कोच्चि, 28 जनवरी: हम जानते हैं कि समय गुजरता है। क्या ऐसा होता है?
कोच्चि मुजिरिस बिनाले 2014 में, समय के अनवरत रूप से सीधे बढ़ते रहने के बारे में हमारी धारणा को एक बार फिर पुष्ट किया गया है।
बिनाले के लिये जितिश कलात की क्यूरेटोरियल दृष्टि ‘‘व्होल्र्ड एक्पलोरेशन’’ में चित्रित किया गया कि समय और स्थान अक्ष हैं और दर्शकों की गति के साथ दुनिया अधिक स्पष्ट होती जाती है।
वह कहते हैं, ‘‘प्रदर्शनी हमारे रोजमर्रे के उन संकेतों और इशारों की व्याख्या करती है, जिन्हें हम समझने की कोशिश करते हैं। वह कहते हैं, ‘‘हम इन्हें स्पष्ट रूप से देखने के लिए या तो उस जगह के और करीब जाते हैं या वहां से दूर जाते हैं। इसी तरह से हम वर्तमान को समझने के लिए या तो अतीत में जाते हैं या भविष्य की ओर देखते हैं।’’
Charles and Ray Eames -Power of Ten |
बिनाले के मुख्य आयोजन स्थल एस्पिनवाल हाउस में बिनाले की आरंभिक कृति में दिवंगत चाल्र्स और रे एम्स के द्वारा 1977 में बनायी गयी वीडियो शामिल है जो दर्शकों को 10 सेकंड के अंतराल पर ज्ञात ब्रह्मांड के बाहरी छोर से परमाणु के भीतर की सबसे छोटी इकाई तक की यात्रा पर ले जाती है।
दस के गुणा में, हमारी आंखें हर 10 सेकंड में दस गुना दूरी तय करती है। जब फिल्म कैमरा मौजूदा सांसारिक जीवन से जूम करते हुये अंतरिक्ष में 10 करोड़ प्रकाश वर्ष दूर शून्य पर फोकस होता है और इसके बाद किसी पदार्थ के ज्ञात सर्वाधिक सूक्ष्म घटक को दिखाने के लिये मनुष्य की त्वचा, कोशिकाओं तथा परमाणुओं पर केन्द्रित होता है, तो यह अंतरिक्ष एवं समय दोनों की यात्रा करता है।
जर्मन कलाकार मार्क फोरमानेक का मानक समय ‘‘हमारे जीवन पर समय की गहरी छाप’’ का ही प्रतिबिंब है। वास्तविक समय में फिल्माए गये, वीडियो में श्रम करते मजदूरों के एक समूह को दिखाया गया है जो लकड़ी के टुकडों से बने 24 घंटे की डिजिटल स्टाइल को प्रस्तुत करते है।
प्रदर्शनी में कलाकारों द्वारा कोच्चि में स्थानीय समय को सेट कर लकड़ी के टुकड़ों से बनायी गयी एक वीडियो घड़ी शामिल है जिसकी सूई हर मिनट पर अपना स्थान बदलती है और कोच्चि का सही समय बताती है। एक अन्य स्तर पर, यह वैसे अनदेखे, अघोषित लोगों का बयान कर रही है जिनके श्रम उनके जीवन को आगे बढ़ने में मदद करते हैं।
केरल के कलाकार वाल्सन कूरमा कोल्लेरी की कृति ‘‘वक्त दुश्मन है’’ में कैब्राल यार्ड में जंगली पौधों की हरियाली के बीच स्थित कीचड़, मिट्टी और लेटराइट से बनी बड़ी सी मूर्ति के जरिये दिखाया गया है कि किस तरह से समय नामक यह दुश्मन आगे बढ़ता है।
Annie Lai Kuen Wan-Phenomenon of Times2 |
उनकी कलाकृति धूपघड़ी के सिद्धांत पर आधारित है, लेकिन यह घड़ी नहीं है। यह केवल समय की गति का अनुसरण करती है। यहां उसके सिर पर खड़े एक आदमी की मूर्ति के सामने बना शंकु आकार वाला, पतले किनारों वाला स्तंभ, 24 फीट व्यास में एक अंडाकार मंच पर छाया डालता है जो दिन बीतने का संकेत है।
कोल्लेरी कहते हैं कि कलाकृति की असली सुंदरता तो तब दिखती है जब समय, दुश्मन, इसकी दीवारों कोे काटता है और सुनसान जंगल हावी हो जाता है।
एस्पिनवाल हाउस में प्रदर्शित अमेरिका मूल की कलाकार तारा केलटन की वीडियो कला बेंगलूर में एक लोकल ट्रेन में यात्रा के समय उनके सरल प्रयास का एक रिकार्ड है। यह वस्तु एक लैपटाॅप स्क्रीन है जो ट्रेन के अंत में खुले दरवाजे के सामने रखा हुयी है, और जिसमें ट्रेन के सामने रखे कैमरा से लगातार वीडियो तस्वीरें आ रही हैं।
