष्ण को स्वतन्त्र भारत का दार्शनिक बताया। उन्होंने कहा कि दयाकृष्ण संस्कृतियों में असामान्य रूचि रखने वाले और सांस्कृतिक सौन्दर्यशास्त्र इत्यादि विषय पर विचार करने वाले दार्शनिक रहे हैं। उनके स्मृति में रज़ा फाउंडेशन व्याख्यानमाला श्रृंखला के तहत नियमित आयोजन करता रहा है। मुख्य वक्ता आशीष नंदी ने अपने विषय गुम शहरें और उनके निवासी पर बोलते हुए कहा कि यह एक जैव मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि हम अलगाव के यथार्थ को जानते हैं और हम अपनी यादों को नियंत्रित कर सकते हैं। भूलने और याद रखने का एक माध्यम खो गया शहर है। कल्पना का शहर एक रहस्यमय शहर है। लेकिन गुम हो गए शहर को सार्वजानिक यादों, कला और साहित्य इत्यादि के माध्यम से हम उसे याद रख सकते हैं।उन्होंने खो गए शहरों के पहचान के दो तत्व बतलाये, एक शहर को येरुशलम के रूप में तथा दुसरे को हिरोशिमा-नाकासाकी के रूप में चिन्हित किया। आशीष नंदी ने इस आधार पर कहा कि गुम हुए शहरों का दास्तान निर्वासन एवं विस्थापन का दास्तान है, जिसे धर्म और विज्ञान दोने ने संभव किया है। वास्तविक शहर में खोये हुए शहर का आंशिक अंश स्वायत्त होता है। उन शहरों के पास एक स्वायत्त अस्तित्व है। इस क्रम में उन्होंने लाहौर, हैदराबाद, लखनऊ, कलकत्ता, दिल्ली, ढाका, कश्मीर इत्यादि शहरों के उदाहरण से अपनी बात को विस्तृत ढंग से रखा।इस अवसर पर ओम थानवी, अपूर्वानंद, सौमित्र मोहन, सुधीर चन्द्र, गीतांजली श्री, ज्योतिष जोशी समेत शहर के विभिन्न वय के विद्वतजन उपस्थित रहे। व्याख्यान के बाद श्रोताओं ने वक्ता आशीष नंदी से प्रश्न पूछ कर कार्यक्रम को संवादी बनाया।
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