प्रसिद्ध कत्थक हस्ती ने गायन किया, हारमोनियम बजाये और अपनी पुरानी यादों को साझा किया
हैदराबाद, 10 जनवरी: खचाखच भरे आडिटोरियम में तालियों के गड़गड़ाहट और वाह-वाही के बीच नृत्य प्रस्तुत करने के बाद, प्रसिद्ध कत्थक नृतक बिरजू महाराज ने जब माइक के पास आकर हिन्दी में अपना संबोधन दिया तब एक बार फिर पूरा हाल तालियों की जोरदार गड़गड़हाट से गूंज उठा।
Pandit Birju Maharaj |
हैदराबाद में चल रहे वार्षिक कृष्णकृति कला एवं संस्कृति महोत्सव के दौरान आयोजित समारोह में 76 वर्षीय प्रसिद्ध कत्थक नृतक बिरजू महाराज ने कहा, ‘‘मेरे चाचा हैदराबाद से हैं लेकिन मैं बहुत कम बार इस शहर में आया हूं। आप मुझे जितना प्यार करेंगे, उतना ही अधिक मैं यहां आउंगा।
तालियों की गड़गड़हाट के बीच दिल्ली में रहने वाले नृतक ने कहा, ‘‘आपसे मिलकर बहुत खुशी हुयी। मैं आपको नये साल की बधाई देता हूं।’’
100 मिनट तक चले अपने कार्यक्रम के दौरान पंडितजी और उनकी मंडली ने उत्तर भारत के शास्त्रीय नृत्य की समृ़द्ध विरासत की झलक पेश की। इस मंडली में अपनी प्रमुख शिष्या सरस्वती सेन को खास तौर पर पेश किया। बिरजू महाराज को मौजूदा समय में उत्तर भारत की नृत्य शैली में महारत हासिल है जिसमें उनके जन्म स्थान लखनउ का घराना भी शामिल है।
पद्म विभूषण से सम्मानित पंडित बिरजू महाराज को ठुमरी, टप्पा और भजन की हिन्दुस्तानी संगीत शैलियों में भी विशेषज्ञता हासिल है। उन्होंने शिल्प कला वेदिका में आयोजित समारोह में दर्शकों से कहा कि सुर-ताल मानवता की विशेषता है यहां तक कि सभी प्रमुख हिन्दू देवी-देवता भी किसी न किसी रूप में कला से जुड़े हैं। शुक्रवार की शाम को आयोजित अपनी नृत्य प्रस्तुति के दौरान उन्होंने भगवान कृष्ण और उनकी बाल लीलाओं के अलावा उनके साहसिक करतबों को प्रस्तुत किया।
Kathak Maestro Pandit Birju Maharaj & troupe perform at five-day 11th Krishnakriti Festival of Art & Culture in Hyderabad on Friday, January 9 |
अपने बातूनी स्वभाव के अनुसार 16 बीट की तीन ताल पेश करने वाले वादकों की अपनी टीम की ओर मुखातिब होते हुये उन्होंने मजाक में फाग मशीन की ओर इशारा करते हुये कहा, ‘‘ये धूम्र खतरनाक है।’’ इस पर सरस्वती ने जवाब दिया, ‘‘नहीं, ये अच्छा है।’’
इसके तुरंत बाद नारंगी रंग का कुर्ता पहने तथा लहराते लंबे बालों वाले नृतक गुरू ने गैट की विभिन्न श्रृंखलाओं को पेश किया जिसमें तबला के जरिये पदचापों को पेश किया गया। पंडित बिरजू महाराज ने कहा, ‘‘कत्थक में घुंघरू नायिका है जबकि तबला नायक है जो एक दूसरे के पीछे आता है।’’
तबला के संगत के अलावा हारमोनियम, सितार एवं सारंगी के साथ उन्होंने अपने कार्यक्रम के दौरान यह कहते हुये एक बार फिर मजाक किया कि वह गणित में कमजोर हैं लेकिन कत्थक गाटों के सम्मिश्रण एवं उच्चारण के किसी भी क्रम को बता सकते हैं। उन्होंने अपनी आखों को उपर की ओर उठाते हुये कहा, ‘‘ऐसा शायद ईश्वर की कृपा के कारण है।’’
