बुधवार, 14 जनवरी 2015

पर्यावरण एवं विरासत संरक्षण की जागरूकता कायम कर रही है कोच्चि-मुजिरिस बिनाले में प्रदर्शित परियोजना

दो महीने की इस परियोजना के जरिये पारिस्थितिक चुनौतियों के समाधान की
तस्वीरों को प्रदर्शित किया जा रहा है
कोच्चि , 14 जनवरी: एथनिक वस्तुओं की बिक्री वाले कोच्चि के एक भीड़- भाड वाले बाजार से प्रेरित विचारों के आधार पर अमरीकी कलाकार त्रिसिया वान इक एवं उनकी टीम ने कोच्चि शहर में चल रहे कोच्चि मुजिरिस बिनाले में एक अद्भुत परियोजना की जिसके जरिये विरासत के संरक्षण का सन्देश  देने वाली तस्वीरों एवं चित्रों की अनूठी प्रदर्शनी आयोजित की जा रही है। विरासत का संरक्षण बिनाले का अभिन्न अंग है।
बिनाले के दौरान दो माह की इस परियोजना में पश्चिमी कोच्च के ऐतिहासिक यहूदी शहर के विरोधाभासी दृष्यों  को प्रदर्शित किया गया है। इस परियोजना को अमरीकी कलाकार ने दो अन्य सहयोगियों के साथ मिलकर क्यूरेट किया है। इस परियोजना में फोटोग्राफरों, ड्राइंग्स , डायग्रामों,  कलाकारों  की पुस्तको तथा पम्प्लेटों  के साथ-साथ एक आर्गेनिक उद्यान भी है। इस परियोजना को इस बात पर केंद्रित किया गया है कि कैसे दुनिया भर के समुदाय महत्वपूर्ण जरूरतों को पुनर्परिभाषित कर रहे हैं और प्रकृति के दीर्घकालिक स्थिरता के लिए समाधान खोज रहे हैं।
शिकागो में रहने वाली त्रिसिया कहती हैं कि ‘‘रूटिंग (इंडिया): द नाॅलेज प्रोजेक्ट’’ नामक यह परियोजना मुख्य रूप से भारत तथा अमरीका के  कलाकारों, कार्यकर्ताओं और किसानों की परियोजनाओं के माध्यम से कला, भोजन और पारिस्थितिकी को जोड़ती है। उन्होंने दिल्ली के सामाजिक कार्यकर्ता अक्षय राज राठौर सिंह तथा अमरीका के देबोरा बोर्डमैन के साथ मिलकर कोच्चि-मुजिरिस बिनाले, 2014 की इस परियोजना की अवधारणा तैयार की। तस्वीरों के जरिये करीब 36 कृतियों  को प्रदर्शित किया गया है।
गमलों में लगाये गये पौधों  के बीच खड़ी त्रिसिया कहती हैं, ‘‘यहां हम कोई   शिकायत करने या कोई बयान देने नहीं आये हैं। हम निश्चित रूप से उन पारिस्थितिकी, सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों का समाधान पेश कर रहे हैं जिनका सामना दुनिया भर में किसान और उपभोक्ता कर रहे हैं। वहां आर्गेनिक चाय की चुस्कियां लेते हुये दर्शक प्रदर्शित चित्रों का अवलोकन कर रहे हैं। कोच्चि मुजिरिस बिनाले के मुख्य आयोजन स्थल फोर्ट कोच्चि के पास स्थित मैट्टनचेरी में युसूफ कला दीघा में  दर्शकों को आर्गेनिक चाय की भी पेशकश की जा रही है।
त्रिसिया कहती हैं, ‘‘हम दरअसल यहां अनौपचारिक बातचीत को प्रोत्साहित करते हैं। शिकागो में 6018 नार्थ गैलरी का संचालन करने वाली त्रिसिया कहती है, ‘‘हमने दक्षिण एशिया एवं अमरीका के  किसानों के समक्ष खड़ी पारिस्थितिकी, सामाजिक एवं आर्थिक चुनौतियों  के संभावित समाधान की खोज करने तथा लोगों को इस संबंध में जोड़ने तथा इस बारे में बातचीत के लिये प्रेरित करने के लिये एक वार्ता स्थल भी बनाया है।’’ त्रिसिया ने शिकागो में म्युजियम आफ कंटेम्पररी आर्ट के सहायक क्यूरेटर के रूप में 13 साल तक काम किया।
कोच्चि मुजिरिस बिनाले, 2014 के तहत यह नालेज परियोजना 12 फरवरी तक चलेगी। इसमें न केवल आर्गेनिक खेती के सिद्धांतों को लागू किया गया है बल्कि यहां आने वाले दर्शकों को अनाज, सब्जियां तथा फल भी दिये जा रहे हैं ताकि वे इन्हें बाद में लगा सके। त्रिसिया कहती हैं, ‘‘यहां रखी गयी पुस्तिको में अपने नाम, ईमेल और उस जगह को  लिख दें जहां पौधों को लगाएंगे ।’’  
संदर्भ के लिए पुस्तकों के अलावा सतह वाला टेबल है जिस पर अगर कोई पेपर रखा जाये तो इस पर तस्बीर बनती है। उस तस्बीर में यहां रखी गयीपेँसिलोँ के जरिए रंग भरा जा सकता है त्रिसिया ‘‘सामग्रियों के  टेबल : जेनेसिस के बारे में कहती हैं कि इस ग्रुप ने फुड मैग्जीन ‘‘फोरागर कालेक्टिव के साथ मिलकर कृषि संबंधी चित्रों को बनाया है और भारतीय रूपये - नोटों के जरिए टेबल पर फार्मिंग के दृश्यों को बनाया है ताकि लोगों को इस बात का अहसास हो सके कि भोजन कितना मूल्यवान है।

