गुरुवार, 12 मार्च 2015

कोच्चि-मुजिरिस बिनाले में परम्परा और आधुनिकता के विरोधाभासों का प्रदर्शन

बिनाले में बीजू जोज की हस्ताक्षर कलाकृति ‘स्विास्तिक पॉकेट नाइफ’ का प्रदर्शन 
कोच्चि, 11 मार्च: कलाकार बिजू जोज ने वियाग्रा और एस्पिरीन की गोलियों को एक माला बनाने के लिए एक साथ रखा है। विभिन्न सभ्यताओं में माला - प्रार्थना, उम्मीद एवं दैवत्व का प्रतीक है लेकिन कलाकार माला के साथ वियाग्रा एवं एस्पिरीन को जोडकर समकालीन भारत में परंपरा और आधुनिकता, विश्वास और बाजार के परस्पर विरोधाभासों को प्रदर्शित करना चाहते हैं।
Swistik Pocket Knife 
यहां चल रहे कोच्चि-मुजिरिस बिनाले में प्रदर्शित बिजू जोज की प्रमुख कलाकृति ‘जापमाला’ (2008) के एक भाग इस जटिल कलाकृति को बिनाले में कला परिदृश्य पर बहुत ही प्रभावशाली ढंग से पेश किया गया है। वह प्रतिष्ठित स्विस आर्मी नाइफ के मिश्रित उपकरणों से सुसज्जित एक बहु सशस्त्र, हथियार चलानेवाले हिंदू देवता को चित्रित कर एक हस्ताक्षर प्रदर्शन के साथ एक बार फिर बिनाले में आये हैं।
एस्पिनवाल हाउस में कलाकार की कृति ‘स्विस्तिक पॉकेट नाइफ’ में स्विस सेना आर्मी नाइफ हथियारों और अन्य कर्मकांडों के उपकरणो के साथ दिखाया गया है। इस कलाकृति की सरलता इस तथ्य में निहित है कि एक साधारण स्विस नाइफ में कैन ओपनर, स्क्रू ड्राइवर, कैंची और नेल क्लिपर जैसे उपकरण होते हैं लेकिन विविध हथियार पकड़े कई हाथों के साथ हिंदू देवता की आकर्षक तस्वीर का सृजन करने के लिए इसे ‘त्रिषूल’ (ट्राइडेंट), ‘लैविथ्रम’ (दरांती के लिए मलयालम शब्द), ‘अंकुष’ (महावत का अंकुष) और ‘इली’ (नारियल कश) जैसे औजारों से सृजनात्मक रूप से सुसज्जित किया जा सकता है।
‘त्रिशूल’ और ‘शुलम’ (भाला) जैसे उपकरण अपने धार्मिक प्रतीकों की वजह से श्रद्धेय हैं। ‘पूगा करतारी’ (नट क्रैकर) जैसे अन्य उपकरण कार्य तो कर रहे हैं, लेकिन अब बेहतर तकनीकों के आने से इनका महत्व कम हो गया है। ‘खुखरी’ (कटार) और ‘करवालाह’ (तलवार) जैसे हथियार अब अप्रचलित हैं।
जोज ने कहा, ‘‘मेरी योजना अपने महत्व और प्रभाव में पूरी तरह से अलग, विभिन्न भारतीय उपकरण / नाइफ सेट के साथ काम करने की थी। एक स्विस आर्मी नाइफ में एक बड़ा ब्लेड, एक नारियल / सब्जी कश, एक हाथी अंकुश, एक त्रिशूल, एक छोटे ब्लेड की तरह बाघ पंजा नुमा छेनी, एक ईयरवैक्स स्कूप इत्यादि जैसे मानक कार्यात्मक और गैर कार्यात्मक उपकरणों के बारह सेट होते है। मैंने इन सभी उपकरणों को एक गैर कार्यात्मक वस्तु में पुनगर्ठित किया।’’
उन्होंने कहा, ‘‘धीमी गति में हैंडल से निकलते चाकू के साथ एक यंत्रीकृत उपकरण सेट बनाने का विचार इसलिए आया ताकि दर्शक यह अंदाजा नहीं लगा पायें कि इससे क्या निकल रहा है।
अपनी सभी कृतियों में, जोज विभिन्न संस्कृतियों और कलाकृतियों के मिश्रण को चिह्नित कर रहे परस्पर मुकाबला कर रहे पदार्थों और प्रतीकों के साथ कार्य करने का प्रयास करते हैं। स्विास्तिक पाॅकेट नाइफ को दीवार पर प्लास्टिक के एक बक्से में प्रदर्शित किया गया है। इसमें मौजूद विभिन्न आकार वाले उपकरण भारतीय पौराणिक कथाओं से प्रतीकों का आह्वान करते हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘यह एक रहस्य की बात है कि लगभग सभी प्रमुख धार्मिक प्रयोजनों में प्रार्थना मोती का उपयोग क्यों किया जाता है। यह भी देखना महत्वपूर्ण है कि कुछ मामलों में यहां तक कि मरणासन्न रूप से बीमार रोगियों की जटिल बाईपास सर्जरी की जाती है और अपने विश्वास और आस्था के कारण वे स्वस्थ हो जाते हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘पाॅकेट नाइफ किसी व्यक्ति का और एक औरत का भी विश्वसनीय साथी है।’’
उनकी अधिकतर कलाकृतियों में एक सूक्ष्म राजनीतिक रंग है। उनमें कई अर्थों के साथ एक नई वस्तु का सृजन करने के लिए सांसारिकता में बदलाव करने की क्षमता है। यह सामाजिक-सांस्कृतिक इतिहास की उनकी समझ का प्रतीक है। उन्होंने अवधारणा और सामग्री को एक दूसरे का पूरक बनाने और एक दूसरे का विस्तार करने के लिए समसामयिक वस्तुओं को एक साथ रखा है। यह कलाकृति दर्शक के लिए बड़ा अर्थ और समझ उत्पन्न करने के लिए प्रेरित करती है।
बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय और यूनिवर्सिटी आॅफ आइडियाज, बीला (इटली) के एक पूर्व छात्र, वर्श 1972 में जन्मे जोज ने कहा, ‘‘यह एक ऐसा मंच है जहां कला के विभिन्न रूपों को देखा जा सकता है।’’
केएमबी के क्यूरेटर, जितिश कलात कहते हैं, ‘‘जोज भारत में होने वाले परिवर्तन की उस लहर से प्रभावित हैं जो देश के प्रमुख आईटी हब और वैश्विक पूंजी के प्रवेश द्वार, बेंगलुरु शहर में पैदा हुयी है।’’
जोज की कृति में रूप और संरचना से संबंधित दो अलग- अलग स्तरों पर काम करने की प्रकृति की झलक मिल सकती है, लेकिन इसमें हमेशा दोनों के बीच एक संवाद होता है, जिसे कला समीक्षकों के द्वारा एक बड़ी कथा या मिथक के एक दृश्य संक्षेपण के रूप में वर्णित किया गया है। उनकी कलाकृति की तरह, कलाकार खुद भी एक कार्यकर्ता और एक पर्यवेक्षक की विभिन्न भूमिकाओं के बीच डोलते प्रतीत होते है।
बिनाले की परम्परा के बारे में, जोज ने कहा, ‘‘बिनाले भारत के लिए अपेक्षाकृत नया है और कोई भी व्यक्ति अपने देश में बिनाले में विभिन्न प्रकार की समकालीन कृतियों को अनुभव कर सकता है। मेरे अनुसार इस तरह
के अनुभव कुछ तरीके से अपने आप में एक विरासत है।’’

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