यह कार्यक्रम पांच दिन तक चलने वाले 11 वें कृष्णकृति महोत्सव के तहत आयोजित हुआ जिसके तहत शीर्ष स्तर के नृत्य, संगीत, सिनेमा एवं पेंटिग को प्रस्तुत किया जा रहा है। इसके अलावा व्याख्यानों, संगोष्ठियों और कार्यशालाओं का भी आयोजन किया जा रहा है। इस महोत्सव का आयोजन 2004 में स्थापित कृष्णकृति फाउंडेशन की ओर से किया जा रहा है। फांडेशन की लेखा लाहोटी ने अपने स्वागत संबोधन में कहा, ‘‘कृष्णकृति कला को जनता तक तथा जनता को कला तक ले जाने के लिये प्रयासरत है।’’
कत्थक गुरू ने अपने प्रदर्शन के दौरान बताया कि वह अपने परिवार की सातवीं पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनका परिवार उनके पिता अच्छन महाराज के समय से ही कत्थक की सेवा में है। उनके पिता मध्य भारत के रायगढ़ (अब छत्तीसगढ़ में) रियासत में राज नृतक थे। वह कहते हैं, ‘‘आज मेरे पुत्र और मेरी पोती नृत्य के क्षेत्र में हैं। इस तरह से यह कत्थक परिवार की नौवी पीढ़ी है जो इस क्षेत्र में है।’’
Kathak Maestro Pandit Birju Maharaj & troupe perform at five-day 11th Krishnakriti Festival of Art & Culture in Hyderabad on Friday, January 9 |
कार्यक्रम के आखिरी हिस्से में सरस्वती ने तालियों की गड़गड़ाहट के बीच नृत्य पेश किया जिसके दौरान पंडित जी ने हारमोनियम बजाते हुये राग पटदीप में ‘‘मेरा मन’’ गाया। बाद में उन्होंने खुद अपनी कविता पर नृत्य किया - मैं जंगल की लड़की नहीं हूं।’’ इस नृत्य के दौरान सरस्वती के अलावा छह नृत्यांगनाओं ने भी साथ दिया।
कत्थक गुरू ने इस कार्यक्रम में हाथी और घोड़े की चाल को प्रस्तुत किया जिस पर खूब वाहवाही मिली। उपस्थित श्रोतागण खास तौर पर उस लय से अत्यधिक प्रभावित हुये जिस दौरान उन्होंने बचपन से लेकर जवानी और बुढ़ापे तक के जीवन के विभिन्न प्रसंगों को कलात्मक तरीके से पेश किया।
यह कार्यक्रम सरस्वती की एक प्रस्तुति से शुरू हुआ जिसने 1977 में निर्मित सत्यजीत राय की फिल्म ‘‘सतरंज के खिलाड़ी’’ के उस नृत्य को पेश किया जिसके लिये पंडित जी ने संगीत दिया था और दो नृत्य रचनाओं के लिये गीत गाये थे। नीले परिधान पहनी हुयी सरस्वती बाद में म्युजिशियनों के साथ पंक्ति में बैठी और पंडित जी के नृत्य के लिये बोल दिये।
07-11 जनवरी तक चलने वाला कृष्णकृति महोत्सव हैदराबाद, सिकंदराबाद और साइबराबाद में छह स्थानों में आयोजित किया जा रहा है और यह आम लोगों के लिये निःशुल्क है। इसके साथ-साथ एक विशाल कला शिविर का आयोजन हो रहा है जिसकी आय चैरिटी को दी जायेगी।
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