यह केल्टन को ट्रेन के सामने और पीछे दो स्थानों में एक ही समय में दो नजरिया प्रदान करता है, जो उनके लिए, ‘‘एक ही समय में दो स्थानों या एक ही स्थान पर दो समय, या दोनों के माध्यम से रोजाना यात्रा के एहसास को बढ़ाता है।’’
एक तरफ जहां केलटन की ‘समय यात्रा’ वास्तविक दुनिया में है, वहीं दूसरी तरफ मुंबई स्थित सुधीर पटवर्धन की यात्रा उनके दिमाग में होती है। ‘एनकाउंटर्स इन टाइम’ शीर्षक वाले लिथोग्राफ की एक श्रृंखला में काल्पनिक अतीत और भविष्य की अपनी यात्रा के दौरान उन्होंने अचानक जिन अजीब चेहरों को टकटकी लगाकर देखा था उन्हें वह ईमानदारी से बनाते हैं।
हांगकांग के कलाकार एनी लाइ क्वेन के समय के विषय को दरबार हॉल में प्रदर्शित किया गया है। वे कहते हैं कि हम समय के सबसे अधिक पंक्तिबद्ध मानव कथा के रूप में इतिहास की पुस्तक को जानते हैं। लेकिन इस मामले में, 1906 में प्रकाशित नौ खंड में आर. सी. दत्त की हिस्ट्री आॅफ इंडिया प्रमुख है।
वान हर पृष्ठ पर मिट्टी से सावधानी पूर्वक परत चढ़ाते हैं और उन्हें भट्ठे में तब तक जलाते हैं जब तक कि पेज जल न जाए। इस प्रकार वह ऐतिहासिक कथा को मिटा देते हैं और हर पुस्तक केवल भूतिया, नाजुक मिट्टी के गोले के रूप में रह जाता है, जो उनके ‘समय के प्रकाश या शून्य’ का प्रतिबिंब है।
Mark Formanek-Standard Time |
वान भविष्य को देखने के लिए अतीत में कदम रखते हैं, वहीं दूसरी ओर मैरी वेलार्डी इसके विपरीत करती हैं। स्विस कलाकार के ‘फ्युचर परफेक्ट, 21 सेंचुरी’ को एस्पिनवाल हाउस में प्रदर्शित किया गया है। यह 100 साल का एक वैसा समय है जैसा कि दुनिया भर की विज्ञान कथा पुस्तकों और फिल्मों में कल्पना की गयी है। यह डिस्टोपिक और एपोकैलिप्टिक दृष्टि से परिपूर्ण है जिसे हम आर्थर सी. क्लार्क, आइजैक आसिमोव और फिलिप के. डिक और अन्य लोगों के कार्यों से जानते हैं।
इन आयोजनों में में तीसरा विश्व युद्ध, कंप्यूटर द्वारा ग्रह का अधिग्रहण, धूमकेतुओं का मानव उपनिवेश, रोग के कारण जीवन का विनाश शामिल है। इसके अलावा ‘‘वह समय जब दुनिया में हर कोई पुर्तगाली बोलेगा’’ भी शामिल हैं।
नेहा चोकसी के आईसवोट में समय की रैखिकता वृत में मुड़ी हुई है। मुंबई स्थित कलाकार ने बर्फ से बनी नाव को प्रदर्शित किया है। उन्होंने धीरे-धीरे विनष्ट हो रहे शरीर के भीतर की आत्मा को दिखाया है। समय नाव को पिघलाता है और वह पानी में ‘घुल-मिल’ जाता है। डूबने पर प्रारंभिक निराशा इस विश्वास के आगे आत्मसमर्पण करने के लिए रास्ता प्रदान करती है कि आत्मा जन्म, मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र में पुनर्जीवित रहती है।
इस प्रकार, प्रदर्शनी में कई कलाकृतियों का मुख्य या संबद्ध विषय ’’समय’’ है। बिनाले के निदेशक बोस कृणमाचारी कहते हैं कि समय और स्थान दोे विषय हैं जिनके बारे में कलाकारों ने ध्यान केन्द्रित किया है। ‘‘ये स्थिर या परिभाषित की जाने वाली संस्थाएं नहीं है, इसलिए इन पर अधिपत्य हासिल करना और उनकी व्याख्या करना एक चुनौती है। एक कलाकार के रूप में मेरा आत्म-साक्षात्कार इस चुनौती का सामना करने में सक्षम हो रहा है।’’
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