सोमवार, 12 जनवरी 2015

दिल्ली में वयोवृद्ध फोटोग्राफर किशोर ठकराल की फोटो प्रदर्शनी पहाड़ी और शहरी जीवन को चित्रित करती है

किशोर ठकराल की एक सप्ताह तक चलने वाली प्रदर्शनी  ‘एफेमेरा...’ का बुधवार कोे आईएचसी में शुभारंभ 


Grand Bay, Mauritius (October 2012)
नई दिल्ली, 12 जनवरी: एक छायाकार की निपुणता और एक कवि की संवेदनशीलता के संयोजन वाले, प्रमुख भारतीय लेखक- फोटोग्राफर किशोर ठकराल ने एकल फोटोग्राफी प्रदर्शनी  ‘एफेमेरा...’ का आयोजन कर राष्ट्रीय राजधानी में कला परिदृश्य को एक नया रंग देने की तैयारी कर ली है। यह प्रदर्शनी दर्शकों को बार - बार याद आने वाली छवियों की एक टेपेस्ट्री के माध्यम से पहाड़ों के गुप्त स्थानों और वहां के लोगों के जीवन से रूबरू कराएगी। इंडिया हैबिटेट सेंटर में बुधवार (14 जनवरी) से शुरू होने वाले दिल्ली के कलाकार-लेखक किशोर ठकराल की एक सप्ताह लंबी प्रदर्शनी के तहत 73 स्पार्कलिंग तस्वीरों को प्रदर्शित किया गया है। ये तस्वीरें लद्दाख से नेपाल, मॉरीशस से जापान और स्पीति से कंबोडिया तक विविध भौगोलिक माध्यम से जीवन के दृष्यों की क्षणभंगुरता पर ध्यान केंद्रित करती है। इस प्रकार इस प्रदर्शनी में एक तरफ विचारमग्न पहाड़ों, विशाल रेगिस्तान और गड़गड़ाहट के साथ नदियो को प्रदर्शित किया गया है तो दूसरी तरफ मछली पकड़ने के जाल (कंबोडिया) और रेल पारगमन लाइन (टोक्यो) की तस्वीरों के माध्यम से शहरी कोलाहल को प्रदर्शित किया गया है। प्रदर्शनी की विशिष्ठता ठकराल के द्वारा दो विभिन्न माध्यमों - कैमरा और कविता के माध्यम से मानव- पहाड़- पानी और इससे परे कालातीत संबंध की जांच-पड़ताल के प्रमुख प्रयास में निहित है। ‘एफेमेरा...’ केवल फोटो प्रदर्शनी का शीर्षक नहीं है, बल्कि यह उनकी पहली पुस्तक का शीर्षक भी है जो उनकी कविता के साथ चित्रों को जोड़ती है। पश्चिमी हिमालय, विशेषकर स्पीति घाटी में पैदल यात्रा करने, फोटो खींचने और व्यापक रूप से शोध करने वाले कलाकार ने कहा, ‘‘यह सम्बन्ध  (आदमी, पहाड़ और जल) सदियों पहले शुरू हुआ था। यह सम्बन्ध हमारे ग्रह के अस्तित्व में रहने तक बना रहेगा। उनके अस्तित्व में रहने पर ही हमारा अस्तित्व रहेगा।’’
Kinnaur, Himachal Pradesh, India (May 2010)
कवि - कलाकार ने कहा कि तस्वीरों में इस्तेमाल किये गये सभी रंग एक तरफ दिलकश  प्रकृति की ओर ध्यान केंद्रित करते हैं तो दूसरी ओर अंतनिर्हित सन्देश के साथ शहरी परिवेश में मनुष्य  के परिश्रम और उथलपुथल को पेश करते हैं कि वे सभी ‘क्षणभंगुर (एफेमरा...) हैं। अनंत काल के इस ब्रह्मांड में, मैं क्या हूं, मात्र एफेमेरा हूं! इस प्रदर्शनी को प्रख्यात कला इतिहासकार, क्यूरेटर और सांस्कृतिक विचारक अलका पांडे ने क्यूरेट किया है। इस प्रदर्शनी का शुभारम्भ जाने-माने संगीतकार शांतनु मोइत्रा करेंगे। डाॅ. पांडे ने कहा, ‘‘नश्वर , अस्थायी, क्षणभंगुर, क्षणिक। इन गुणों को किशोर ठकराल की फोटोग्राफी में परिभाषित किया गया है। उन्होंने फोटोग्राफी मुख्य रूप से खुद ही सीखी है। सौंदर्य के साथ शिल्प को संबद्ध करने के उनके जुनून ने बिल्कुल अलग कृतियों का सृजन किया। उन्होंने लैंडस्केप से फोटोग्राफी, वृत्तचित्र कथन से एकल छवियों जैसी कई शैलियों से परे तस्वीरें उतारीं। उन्होंने कहा, ‘‘हजारों तस्वीरों में से, ये चुनींदा 73 तस्वीरें विभिन्न शैलियों, बनावट, टोन और फ्रेम के माध्यम से किशोर के पदचिन्हों की कहानी सुनाते हैं। इन सभी तस्वीरों को उनके प्रोफेशनल लेंस के जरिये एक साथ प्रदर्शित किया गया है। इस अवसर पर प्रसिद्ध अभिनेत्री-लेखक-चित्रकार-फोटोग्राफर दीप्ति नवल ‘एफेमेरा...’ पुस्तक का विमोचन करेंगी। यह पुस्तक ठकराल के विचारों को बौद्ध दर्शन को आत्मसात करते हुए प्रस्तुत करती है, कि नश्वरता जीवन में एकमात्र स्थायी चीज है। हम अमरता के लिए तरस सकते हैं, लेकिन ‘क्षणभंगुरता’ हमारी अटल नियति है। पुस्तक के अपने प्राक्कथन में, दीप्ति नवल लिखती हैं: ‘‘उनकी (किशोर) यात्रा उन्हें पहाड़ों में दूरदराज के क्षेत्रों में ले आयी और एक पूर्णतः नई ब्रह्मांड में ले आयी। इस यात्रा में कैमरा किशोर का एक अविभाज्य अंग बन गया। मैंने उन्हें कैमरे का इस्तेमाल इस तरह करते देखा मानो कोई कलाकार अपना ब्रश चला रहा हो। जाहिर है, उनकी फोटोग्राफी सहज है, लेकिन अस्वाभाविक नहीं ...। उनकी पुस्तक के माध्यम से यह कहना मुश्किल है कि यह उनकी तस्वीर है या उनके शब्द हैं जो अधिक विचारोत्तेजक हैं।’’ 198 पृष्ठ की इस पुस्तक में पहाड़ों और लोगों के जीवन के विभिन्न मूड के कुल 171 फोटो हैं। वह कहते हैं, ‘‘मेरी कविता हताशा और हमारे शहरों की कृत्रिम वस्तु वाली दुनिया के निवासियों की लालसा को दर्शाती है।’’
Yurikamome automated transit line,  Tokyo Waterfront, Japan (October 2014)
मध्यम आयु वर्ग वाले दृश्य कलाकार के लिए, ये तस्वीरें एक तरह की श्रृंखला प्रतिक्रिया का परिणाम हैं। हिमालय के उनके दौरे ने उन्हें पहले पानी के पास लाया, फिर पानी ने उन्हें निवास स्थान के पास लाया, निवास स्थान ने विश्वास और विश्वास ने मठों और मंदिरों, और फिर मठों और मंदिरों ने कला के पास लाया। वह बौद्ध जीवन और परिदृश्य से संबंधित तस्वीरों की शूटिंग के लिए अपने जुनून के लिए विशेष रूप से जाने जाते हैं। उन्होंने ‘स्पीति थ्रो लीगेंड एंड लव’ नामक पुस्तक लिखी है, जिसमें घाटी की किंवदंतियों और लोककथाओं को पाठ और तस्वीरों दोनों रूपों में पेश किया गया हे। ठकराल ने कई फोटोग्राफी प्रदर्शनियों का आयोजन किया है और स्पीति, डांगखर और वज्रयान बौद्ध कला पर सचित्र व्याख्यान पेश किये है। उनकी तस्वीरें भारत सरकार के भारतीय डाक के द्वारा बुद्ध पर बने 2011 के कैलेंडर सहित, पुस्तकों, पत्रिकाओं और कैलेंडरों में प्रकाशित की गयी हैं। उन्होंने 2011 में ‘शरणम् गच्छामि: जागृति का एक एलबम’ (फुल सर्किल) का संकलन और संपादन भी किया है। यह बौद्ध सिद्धांतों पर फोटोग्राफिक इंटरप्रीटेशन की एक कॉफी टेबल बुक है, जिसमें रिचर्ड गेरे, स्टीव मैकक्युरी, रघु राय और दीप्ति नवल सहित दुनिया के विभिन्न हिस्सों से 20 फोटोग्राफरों के तस्वीरों को शामिल किया गया है। उनके अन्य कार्यों में ‘द क्राॅनिकल्स डाउटर’ (2002) नामक उपन्यास शामिल हैं। वह वर्तमान में हिमालय और तिब्बती बौद्ध शास्त्र पर एक पुस्तिका पर काम कर रहे हैं । उन्होंने पुरस्कार विजेता फिल्म ‘आई एम कलाम’ के लिए थीम गीत सहित कई गीतों को लिखा और अनुवाद भी किया है। एक विरासत संरक्षणवादी के रूप में, वह नई दिल्ली में एक अम्ब्रेला वल्र्ड बुद्धिस्ट बाॅडी मुख्यालय वाले अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ के कार्यकारी निदेशक (संचार) हैं। हालांकि पेशे से, वह एक स्वतंत्र वित्तीय सलाहकार हैं। इस प्रदर्शनी को इंडिया हैबिटेट सेंटर के दृश्य कला गैलरी, में 14 जनवरी से 20 जनवरी तक सुबह 11 बजे से 8 बजे तक देखा जा सकता है।
Rohtang Pass, Himachal Pradesh, India (July 2011)

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