मंगलवार, 24 मार्च 2015

बिनाले कलाकार ने युद्ध और भव्य वास्तुकला का संबंध जुनून से जोड़ा

ईरानी कलाकार शाहपोर पोउयान का इंस्टालेशन सत्ता की संरचना को उजागर करता है
कोच्चि, 24 मार्च: भव्य वास्तुकला रचनात्मक होती है और युद्ध विनाशकारी होता है, लेकिन कोच्चि - मुजिरिस बिनाले (केएमबी) में ईरानी कलाकार शाहपोर पोउयान का मानना है कि ‘‘जुनून एक  ऐसा तत्व’’ है जो इन दोनों को जोडता है।
Shahpour Pouyan's work at Durbar Hall,
कोच्चि-मुजिरिस बिनाले के एक प्रदर्शनी स्थल दरबार हॉल गैलरी में ईरानी कलाकार की कृति के तीन हिस्से हैं: ‘स्थिर जीवन’, ‘अकल्पनीय विचार’ और ईरानी पर्वत ‘‘दामावंद का शिखर’’। ‘स्थिर जीवन’ के तहत प्रथम विश्व युद्ध के दौरान जब्त किये गये जर्मन गोला-बारूद के एक फोटोगाफ को चीनी मिट्टी में उतारा गया है। ‘अकल्पनीय विचार’ में विभिन्न स्थानीय निवासियों से सत्ता का स्थापत्य निहित हैं और ‘दामावंद का शिखर’ ईरान की सबसे ऊंची पर्वत की एक उल्टी पेंटिंग है जिसके जरिये परमाणु विस्फोट के गहन विश्लेशण का आह्वान किया गया है।
मध्य पूर्व, यूरोप और अमेरिका में व्यापक रूप से अपनी कृतियों का प्रदर्शित करने वाले पोउयान कहते हैं, ‘‘यह जुनून ही है जो मनुष्य को युद्ध करने के लिए और साथ ही साथ खुद के लिये स्मारक बनाने के लिए प्रेरित करता है। इसके अलावा, गोलियों का आकार गुरुत्वाकर्षण तथा शक्ति के आधिपत्य को प्रदर्शित करता है। मुझे लगता है कि हमारी प्रकृति में कुछ ऐसा है जो इन आकृतियों को आक्रामक स्मारकीय रूपों में होने के लिए मदद करता है।’’
पोउयान कहते हैं यह थोड़ा मजेदार है कि यह इंस्टालेशन ‘‘परिदृश्य’’ तथा स्थिर जीवन जैसे क्रांतिकारी आधुनिक विषयों को सुझाता है। यह इंस्टालेशन संयुक्त अरब अमीरात की राजधानी अबू धाबी में आयोजित एक प्रदर्शनी के दौरान बिनाले, 2014 के क्यूरेटर जितिश कलात की नजर में आयी। पोउयान कहते हैं कि ‘‘स्थिर जीवन’’ में उन्होंने गोलियों के फोटो को त्रिआयामी आकार में पुनर्निर्मित किया है जो इस बात का स्मरण दिलाता है कि 18 वीं एवं 19 वीं शताब्दी के स्वामी अभी भी हैं।’’
Shahpour Pouyan's work at Durbar Hall,
35 वर्षीय कलाकार पोउयान कहते हैं कि वास्तुकला कृति ‘‘अकल्पनीय विचार’’ ‘‘मनुष्यो के लिये ऐसे भव्य स्मारकों’’ की आवष्यकता को सुझाता है, चाहे वे गुंबद हो, चाहे रोमन देवता हो या हिटलर के जर्मेनियों के अधूरे गुंबद हों। वह कहते हैं, ‘‘यह सभ्यता के अवशेषों के परिदृष्य हैं और हमारे धरोहर के गाइड हैं।
पोउयान कहते हैं कि वह कलाकार से कहीं अधिक पुरातत्ववेत्ता हैं जो ‘‘विषमताओं के संग्रहकर्ता, के रूप में अपनी रूचि से मिलती-जुलती दिलचस्प वस्तुओं को खोजने के लिये सभी तरह के सभी ऐतिहासिक सामग्रियों का निरीक्षण करता है।’’
युद्ध में उनकी रुचि 1980 के दशक के आठ साल के लंबे ईरान-इराक युद्ध के दौरान सैन्य सामग्रियों, हवाई जहाज और युद्ध मशीनों की तस्वीरों और ब्लूप्रिंट के संपर्क में आने के साथ ईरान में एक सैन्य परिवार में जागृत हुई। तेहरान और न्यूयॉर्क में रहने वाले पोउयान कहते हैं, ‘‘यह विभिन्न युद्धों के बारे में पढ़ने और इन पर शोध करने और ऐतिहासिक सामग्रियों को इकट्ठा करने की लत की शुरुआत थी। सबसे प्रभावशाली युद्ध दोनों विश्व युद्ध थे। मैं इन दोनों युद्धों की महिमा और इन युद्धों ने पृथ्वी को जिस प्रकार प्रभावित किया, इन चीजों से काफी प्रभावित रहा हूँ। मैं कम से कम उन 5 करोड़ लोगों जिनकी इन युद्धों में मौत हो गयी और उन्हें कोई प्रसिद्धि हासिल नहीं हुई, को अनदेखा नहीं कर सकता। लेकिन मनुष्य युद्ध के बिना नहीं रह सकते और प्रौद्योगिकी तक पहुंच और युद्ध सामग्रियों के अधिक उत्पादन और मनुष्य के लिए आसानी से इनके उपलब्ध होने के कारण युद्ध भविष्य में और अधिक प्रभावशाली हो जाएगा।’’
Shahpour Pouyan's work at Durbar Hall,
कलात कहते हैं, ‘‘इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि पोउयान की कृति इंस्टालेशन की मंत्रगुग्ध कर देने वाली सुंदरता की मदद से और युद्ध के अव्यवस्थित इतिहास के प्रति दर्शकों का ध्यान आकर्शित कर संघर्ष की रूपरेखा के साथ दर्शकों को जोड़े रखती है।’’
पोउयान का मानना है कि भारत उनके युद्ध से प्रेरित काम के बारे में संवाद करने की ‘उत्कृष्ट जगह’ है। इस सप्ताहांत में समाप्त होने वाले बिनाले के बारे में वह कहते हैं, ‘‘युद्ध, हमलों और स्मारकों से समृद्ध इतिहास के साथ यह भारत में आकर्षण का केन्द्र है। मैं यहाँ आकर और फोर्ट कोच्चि के विशेष ऐतिहासिक संदर्भ में अपनी कृति को पेश करने का मौका मिलने पर बहुत खुश हूँ।’’

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