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राष्ट्रीय स्तर पर कला समाज को ऐसा लगने लगा था कि नरेन्दª मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद कला और संस्कृति का चेहरा बदलेगा और उस पर लगे धब्बों को मिटाया जा सकेगा लेकिन हैरत की बात है कि इन्हीं मोदी के 2 नामचीन मंत्री श्री पदनायक एवं डाॅ. महेष षर्मा खुल कर राश्ट्रीय स्तर पर कला और संस्कृति के चेहरे पर कालिख पौतने में लगे हुए है। यह दोनों ही मंत्री केन्दªीय ललित कला अकादमी के तत्कालीन बरखास्त एवं निलंबित सचिव सुधाकर षर्मा को बहाल करने की प्रक्रिया को अंतिम निर्देष दे चुके हैं।
माना जा रहा है कि इसके पीछे भाजपा की राश्ट्रीय स्तर की गंदी राजनीति खेली जा रही है। सुधाकर षर्मा को वापस लाने के लिए डाॅ. महेष षर्मा ने जोकि संस्कृति मंत्री है अपने आका केन्दªीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह के इषारे पर लम्बा खेल खेला है। जहां व एक तरफ सुधाकर षर्मा को ललित कला अकादमी में बैठाना चाहते हैं वहीं दूसरी ओर अपने ही प्रधानमंत्री नरेन्दª मोदी को चुनौती देते हुए भ्रश्टाचार की अनंतगाथा और कथा लिखने की तैयारी कर रहें है।
हालाकिं महेष षर्मा कहते है कि मैनें तो इस मामले को बहुत गंभीरता से ले लिया है, जैसा कि पहले मंत्री श्री पदनायक ने आदेष जारी किया था, मैंने उसी को आगे बढ़ाया है। गौरतलब है कि इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की ऐवज में डा. महेष षर्मा को सुधाकर षर्मा द्वारा किस्तों में उपकिृत किया जा रहा है। इस उपकिृत किये जाने की प्रक्रिया में धन के अलावा और क्या-क्या षामिल है, यह गंभीर जांच का विशय है।
जब मोदी हर पहलू पर सफाई अभियान कर रहें है तो अपने ही मंत्रियों की काली करतूतों पर पर्दा क्यों डाला जा रहा है। अकादमी के सूत्र बताते है कि इस बात की जानकारी भाजपा के राश्ट्रीय अध्यक्ष और मोदी के आँख और कान समझे जाने वाले अमित षाह को भी दी गई है तो फिर मोदी इस मसले पर मौन क्यों है और कला और संस्कृति से इस तरह की बेरूखी का मतलब क्या है। जैसा सब कुछ चल रहा है, क्या वैसा ही चलने दिया जाए। सुधाकर षर्मा पर भ्रश्टाचार से लेकर पेन्टिंग चोरी, फर्जी हवाई यात्राएं और अपने लोगो को लाभ पहुँचाना षामिल हैं।
श्री पदनायक ने अपने आदेष में साफ तौर पर दिनांक 04.06.2014 को कहा है कि डाॅ. सुधाकर षर्मा का और एक और अपील जो कि 19.08.2014 को जारी हुआ कि सुधाकर षर्मा को सचिव की पोस्ट से हटाया जाए एवं उनकी मुलाकात रद्द की जाए जो कि 05.05.2014 को जारी हुआ था। फाईलों के अभिलेखों के अनुसार डाॅ. सुधाकर षर्मा सचिव की पोस्ट के लिए चयन समिति द्वारा नियुक्त किया गया था। एक आॅडर आया जोकि 05.05.2014 को ललित कला अकादमी के अध्यक्ष द्वारा भेजा गया जिसमें लिखा गया था कि सुधाकर षर्मा के चयन प्रक्रिया में दोश था।
इसमें ये नहीं दर्षाया गया कि किसकी षिकायत पर ऐ आॅडर भेजा और चयन प्रक्रिया के किस परीक्षा फाईल में दोश था। इस लेख से सुधाकर षर्मा की मुलाकात रद्द कर दी गयी बिना किसी प्रक्रिया के और सुधाकर षर्मा को कोई मौका भी नहीं दिया गया अपनी बात रखने का। 05.05.2014 को अध्यक्ष के आॅडर में जो कि सुधाकर षर्मा के मुलाकात को रद्द करने के लिए थे, इन्हें हटाया या मिटाया गया था।