युवा दिनों में किसानी कर चुके कोच्चि के बुजुर्ग निवासी तेकाडी मैथ्यू वर्गीस से प्राप्त बीजों से सब्जियों - टमाटर, भिंडी, मिर्च और पालक के आर्गेनिक उद्यान बनाये हैं। 
जहां तक कि आसपास के दृश्यों का संबंध है यह मजेदार है। वहां मिल्कवेड के बीजों से भरे  मिल्कवेड फैलाने वाले बैलून दिखते हैं। ये एकमात्र पौधे हैं जो कैटर पिलर के लिये आहार का काम करते हैं। चिकागो में काम करने वाले पर्यावरण कार्यकर्ता जेनी केंडलर्स की कृति मोनार्क तितलियों की घटती संख्या का एक सरल समाधान पेश करती है। उनके अनुसार मिल्कवडे को संरक्षित करना तथा उन्हें उगाना इन तितलियों को मदद पहुंचाने का पहला कदम है।
इन परियोजनाओं में से कई ज्ञान से जुड़े सवाल उठाते हैं और यह सवाल करते हैं कि ये प्रकृति से अलग कैसे हैं। उदाहरण के लिये उदयपुर स्थित एक संगठन शिक्षांतर के मनीश जैन यह प्रदर्शित कर रहे हैं कि किस तरह से गाय के गोबर के इस्तेमाल से बेहतरीन फेसियल बनाया जा सकता है। शिक्षांतर परम्परागत ज्ञान एवं ऐतिहासिक परम्पराओं को बढ़ावा देने तथा समकालीन विचार धाराओं को चुनौती दनें में सक्रिय हैं।

राजस्थान से नीचे दक्षिण की ओर के हैदराबाद शहर में मधु रेड्डी ने अपने पैत्रृक खेत ऐजर बाई को एक समग्र खते में तब्दील किया। फोटोग्राफर के रूप में उन्होंने तस्वीरें उतारी तथा मिश्रित क्राॅप प्लांटिंग, बीज संरक्षण, खाद तथा धरती और मनुश्य के बीच अधिक समग्र साझेदारी कायम करने के तरीकों के बारे में अपने ज्ञान को लोगों के साथ साझा कर रही है और इसके लिये फेसबुक का भी इस्तेमाल कर रही हैं।
फिर प्रायद्वीपीय भारत में समकालीन कलाकार अरुणकुमार एच जी का नक्शा पश्चिमी घाट के सहयाद्रि रेंज में स्थित उसके परिवार के खेत की है। 46 वर्षीय कन्नडिगा खेत के चारो ओर, जैव विविधता को बहाल करने के लिए काम कर रहे हैं जिन्हें रबर बागान और मोनोकल्चर नकदी फसलों के रूप में तब्दील किया जा रहा है। वह टिकाउ जीवन और खेती के तरीकों के बारे में खुद के और अपने पड़ोसी किसानों के पुनराविष्कार को बढ़ावा देने के लिए पर्यावरण और कला के लिए केंद्र विकसित कर रहे हैं।
रुचिका नेगी और अमित महंती के कार्य में अपने सबसे आम प्रतीकों  में से एक - मजबूत बिस्किट, के माध्यम से फूड एड इंडस्ट्री की खाद्य सहायता, कुपोषण और भूख की राजनीति दिखती है। 
लंदन के कलाकार स्टुअर्ट रोवेथ के बी जिम को एक आधुनिक छत्रक के तार की जाली फर्श पर बैठने के लिए बनाया गया है। यह चार अलग आकार के उपकरणों का एक सेट के रूप में , मधुमक्खी कॉलोनी के कोलैप्स के  लिए इन-हाइव समाधान प्रदान करता है। यह मधुमक्खियों को वैरोआ माइट्स या परजीवियों को अपने शरीर और छत्ते से दूर रखने में मदद करता है।
केट डाघड्रिल का बर्नसाइड फार्म डेट्रोइट में एक शहरी समुदाय खेत है, जिसका विकास जीविका, समुदाय, और सौदंर्य के लिए किया गया है। खते के आधे हिस्से में बगीचा है और आधे हिस्से में लोगों के जमा होने के लिए जगह रखी गयी है और मूर्तिकला का माहौल पैदा किया गया है। बढ़ते मौसम के दौरान, बर्नसाइड के पड़ोसी बगीचे में रविवार रात्रिभोज का आयोजन करते हैं।
गार्डन लुक वाला एक शहर - ट्रोमसो नार्वे शहर में एक बगीचे के रूप में दिखता है जहां कुछ भी बेकार नहीं है। ट्रोमसो में भोजन के महंगा होने के कारण, छात्र डम्पस्टर से भोजन ‘हार्वेस्ट’ करते हैं।
इसके अलावा, बागवानी सलाहकार नैन्स क्लेहम का एक पोस्टर ‘घास फूस को भोजन में किस प्रकार तब्दील किया जा सकता है’ पर प्रकाश डालता है।

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