संस्कृति मंत्री डाॅ. महेष षर्मा के आदेष पर भारत सरकार के अनुसचिव एन.पी. षुकला ने आदेष पालन करते हुए पत्रावली 03.15.2014 ऐकेदमीज दिनांक 10.12.2014 के अंर्तगत साफ तौर पर उल्लेख किया है कि डाॅ. सुधाकर षर्मा का सचिव के रूप में रद्द किया गया जिसका आॅडर नं0 एलके/3003/3531/एडमिन/594 है जो कि 05.05.2014 को जारी हुआ था। जबकि सुधाकर षर्मा ने एक अपील दिनांक 04.06.2014 को सैन्ट्रल सरकार को की और डाॅ. सुधाकर षर्मा ने एक चुनौती फाईल कर ललित कला अकादमी के आॅडर के खिलाफ जोकि दिलांक 05.05.2014 को जारी हुआ था एवं दिनांक 07.07.2014 को फाईल आॅडर की गई।
सुधाकर षर्मा ने दिनांक 04.06.2014 को एक अपील फाईल की और उसमें सारे दस्तावेज थे कि उनका किस तरह चयन समिति द्वारा चयन किय गया दिनांक 17.05.2005 को। अतः डाॅ. सुधाकर षर्मा को फिर से ललित कला अकादमी में सचिव बनाने की प्रक्रिया षुरू की जा रही है। सम्पूर्ण राश्ट्रीय कला समाज में भारत सरकार के संस्कृति मंत्री डाॅ. महेष षर्मा के इस कृत्य को बहुत गंभीरता से लिया है और उनकी पुनः बहाली का पुरजोर विरोध किया है साथ ही पूरे कला समाज की यह मांग है कि इन कला संस्थानों को ऐसे मंत्री राजनीति और अपने हित साधने का अखाड़ा ना बनाए।
आखिर डाॅ. महेष षर्मा कौन है और वह कैसे इस मुद्दे को लेकर इतने लोकप्रिय हो गए। इसके पीछे राश्ट्रीय स्तर पर भाजपा के अंदरखाने से ही एक बड़ी राजनीति खेली जा रही है। गौरतलब है कि डाॅ. महेष षर्मा केन्दªीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह के आदमी माने जाते है। 2009 में जब राजनाथ सिंह ने गाजियाबाद से लोकसभा का चुनाव लड़ा था तो उसकी पूरी वित्तीय व्यवस्था डाॅ. महेष षर्मा ने की थी। डाॅ. महेष षर्मा स्वयं खुर्जा लोकसभा सीट से चुनाव लड़े थे और हार गए थे। 2012 के विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेष के नौएडा सीट से विधानसभा का चुनाव लड़े और कुछ वोटों से ही जीत कर विधानसभा पहुँचे।
2014 की लोकसभा में उन्हें फिर से टिकट दिया गया और ऐसा राजनाथ सिंह के इषारे पर ही हुआ क्योंकि राजनाथ सिंह उस समय भाजपा के राश्ट्रीय अध्यक्ष थे। नरेन्दª मोदी और राजनाथ सिंह में खुले रूप से जंग चल रही है, यह बात किसी से छुपी नहीं है। कहीं महेष षर्मा यह पूरा खेल राजनाथ सिंह के इषारे पर तो नहीं खेल रहें है। डाॅ. सुधाकर षर्मा और अकादमी के पूर्व अध्यक्ष अषोक बाजपेयी किसी समय ललित कला अकादमी में खुलकर और मिलकर भ्रश्टाचार की अनंतगाथा लिख रहे थे।
जब सुधाकर ने अषोक बाजपेयी के लोगों पर हमला करना षुरू किया तो अषोक बाजपेयी सुधाकर षर्मा के सबसे बड़े विरोधी बन गए। बात 2011 की है कि ललित कला अकादमी में 14 वर्श पुराना इतिहास दौहराया जा रहा था। सन 1997 में केन्दªीय कला अकादमी के उस दौरान के उपाध्यक्ष डाॅ. आनंद देव को हटाने के लिए चैतरफा दवाब बनाया गया था और आनंद देव को जाना पड़ा था। इस दौरान ठीक यही प्रक्रिया डाॅ. सुधाकर षर्मा के लिए अपनाई गई। इस पुरे घटनाक्रम में महत्वपूर्ण तथ्य यह था की अषोक बाजपेयी खुल कर सामने आ गए थे।
व सुधाकर षर्मा की बर्खास्तगी से कम राजी नहीं थे। इसके लिए वह जहां कुछ बड़ो नामों को खोलने से कतरा रहे थे वहीं दूसरी ओर संविधान की दुहाई भी देते नहीं थर रहें थे। कहा जा सकता है कि अषोक बाजपेयी सुधाकर षर्मा को साथ ही कुछ बड़े और नामचीन लोगो के चेहरे से भी पर्दा उठाने को आतुर दिख रहे थे। ललित कला अकादमी एक बार फिर सुर्खियों में थी। इस बार वह अपने किसी कला आयोजन की वजह से चर्चा का केंदª बिंदु नहीं थे बल्कि इस बार चर्चा का केन्दª बिंदु थे अषोक बाजपेयी थे जिन्होंने सीधे तौर पर अकादमी के सचिव सुधाकर षर्मा की निुक्ति को असंवेधानिक और बलत करार देते हुए चुनौती दी थी। गौरतलब है कि ललित कला अकादमी के सचिव की नियुक्ति और बर्खास्तगी के अधिकार ललित कला अकादमी के अध्यक्ष अषोक बाजपेयी ने गेंद सामन्यपरिशद् के पाले में दाल कर स्वयं को विवादों से दूर रखने की कोषिष की थी।
बाजपेयी चाहते है कि सामनय परिशद् की आगामी 8 दिसम्बर को हाने वाली बैठक में यह मामला जोरदार तरीके से उठाया गया और उन्हें इस पर अपनी मोहर लगाने का एक माकूल मौका मिल गया। दरअसल लगभग एक वर्श से सुधाकर षर्मा और अषोक बाजपेयी में खुली जंग चल रही थी। माना यह जा रहा था कि सुधाकर षर्मा तो मात्र एक छोटी मछली थे ललित कला अकादमी की भ्रश्ट अनंत कथा में दरसल षास्त्री भवन में बेठे कुछ बड़े नाम थे जिनके तार सीधे तौर पर दस जनपथ से जुड़े हुए थे और यही वह लोग थे जो सुधाकर षर्मा का सुरक्षा कवच बन कर खड़े हुए थे।
माना जा रहा था कि ललित कला अकादमी के कई मामलों में सोनिया गांधी के राजनीतिक सलहाकार अहमद पटेल ने सीधे तौर पर हस्तक्षेप किया था और सुधाकर उन्हीं के इषारे पर अकादमी की भ्रश्ट कथा का विस्तार करने में हए थे। पहला मामला सुधाकर षर्मा की नियुक्ति को लेकर थे जिसका पेच बहुत ही उलक्षा हुआ था। यदि इस पर अषोक बाजपेयी ने गंभीर रूख इख्तियार कर लिया था। इसमें सुधाकर के साथ-साथ मानव संसाधन विकास मंत्रालय भी कठघरे में खड़ा हो सकता था।
गौरतलब है कि 12.10.2007 को अकादमी के उपाध्या सी.एल. पंचकुती अकादमी के सचिव सुधाकर षर्मा की नियुक्ति को स्थायी करने का आदेष किये और 18.10.2007 को सुधाकर षर्मा ने पंचकुती को कार्यकारी अध्यक्ष बनाने के लिए एक पत्र मंत्रालय को लिख जबकि दो पूर्व चैयरमैन और वर्तमान चैमें अषोक बाजपेयी को कई नोट नहीं लिखातें सवाल यह उठता था कि इन्हें स्थायी प्रमोषन किस आधार पर दिया गया था। इस मुद्दे पर अषोक बाजपेयी साफ तौर पर कहते है कि इसकी जांच चल रही थी। वह इस बात को स्वीकार करते है कि अकादमी के सचिव की नियुक्ति अधिकार केवल अध्यक्ष के पास थे।
इसे न तो मंत्रालय कर सकता था और न ही कार्यकारी अध्यक्ष फिर पंचकुती ने जिस दिन इनके स्थायी करण के आदेश जारी किये उस दिन तक वह केवल उपाध्यक्ष थे। साथ ही वह भी लगता है कि सुधाकर उन्हें कार्यकारी अध्यक्ष बनाने के लिए पत्र केवल इसलिए लिखा की वह अपना बचाव कर सकें। माना जा रहा था कि इसमें पंचकुती के अलावा षास्त्री भवन में बैठे कुछ बड़े अधिकारियों की भूमिका भी अत्यंत संधिग्ध थी जिसकी जांच बहुत जरूरी थी।
इसमें एक नाम साफ दिखाई दे रहा था वह था के.आर. सुब्त्र। डाॅ. सुधाकर षर्मा ने के.आर. सुबन्ना वर्तमान तथा भूतपूर्व सामान्य परिशद् के कई सधोकारिणी को प्रभावित करने के लिए अकादमी पुरस्कार और आर्थिक लाभ से लाभान्वित किया गया था। ऐसा केवल इस बजह से किया गया कि सुधाकर षर्मा इन लोगों के माध्यम से अपने पक्ष में नरनी करा सके। स्वाल उठता है कि यह मामला इतने दिनों तक क्यों दब्बाया गया। सारी बातें अषोक बाजपेयी की जानकारी में थी। जानकार बताते है कि अषोक बाजपेयी और सुधाकर षर्मा में मतभेद पिछले एक वर्श में ही उभरे थे।
सुधाकर ने कई मामलों में अषोक को चुनौती दी। उधर सुधाकर षर्मा कहते थे कि यदि मेरी नियुक्ति गलत थी तो चैयरमैन इतने दिन तक चुप क्यों रहे। अब जबकि उनका कार्यकाल 10 दिसम्बर 2011 को समाप्त हो रहा था तो वह सामान्य परिशद् का सहारा लेकर गड़े मुर्दे उखाड़ रहे थे। अब सुधाकर षर्मा को 8 दिसम्बर का इन्तजार है यदि यह मामला सामान्य परिशद की बैठक में उठा तो अषोक बाजपेयी जरा भी देर नही करना चाहते थे। वह जानते है कि सुधाकर की बर्खास्तगी में ही उसका अकादमी और कलाकारों का भला था। कलाकारों के एक वर्ग का कहना है कि अषोक को अकादमी और कलाकारों की भलाई की चिंता कतई नहीं थी। बल्कि उनके सहारे वह अपना दामन साफ रखना चाहते थे।
यह तो तय है कि अकादमी में सुधाकर षर्मा को आने के बाद भ्रश्टाचार बढ़ा है और उसके लिए एक हद तक अषोक बाजपेयी भी जिम्मेदार थे। अषोक बाजपेयी से जब बात की गयी तो उनका कहना था कि पंचकुती ने कार्यकारिणी समिति और भारत सरकार के मंत्रालय सेअनुमति ली जोकि संविधान का खुला उलंधन था। वह कहते है कि यह मामला अध्यक्ष के समक्ष नही रखा गया जब यह बात मेरी जानकारी में आई तो इसे एक कमेटी बनाकर उसे सौंपा गया था। कमेटी जांच कर रही थी कि परिशद् ने 8 दिसम्बर को बैठक करने की योजना बनायीं थी। उस बैठक में आएगा। मुझे लगेगा कि मुझे अपने पद का इस्तेमाल करते हुए इस पर कोई निर्णय करना चाहिए तो मैं कलाकारों की मांग और सामान्य परिशद् की कार्यवाही का निष्चित तौर पर स्वागत करूँगा।
अकादमी के उपाध्यक्ष के आर सुबन्ना समान्य परिशद् के सदष्य अनिरूद्ध पटेल तथा रविन्दª साल्वे कई लोगों पर भ्रश्टाचार के आरोप थे इन्होंने कोर्ट आॅफ कन्डक्ट का सीधा उल्लंघन किया था। इन लोगों के बारे में साफ तौर पर यह उल्लेख है कि यह किसी तरह का आर्थिक लाभ नहीं लेंगे लेकिन सुधाकर ने इन्हें अपने पक्ष में करने के लिए पुरस्कार और आर्थिक लाभ दिलवायें और इन्हें बचाने की कोषिष में लगे हये थे। सुधाकर षर्मा डाॅ. महेष षर्मा के माध्यम से अपनी बहाली कराकर फिर से अकादमी में वहीं पुराना खेल खेलना चाहते हैं लेकिन इस बार समस्या यह है कि ललित कला अकादमी के वर्तमान अध्यक्ष के.के. चक्रवर्ती उनके जाल में फसते नहीं दिख रहें है।
चक्रवर्ती इस मामले को ऊपर तक ले जाना चाहते है। यदि चक्रवर्ती की माने तो सुधाकर षर्मा की बहाली ही असंवेधानिक है जिसके लिए वह सामान परिशद् के कुछ सदस्यों के सहयोग से सुधाकर षर्मा की बहाली को रोकने का पुरजोड़ प्रयास कर रहें है जो चक्रवर्ती के कम और कलाकारों के हित में ज्यादा होगा। बेहतर होगा कि प्रधानमंत्री नरेन्दª मोदी, मानव संसाधन मंत्री इस मामले पर गंभीर संज्ञान ले और षास्त्री भवन में बैठे अधिकारियों से लेकर संस्कृति मंत्री पर गंभीर कार्यवाही एक उचित कदम होगा।
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